कवि विद्यापति की थी दो पत्नियाँ : जीवन परिचय और पृष्टभूमी

कवि विद्यापति की थी दो पत्नियाँ : जीवन परिचय और पृष्टभूमी

कवि विद्यापति की थी दो पत्नियाँ : जीवन परिचय और पृष्टभूमी -बात करतें है विधापति का जीवन परिचय की तो इस मैथिलि के महा-कवि का जन्म दरभंगा जिले के जरैल परगना के अंतर्गत बिस्फी गाँव में एक मैथिल ब्राह्मण परिवार में हुआ था |

वे विशैवार गूढ़ मूल के काश्यप गोत्रीय ब्राह्मण थे | दरभंगा राज पुस्तकालय में सुरक्षित विद्यापति द्वारा लिखित श्रीमद् भागवत की प्रतिलिपि के आधार पर उनका जन्म लक्ष्मण सम्वत ३०९ लिखा है |

विधापति का जीवन परिचय और रचनाएँ

विद्यापति शिवसिंह से दो वर्ष बड़े थे | शिवसिंह ५० वर्ष की उम्र में राजा हुए अतः एसा माना जाता है कि|विद्यापति  उस समय ५२ वर्ष के रहे होंगे राजा शिवसिंह १४०२ ई ० में सत्तासीन हुए थे | इस आधार पर विद्यापति का जन्म १३५० ई० निर्धारित होता है| संस्कृत,अवहट्ट,तथा में मैथिली  में इनके छोटे बड़े एक दर्जन ग्रन्थ हैं |

अवहट्ट में दो ग्रन्थ तथा मैथिली में केवल पद प्राप्त है जिनकी संख्या सात-आठ सौ हैं | इसके अतिरिक्त एक नाटक है | संस्कृत कृतियों में भूर्पारक्रमा,विभासागर,दान वाक्यावली,पुरुष परीक्षा,शैव सर्वस्वसार और शैम्स सर्वस्वसार प्रमाणभूत,पुराणसंग्रह,गंगा वाक्यावली,दुर्गाभक्ति,तरंगिनी,मणिमंजरी,लिखनावली,गयापत्तलक,वर्णकृत्य,तथा व्यादिभाक्ति तरंगिनी जैसी रचनाएँ बहुत प्रसिद्द हैं|

एक और प्राचीन भाषा अवहट्ट में इनकी कृतियाँ – कीर्तिलता तथा क्रित्यपताका |नाटक-गोरक्ष विजय |अन्य ग्रन्थ-ज्योतिष दर्पण,नृत्य विद्या कथा ,अगम्द्वैतनिर्णय भी काफी प्रसिद्द हैं|

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विद्यापति का परिवार

कवि विद्यापति की थी दो पत्नियाँ : जीवन परिचय और पृष्टभूमी

विद्यापति की दो पत्नियाँ थी |इनकी पहली पत्नी सम्बाला संकारी परिवार की हरवंश शुक्ला की पुत्री थीं | जिससे एक विद्वान और कवि हरपति ठाकुर और दुसरे नरपति ठाकुर उनके दो पुत्र थे | दुसरा विवाह उन्होंने खंद्वला कुल के रघु ठाकुर की पुत्री से किया | इनसे एक पुत्र वाचस्पति ठाकुर और दुल्लाही एक कन्या थी ,जो सुपाणी गंगोली वंश के राम के साथ ब्याही थी | उनकी पुत्र वधुओं में से एक चन्द्रकला देवी महान कवियित्रियों में से एक थी |

अनेकों नाम एवं उपाधियाँ

विद्यापति अपने जीवन काल में बहुत प्रसिद्ध हो गए थे |इनकी अनेक पदवी अथवा उपनाम मिलते हैं | जैसे-अभिनव,जयदेव,सुकवि,कंठहार,महाराजपंडित,राजपंडित,सरसकवि,नवकविशेखर,कविवर,नवजयदेव, कविरत्व,चम्पति,मंत्रीप्रवर,कवि “कोकिल” इनका पर्याय नाम हो गया |

