पुनौरा धाम सीतामढ़ी – सितामढ़ी जिला मुख्यालय से 1 कोस की दूरी पर पुनौरा गाँव है। राजा जनक के हल चलाते समय माता सीता का यहीं जन्म हुआ था । माता सीता के जन्म स्थान होने के कारण ही इस जगह का नाम पहले सीतामड़ई, फिर सीतामही और कालांतर में सीतामढ़ी पड़ा ।
पुनौरा धाम सीतामढ़ी तक पहुँचने के लिए निम्नलिखित तरीके हैं:
रेल मार्ग:
- यहाँ का निकटतम रेलवे स्टेशन सितामढ़ी रेलवे स्टेशन है। सितामढ़ी रेलवे स्टेशन से पुनौरा गाँव की दूरी लगभग 10-12 किलोमीटर है। आप सितामढ़ी रेलवे स्टेशन से ऑटो, टैक्सी या निजी वाहन से पुनौरा पहुँच सकते हैं।
सड़क मार्ग:
- आप पटना, दरभंगा, या किसी अन्य प्रमुख शहर से रोड द्वारा सितामढ़ी तक पहुँच सकते हैं। सितामढ़ी से पुनौरा तक बस और टेम्पो जैसी सार्वजनिक यातायात सेवाएँ उपलब्ध हैं।
- यहां जाने के लिए आप निजी वाहन, टैक्सी, या बस का भी उपयोग कर सकते हैं। सड़क मार्ग से पुनौरा गाँव आसानी से पहुँचा जा सकता है ।
स्थानीय परिवहन:
- पुनौरा गाँव तक पहुँचने के लिए आप स्थानीय परिवहन जैसे ऑटो, ई-रिक्शा या बस का भी उपयोग कर सकते हैं। स्थानीय लोग अक्सर इस क्षेत्र में यात्रा करने के लिए ये साधन उपयोग करते हैं।
नजदीकी हवाई अड्डे:
पुनौरा गाँव का सबसे नजदीकी प्रमुख हवाई अड्डा पटना एयरपोर्ट (Jaiprakash Narayan International Airport, Patna) है, जो लगभग 120 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इसके अतिरिक्त, दरभंगा एयरपोर्ट भी एक विकल्प है, जो पुनौरा से करीब 70 किलोमीटर दूर है।
पौराणीक कथा
सीता का जन्म राजा जनक के हल चलाने के समय धरती के अंदर से दिव्य शक्ति के रूप में हुआ था। माता सीता के जन्म के कारण वहाँ की धरती पुण्यमयी हो गई, इसी कारण उस जगह का नाम पुण्यउर्वी हुआ, जिसे आज पुनौरा के नाम से जाना जाता है।
जब माँ सीता का जन्म हुआ, तो यह जगह माता सीता के धरती पर आगमन के कारण विख्यात हुई। साथ ही आकाश में बादल घेरकर मुसलधार बारिश होने लगी, जिससे प्रजा का दुख मिट गया। लेकिन नवजात शिशु की समस्या राजा जनक के सामने आ गई। बारिश से बचने के लिए एक झोपड़ी बनाई गई, और उस स्थान का नाम सितामढ़ी पड़ा।
सितामढ़ी नगर के पश्चिमी छोर पर एक कुंड है। ऐसा कहा जाता है कि लगभग 250 वर्ष पहले उस कुंड के अंदर सीता की प्रतिमा पाई गई थी। कुछ लोगों का कहना है कि अभी के जानकी मंदिर में स्थापित जानकी जी की प्रतिमा वही है जो कुंड से निकली थी, पर कुछ लोग इसे नहीं मानते हैं।
पूर्व में सितामढ़ी और पुनौरा जहाँ है, वहाँ घने जंगल थे। जानकी स्थान के महंत महात्मा थे। पुनौरा में राजा जनक के समय में महात्मा पुंडलिक का कुटिया था। सितामढ़ी में जानकी के नाम पर हर साल मेला लगता है, जिससे वहाँ का स्थान और भी प्रसिद्ध हो गया है।
पुनौरा का विकास ना हुआ है, ना हो रहा है, और लगता है कि भविष्य में भी नहीं होगा, वह पहले जैसा ही है। वर्तमान में सरकार ने अनेको योजनाओं की शुरुआत कि है अब देखना है की वो धरातल पर उतरती है की नहिं ।
प्रमुख पर्यटन स्थल
जानकी स्थान मंदिर: पुनौरा धाम सीतामढ़ी
सीतामढ़ी रेलवे स्टेशन से 2 किलोमीटर की दूरी पर बने जानकी मंदिर में स्थापित भगवान श्रीराम, देवी सीता और लक्ष्मण की मूर्तियाँ हैं। यह सीतामढ़ी नगर के पश्चिमी छोर पर स्थित है। जानकी मंदिर के नाम से प्रसिद्ध यह पूजा स्थल हिंदू धर्म में विश्वास रखने वालों के लिए अति पवित्र है। जानकी स्थान के महंत के प्रथम पूर्वज विरक्त महात्मा और सिद्ध पुरुष थे। उन्होंने “वृहद विष्णु पुराण” के वर्णनानुसार जनकपुर नेपाल से मापकर वर्तमान जानकी स्थान वाली जगह को ही राजा जनक की हल-कर्षण-भूमि बताया। बाद में उन्होंने उसी पावन स्थान पर एक वृक्ष के नीचे लक्षमना नदी के तट पर तपश्चर्या के हेतु अपना आसन लगाया। कालांतर में भक्तों ने वहाँ एक मठ का निर्माण किया, जो गुरु परंपरा के अनुसार उस काल के क्रमागत शिष्यों के अधीन आद्यपर्यंत चला आ रहा है। यह सीतामढ़ी का मुख्य पर्यटन स्थल है।
