मैथिली कविता – हमर आशानन्‍द भाई

मैथिली कविता - हमर आशानन्‍द भाई

हमर आशानन्‍द भाई, कमौआ ससुर के एकलौता जमाई

मास में पन्‍द्रह दिन सासुरे में डेरा।
पबै छथि काजू-किशमिश, बर्फी-पेड़ा।।
भोजन में लगैत छनि बेस सचार।
तरूआ, तिलकोर आ चटनी-अचार।।
जेबी त गर्म रहबे करतैन, भेटैत रहै छनि गोरलगाई।
हमर आशानन्‍द भाई, कमौआ ससुर के एकलौता जमाई।

ससुर करैत छथिन ठीकेदारी।
घटकैती में छला अनारी।।
जखन गेला ओ घटकैती में।
फँसि गेला बेचारे ठकैती में।।
आशानन्‍दक पिता कहलखिन- “सुनू औ मिस्‍टर!
हमर बेटा अछि “मैनेजिंग डाइरेक्‍टर”।
के करत गाम में हमर बेटाक परतर।
के लेत इलाका में हमरा बेटा सॅ टक्‍क्‍र।।
तनख्‍वाह छैक आठ अंक में।
कतेको लॉकर छैक “स्विस बैंक” में।।

कतेको लोक एला आ गेला, कियो ने छला लोक सुयोग्‍य।
“बालक” देबैन हम ओही सज्‍जन के, जे कियो हेता हमरा योग्‍य।।
बीस लाख त द गेल छल, बूझू जे ओ कथा भ गेल छल।
मुदा मात्र टाका खातिर बेटा के बेची हम नै छी ओ बाप कसाई”।
हमर आशानन्‍द भाई, कमौआ ससुर के एकलौता जमाई।

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जोड़-तोड़ भेल, इ कथा पटि गेल।
लगले विवाहक कार्ड बॅटि गेल।।
दहेज भेटलनि लाख एगारह।
आ आशानन्‍द भाईक पौ बारह।।
शुभ-शुभ के भ गेलै ने विवाह?
आब कनियॉक बाप होइत रहथु बताह।
भेल विवाह मोर करबह की?
आब पॉचों आंगुर सॅ टपकैत अछि घी।
भले ही कनियॉ छैन कने कारी।
मुदा विदाई में त भेटलैन “टाटा सफारी”।।

विवाहेक लेल ने छला बाहर में।
आब नौकरी-चाकरी जाय भाड़ में।।
आब जहन “बाबा” बले केनाई छनि फौदारी।
तखन आब कियाक नै ओ ध लेता घरारी।।
नै जेता ओ दिल्‍ली फेर, लगलैन हाथ ससुर के कमाई।
हमर आशानन्‍द भाई, कमौआ ससुर के एकलौता जमाई।

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बिलास में डूबल छथि आकंठ।
सब दिन खेता रोहुएक “मुरघंट”।
कुशल-क्षेम लेल हम पुछलियैन्‍ह- “की आशानन्‍द भाई, ठीक”?
ताहि पर कहला हमरा जे- “अहॉ के की तकलीफ?
मुर्गा मोट फँसेलौ हम,
तें ने करै छी आइ बमबम”।

कनियॉंक माई कपार पिटै छथि।
“भाग्‍यक लेख” कहि संतोष करै छथि।।
“हमर बुचिया के कपार केना एहन भेलै गे दाई”!
हमर आशानन्‍द भाई, कमौआ ससुर के एकलौता जमाई।

बहुतो आशानन्‍द छथि एहि आस में।
कहियो फँसबे करत कन्‍यागत ब्रह़मफॉंस में।।
कियो कहता जे हम “मार्केटिंग ऑफिसर”,
कहता कियो हम छी कंपनीक “मैनेजर”,
तड़क-भड़क द भ्रम फैलौने,
छथि अनेको “लाल नटवर”।

ध क आडम्‍बर देने रहु, आशा क डोर धेने रहु।
कोनो गरदनि भेटबे करत, अपन चक्‍कू पिजेने रहु।।
भला करथुन एहन आशानन्‍द सभक जगदम्‍बा माई।
हमर आशानन्‍द भाई, कमौआ ससुर के एकलौता जमाई।।

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प्रस्‍तुति:-    प्रवीण झा

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प्रो. शिव चन्द्र झा, के.एस.डी.एस.यू., दरभंगा में धर्म शास्त्र के प्रख्यात प्रोफेसर रहे हैं। उनके पास शिक्षण का 40 से अधिक वर्षों का अनुभव है। उन्होंने मैथिली भाषा पर गहन शोध किया है और प्राचीन पांडुलिपियों को पढ़ने में कुशलता रखते हैं।
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