अहिल्या स्थान

अहिल्या स्थान

अहिल्या स्थान दरभंगा जिले के कमतौल थाना के अहियारी गाँव में स्थित है। इस जगह पहुँचने के लिए सबसे अच्छा साधन रेल है। यहाँ के लिए दरभंगा से रेल तथा बस सेवा उपलब्ध है। यह स्थान सीता की जन्मस्थली पुनौरा, सीतामढ़ी, से लगभग 40 किमी पूर्व में स्थित है ।

प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ. राम प्रकाश शर्मा के अनुसार, “इसमें कोई संदेह नहीं है कि अहिल्या-नगरी अथवा गौतम ऋषि का आश्रम मिथिला में ही था। भोजपुर में राम ने ताड़का का वध किया था। वहाँ राम और लक्ष्मण ने ऋषि विश्वामित्र के यज्ञ की रक्षा के लिए राक्षसों का संहार किया था। मिथिला में प्रवेश करने के बाद राम ने सबसे पहले अहिल्या का उद्धार किया और उसके पश्चात् वे ईशान दिशा की ओर बढ़ते हुए ऋषि विश्वामित्र के साथ विदेह नगरी जनकपुर पहुँचे।”

पुराणों के अनुसार, गौतम मुनि का निवास स्थान यही था। एक पौराणिक कथा के अनुसार, गौतम मुनि की पत्नी अहिल्या थीं। एक बार देवराज इन्द्र वहाँ गौतम मुनि की कुटिया में आए। वहाँ उन्होंने अहिल्या को देखा और उनके दिव्य रूप को देखकर मोहित हो गए और उनका अभिगमन करने का मन बनाया।

कुछ दिनों बाद, मध्यरात्रि में इन्द्र ने मुर्गे की आवाज निकालकर मुनि गौतम को जगा दिया। गौतम मुनि स्नान के लिए चले गए। उसके बाद इन्द्र ने गौतम मुनि का रूप धारण कर अहिल्या के घर में प्रवेश किया। परन्तु गौतम मुनि को मध्यरात्रि का आभास हुआ और वे वापस आ गए।

घर आकर जब उन्होंने इन्द्र को अपनी पत्नी के साथ देखा, तो क्रोधित होकर दोनों को शाप दे दिया। इस शाप के कारण अहिल्या पत्थर की बन गईं तथा इन्द्र को मुर्गा बना दिया। अहिल्या के माफी माँगने पर गौतम मुनि ने उनसे कहा कि जब भगवान विष्णु त्रेतायुग में श्री राम के रूप में धरती पर आएँगे और मिथिला जाते समय अपने चरण कमल से तुम्हारा उद्धार करेंगे।

अहिल्या का उद्धार

रामायण के वर्णन के अनुसार, राम और लक्ष्मण जब ऋषि विश्वामित्र के साथ मिथिला के वन-उपवन देखने निकले, तो उन्होंने एक निर्जन स्थान पर पहुँचकर कहा, “भगवन्! यह स्थान आश्रम जैसा प्रतीत हो रहा है, किन्तु यहाँ कोई ऋषि या मुनि क्यों नहीं हैं?” इस पर ऋषि विश्वामित्र ने बताया कि यह स्थान कभी महर्षि गौतम का आश्रम था। वे अपनी पत्नी अहिल्या के साथ यहाँ तपस्या करते थे।

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एक दिन जब गौतम ऋषि आश्रम से बाहर गए हुए थे, तो उनकी अनुपस्थिति में देवराज इन्द्र गौतम ऋषि का वेश धारण कर अहिल्या के पास आए और उनके साथ सहवास की इच्छा व्यक्त की। अहिल्या ने इन्द्र को पहचान लिया और उनकी याचना स्वीकार की। जब इन्द्र अपने लोक लौट रहे थे, तब आश्रम लौटते हुए गौतम ऋषि ने इन्द्र को अपने वेश में देखा। इस पर क्रोधित होकर उन्होंने इन्द्र को शाप दिया। इसके बाद, उन्होंने अहिल्या को भी शाप दिया कि वह हजारों वर्षों तक तुम पत्थर बनके ड़ी रहोगी। उन्होंने कहा कि जब भगवान राम इस वन में आएँगे, तभी उनकी कृपा से तुम्हारा उद्धार होगा। यह कहकर गौतम ऋषि हिमालय की ओर तपस्या करने चले गए।

ऋषि विश्वामित्र ने राम से कहा, “हे राम! अब तुम इस आश्रम के भीतर जाकर अहिल्या का उद्धार करो।” विश्वामित्र के आदेश पर राम और लक्ष्मण आश्रम के अंदर गए। वहाँ उन्होंने देखा कि तपस्या में लीन अहिल्या का तेज चारों ओर फैला हुआ है। राम के पवित्र चरणों के स्पर्श से अहिल्या का उद्धार हुआ और वह पुनः एक सुंदर नारी के रूप में प्रकट हुईं। राम और लक्ष्मण ने श्रद्धापूर्वक उनके चरण स्पर्श किए। इसके बाद, वे ऋषि विश्वामित्र के साथ मिथिला लौट आए।

