मिनाक्षी झा  की बॆहतरीण कविताएँ

Blonde woman enjoying leisure time reading a love poems book outdoors on a sunny day.

    तोहफा प्यार का

आज के मुबारक़ दिन
मैं तुझे एक
तोहफा देना चाहती हूं ।

ऐसा तोहफा जो
सब से निराला हो ।
पाकर जिसे तेरा
मन भी मतवाला हो ।

वो तोहफा
मेरे प्यार का
उपहार भी हो ।
उसमें सिमटा
खुशबू का
संसार भी हो ।

ऐसे तोहफे की
तलाश में
सुबह से शाम
सारा शहर घूमी ।
कोई भी चीज़
मुझे नहीं जंची ।

मैं उदास मन से घर
लौट कर आ रही थी ।
तभी
रास्ते में मुझे
एक भीनी भीनी सी
महक ने रोक लिया ।
नज़र घुमाकर देखा तो
मेरे रास्ते में कई
यूकिलिप्टस के दरख्त
चुपचाप खड़े थे ।
मेरे क़दमों तले
यूकिलिप्टस के
कई सूखे पत्ते
बिखरे पड़े थे ।

झुककर मैंने एक पत्ता
अपने हाथों में लिया
तो उसकी अनोखी खुशबू
मेरी सांसों में समा गई ।
मैंने उस सूखे पत्ते को
अपने हाथों में मसला तो
वो और भी महकने लगा ।

मैं सोचने लगी
कैसा अनोखा पत्ता है
सूखा है मुरझाया है ।
मगर खुशबू इसकी
अब भी जि़न्दा है ।

निराला है
इसकी महक से
मेरा मन भी
मतवाला है ।

एक सूखे मुरझाये
पत्ते में सिमटा
खुशबू का
संसार भी है ।
और हां
ये यूकिलिप्टस
का सूखा पत्ता
मेरे प्यार का
उपहार भी है ।

और यही तोहफा मैं
तुझे देना चाहती हूं
आज के मुबारक़ दिन।

और पढें  मनीगाछी का वाणेश्वरी मंदिर !

पगली बदली

आज बहार के चले जाने पे
बदली फूट फूट कर रो रही है ।
रो रो कर उसने सारा आसमान
सिर पर उठा लिया है
अपने अश्कों से
सारी क़ायनात को भिगो दिया है ।

पगली है बदली
नहीं जानती कि
बहारों का मौसम
आता ही है
चले जाने के लिये
चंद पल जी को
बहलाने के लिये ।


नहीं जानती कि
जब वो रो रो कर थक जायेगी
तो नीले आसमान पर
कोई सूरज बनकर आयेगा
जिसकी किरनों के छूने से


एक हसीन इन्द्रधनुष
कायनात पर छा जायेगा
देखकर जिसे
फिर से हंसने लगेगी वो
फिर से झूमने लगेगी वो
यही सोचकर
इन्द्रधनुष छोड़कर उसे तन्हा
कभी नहीं जायेगा ।

पगली है कुछ भी नहीं समझती
इतना भी नहीं जानती
एक पल रोती है
एक पल हंसती है
बस पगली है बदली ।

और पढें  पाँचपत्र (हरिमोहन झा) (१) दड़िभंगा १-१-१९

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जय चन्द्र झा हास्य और व्यंग्य लेखन में माहिर हैं, जिनका इस क्षेत्र में 20 वर्षों का अनुभव है। उनकी रचनाएँ मिथिला की संस्कृति, समाज और जीवन के विभिन्न पहलुओं पर हास्यपूर्ण व तीखे व्यंग्य के साथ गहरी छाप छोड़ती हैं।
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