बाबा परिहार ठाकुर:
सीतामढ़ी जिला मुख्यालय से 25 किलोमीटर दूर प्रखंड परिहार में स्थित है बाबा परिहार ठाकुर का मंदिर। यहाँ की मान्यता है कि जो भी बाबा परिहार ठाकुर के मंदिर में आता है, वह खाली हाथ वापस नहीं लौटता।
उर्बीजा कुंड:
सीतामढ़ी नगर के पश्चिमी छोर पर उर्बीजा कुंड है। सीतामढ़ी रेलवे स्टेशन से डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह स्थल हिंदू धर्म में विश्वास रखने वालों के लिए अति पवित्र है। कहा जाता है कि उक्त कुंड के जीर्णोद्धार के समय, आज से लगभग 200 वर्ष पूर्व उसके अंदर उर्बीजा सीता की एक प्रतिमा प्राप्त हुई थी, जिसकी स्थापना जानकी स्थान के मंदिर में की गई। कुछ लोगों का कहना है कि वर्तमान जानकी स्थान के मंदिर में स्थापित जानकी जी की मूर्ति वही है, जो कुंड की खुदाई के समय उसके अंदर से निकली थी।
पुनौरा और जानकी कुंड:
यह स्थान पौराणिक काल में पुंडरिक ऋषि के आश्रम के रूप में विख्यात था। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि सीतामढ़ी से 5 किलोमीटर पश्चिम स्थित पुनौरा में ही देवी सीता का जन्म हुआ था। मिथिला नरेश जनक ने इंद्र देव को खुश करने के लिए अपने हाथों से यहाँ हल चलाया था। इसी दौरान एक मृदापात्र में देवी सीता बालिका रूप में उन्हें मिली। मंदिर के अलावा यहाँ पवित्र कुंड भी है।
हलेश्वर स्थान:
सीतामढ़ी से 3 किलोमीटर उत्तर-पूर्व में इस स्थान पर राजा जनक ने पुत्रेष्टि यज्ञ के पश्चात भगवान शिव का मंदिर बनवाया था, जो हलेश्वर स्थान के नाम से प्रसिद्ध है।
पंथ पाकड़:
सीतामढ़ी से 8 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में बहुत पुराना पाकड़ का एक पेड़ है, जिसे रामायण काल का माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि देवी सीता को जनकपुर से अयोध्या ले जाने के समय उन्हें पालकी से उतार कर इस वृक्ष के नीचे विश्राम कराया गया था।
बगही मठ:
सीतामढ़ी से 7 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में स्थित बगही मठ में 108 कमरे बने हैं। पूजा तथा यज्ञ के लिए इस स्थान की बहुत प्रसिद्धि है।
देवकुली (ढेकुली):
ऐसी मान्यता है कि पांडवों की पत्नी द्रौपदी का यहाँ जन्म हुआ था। सीतामढ़ी से 19 किलोमीटर पश्चिम स्थित ढेकुली में अत्यंत प्राचीन शिवमंदिर है, जहाँ महाशिवरात्रि के अवसर पर मेला लगता है।
गोरौल शरीफ:
सीतामढ़ी से 26 किलोमीटर दूर गोरौल शरीफ बिहार के मुसलमानों के लिए बिहार शरीफ और फुलवारी शरीफ के बाद सबसे अधिक पवित्र है।
जनकपुर:
सीतामढ़ी से लगभग 35 किलोमीटर पूर्व एनएच 104 से भारत-नेपाल सीमा पर भिट्ठामोड़ जाकर नेपाल के जनकपुर जाया जा सकता है। सीमा खुली है तथा यातायात की अच्छी सुविधा है, इसलिए राजा जनक की नगरी तक यात्रा करने में कोई परेशानी नहीं है। यह वह भूमि है जहाँ राजा जनक के द्वारा आयोजित स्वयंबर में शिव के धनुष को तोड़कर भगवान राम ने माता सीता से विवाह रचाया था।
राम मंदिर (सुतिहारा):
सीतामढ़ी से लगभग 18 किलोमीटर पूर्व एनएच 104 से जाया जा सकता है।
ऐतिहासिक स्थल:
बगही मठ:
यह मठ 10वीं शताब्दी का है। यह मठ अपनी सुंदर वास्तुकला और प्राचीन मूर्तियों के लिए जाना जाता है।
पंथ पाकड़:
यह पेड़ 1000 साल से भी पुराना है। ऐसा माना जाता है कि भगवान राम और माता सीता ने इस पेड़ के नीचे विश्राम किया था।
ढेकुली:
यह स्थान महाभारत से जुड़ा हुआ है। ऐसा माना जाता है कि पांडवों की पत्नी द्रौपदी का यहाँ जन्म हुआ था।
पुनौरा धाम सीतामढ़ी – साभार – प्रॊ. शिव चन्द्र झा shiv.chandra@themithila.com
लेखक जाने माने संस्कृत भाषा के विद्वान हैंं, तथा दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के सेवानिवृत व्याख्याता हैं ।
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