गौतम कुंड

यहां समिप में ही गौतम कुंड स्थित है जहां गौतम ऋषि नित्य स्थान करने जाते थे । यह स्थल पौराणिक, धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है । सही रख-रखाव नहीं होने के कारण मिथिला का प्रसिद्ध गौतम कुंड अस्तित्व संकट में नजर आ रहा है। इस प्रसिद्ध कुंड में स्नान करने से लोग अपने पापों से मुक्ति पाते थे और सिद्धि की प्राप्ति होती थी, लेकिन अब यह कुंड आदमी क्या, जानवरों के स्नान के लायक भी नहीं रह गया है।

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जब हम अहिल्या मंदिर के पास लोगों से गौतम कुंड का रास्ता पूछा, तो उन्होंने बड़े आश्चर्य से हमें देखा और रास्ता बताया। तभी हमें यह समझ में नहीं आया, लेकिन जब हम इस जगह पर पहुँचे, तो हमने देखा कि जो गौतम कुंड कभी हमेशा पानी से भरा रहता था, वह अब इस हालात में पहुँच चुका है।

हमने इस बारे में कुछ स्थानीय लोगों से बात की, तो उन्होंने बताया कि पहले गौतम कुंड वहाँ से बहने वाली अधवारा समूह की नदी से जुड़ा हुआ था, जिससे वहाँ हमेशा साफ पानी रहता था। लेकिन गाँव वालों के आपसी विवाद के कारण प्रशासन को वहाँ एक बांध बनाना पड़ा, जिससे कुंड का संपर्क नदी से टूट गया और गौतम कुंड की यह हालत हो गई।

वर्तमान में इसके विकास हेतु सरकार द्वारा कई प्रयास किये जा रहे हैं आशा है की निकट भविष्य में यह एक पर्यटन स्थल के रुप में उभरेगा । यदि आप अहिल्या स्थान की यात्रा करते हैं, तो आपको इस पवित्र स्थल के साथ-साथ इसके ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व का अनुभव अवश्य लेना चाहिए।

गौतम कुंड धार्मिक महत्व:

  1. तीर्थयात्रा का केंद्र: अहिल्या स्थान में आने वाले श्रद्धालु गौतम कुंड में स्नान करते हैं।
  2. पिंडदान और पूजा-अर्चना: इस कुंड का जल पितृ शांति के लिए उपयोग किया जाता है। अहिल्या स्थान पर पूजा करने के बाद, भक्त गौतम कुंड के जल से अभिषेक करते हैं।
  3. रामायण की कथा: यह स्थान महर्षि गौतम के आश्रम का हिस्सा था। राम और लक्ष्मण जब मिथिला की यात्रा पर थे, तब उन्होंने अहिल्या का उद्धार किया और गौतम कुंड के पास से होकर गुजरे।

निष्कर्ष:

अहिल्या स्थान और गौतम कुंड दोनों मिथिला क्षेत्र के महत्वपूर्ण धार्मिक और ऐतिहासिक स्थल हैं, जो पौराणिक कथाओं और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। अहिल्या स्थान वह स्थान है जहाँ महर्षि गौतम और उनकी पत्नी अहिल्या का संबंध है, और जहाँ भगवान राम ने अहिल्या का उद्धार किया था। गौतम कुंड, जो कभी पवित्र जल से भरा रहता था, महर्षि गौतम की तपस्या से जुड़ा है और उसे भी एक धार्मिक स्थान के रूप में पूजा जाता था।

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लेकिन, समय के साथ इन स्थलों की हालत काफी बिगड़ चुकी है। गौतम कुंड, जो पहले हमेशा साफ और शुद्ध पानी से भरा रहता था, अब गंदगी और जल की कमी से जूझ रहा है। इसके संपर्क में होने वाली नदी का पानी भी अब कुंड तक नहीं पहुँच पाता, जिससे इसकी पवित्रता और महत्व घट गया है। इसी तरह, अहिल्या स्थान पर भी उचित रख-रखाव की कमी और प्रशासनिक लापरवाही के कारण इन ऐतिहासिक स्थलों की स्थिति बिगड़ती जा रही है।

इन दोनों स्थलों की सही देखभाल और संरक्षण के लिए तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता है। प्रशासन और स्थानीय समुदायों को मिलकर इन धार्मिक स्थलों को बचाने और उनका पुनर्निर्माण करने के प्रयास करने होंगे, ताकि भविष्य में यह स्थल श्रद्धालुओं और पर्यटकों के लिए फिर से एक आकर्षक और पवित्र स्थल बन सकें। इन स्थलों की पवित्रता और महत्व को बनाए रखना हमारी जिम्मेदारी है।

अहिल्या स्थान – साभार – प्रॊ. शिव चन्द्र झा shiv.chandra@themithila.com

लेखक जाने माने संस्कृत भाषा के विद्वान हैंं, तथा दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के सेवानिवृत व्याख्याता हैं ।

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प्रो. शिव चन्द्र झा, के.एस.डी.एस.यू., दरभंगा में धर्म शास्त्र के प्रख्यात प्रोफेसर रहे हैं। उनके पास शिक्षण का 40 से अधिक वर्षों का अनुभव है। उन्होंने मैथिली भाषा पर गहन शोध किया है और प्राचीन पांडुलिपियों को पढ़ने में कुशलता रखते हैं।
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