इससे विद्यापति की काव्य विशेषता तथा लोकप्रियता का परिचय होता है |

मैथिली की रचनायें

मैथिली के इनके लिखे पद हैं जो विद्यापति पदावली के नाम से प्रसिद्ध हैं |

विद्यापति पदावली अनेक व्यक्ति और अनेक संस्था द्वारा प्रकाशित हुई  हैं -विद्यापति के पद निम्न स्रोतों से प्राप्त हुए हैं –

नेपाल तदियत – इसमें २८४ पद हैं जिसमें २६१ पद विद्यापति की भणिता से युक्त हैं|

  • राम तदियत -इसमें ४४८ पद है |शिव नंदन ठाकुर ने इसके आधार पर ८४ पद का विद्यापतिकी विशुद्ध पदावली का संग्रह किया था |
  • तरौनी तदियत -इसमें ३५० पद थे किन्तु २३९ पद का संकलन किया |
  • राग तरंगिनी -इसमें ५१ पद हैं |
  • वैष्णव पदावली -इसमें राधा मोहन ठाकुर के पादामृत समुद्र में ६४ पद,गोकुलानन्द सेन के पद्कल्पतरु में १६१ पद,दीनबंधु दास,के संक्रित्नाम्रित पद तथा अज्ञात व्यक्ति द्वारा संकलित क्रितिसानंद में ५८ पद विद्यापति के नाम से संकलित हैं |
  • लोक कंठ से उपलब्ध पद-चंद्रा झा की सहायता से नागेन्द्रनाथ गुप्त ने ६६३ पद उपलब्ध किये हैं |
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उनकी सम्पूर्ण पदावली को अध्ययन की सुविधा हेतु चार भागों में बांटा जा सकता है -श्रृंगारिक,भक्ति गीत ,व्यवहार गीत और कुट्पद|

भक्ति गीत तीन कोटि में विभाजित किये जा सकते हैं- शिव विषयक नचारी और महेशवाणी ,गंगा विष्णु की स्तुति ,और शान्ति पद |

व्यवहार गीत -दो भागों में बटे हैं-भिन्न-भिन्न समय के अनुकूल गीत और भिन्न-भिन्न अवसर के उपयुक्त गीत

विद्यापति के कूट पद भी मिलते हैं |

भनिता

विद्यापति जिस-जिस राजा के दरबार में रहे उन राजाओं के लिए गीत की रचना की |सबसे उत्तम गीत राजा शिवसिंह के लिए लिखे जो उनके समकालीन थे | विद्यापति  गीत की भनिता में राजा के साथ रानी के नाम का भी उल्लेख है | इस क्रम में सबसे उत्तम लखिमा,बादमोद्वती,सौरभ देवी ,मेधादेवी ,सुखमा देवी के नामों का उल्लेख मिलता है| राजा शिव सिंह की पत्नी लखिमा को मिथिला की विख्यात महिलाओं में शुमार किया जाता है | इनके अतिरिक्त देवसिंह,हासिनीदेवी,अर्जुन सिंह ,कमला देवी ,राघव सिंह ,मोदवती तथा सोममति ,वैजल देवी,चन्दन देवी,आदि के नाम इनके गीत की भणिता में मिलते हैं | कुछ भानितायुक्त पद विद्यापति के नाम से प्राप्त हैं |जैसे-रमापति,दामोदर ,जयराम,कविराज आदि|

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किन्तु इन पदों की जांच हेतु अनुसंधान अपेक्षित है |

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प्रो. शिव चन्द्र झा, के.एस.डी.एस.यू., दरभंगा में धर्म शास्त्र के प्रख्यात प्रोफेसर रहे हैं। उनके पास शिक्षण का 40 से अधिक वर्षों का अनुभव है। उन्होंने मैथिली भाषा पर गहन शोध किया है और प्राचीन पांडुलिपियों को पढ़ने में कुशलता रखते हैं।
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