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गोनू झा कौन थे ?

गोनू झा कौन थे ?

गोनू झा कौन थे – गोनू झा को सम्पूर्ण मिथिलांचल में बीरबल के नाम से पहचाना जाता है | जिस प्रकार बीरबल और तेनाली राम अपनी चतुराई और हाजिर जबाबी के लिए प्रसिद्ध हैं उसी तरह गोनू झा भी अपनी चतुराई और वाक्पटुता के लिए समपर्ण मिथिलांचल में प्रसिद्ध हैं |

गोनू झा का जन्म १३ वीं  शताब्दी में दरभंगा जिला के अंतर्गत जाले प्रखंड के भरवारा ग्राम में हुआ था | वे समकालीन मिथिला के राजा हरिसिंह के दरवार में एक दरवारी एवं सलाहकार थे | किसी भी प्रश्न एवं समस्या का समाधान वे तुरंत हंसते हुए कर लेते थे |

राजा हरिसिंह के दरबारी

अपनी चतुराई के कारण ही वे राजा हरिसिंह के विश्वासी दरबारी बनकर राजा के राज्य कार्य में सहयोग देने के साथ ही उनका मनोरंजन भी करते थे | जिस कारण हरि सिंह के दरबार में जितने भी दरबारी थे वे सब गोनू झा से इर्ष्या करते थे |

गोनू झा अपनी  कहानी के माध्यम से बहुत कुछ कहते हैं | उनका सम्पूर्ण जीवन बहुत ही अचम्भित करने बाले तथ्यों से भरे परे हैं , जो अपने आप कहानी बन जाता है |यह कहानी आज भी बच्चे अपने दादा- दादी से सुनते आ रहे हैं |

चालाकी के लिए मशहूर

गोनू झा की  चालाकी का किस्सा मिथिलांचल क्या आस – पास के क्षेत्रों में भी प्रचलित है | वे किसी स्कुल कालेज में नहीं पढ़े थे , वे तो सीधे साधे किसान थे | लेकिन हाजिर जबाबी और चतुराई में बड़े-बड़े विद्द्वानों को धुल चटा देते थे |

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अब  उनकी गाँव की बात लीजिये | गाँव बाले भी गोनू झा की चालाकी से जलते थे | लेकिन उनसे सामना होने पर वे लोग दोस्त बन जाते थे | गोनू झा ये सब बात जानते थे कि गाँव बाले  हमसे झूठे ही मित्रवत व्यवहार करते हैं | अपनी घर के सदस्यों को भी वे दिखावटी स्नेह से परिचित थे |

इसलिए उन्होंने ने सोचा कि क्यों न एक ही परीक्षा में सबको जांच लिया जाय |

गोनू झा  की एक अनसुनी कथा

सबको जांचने के लिए गोनू झा एक दिन अपने विस्तार से नहीं उठे | सूरज भी अपने शिखर पर पहुँच चुके थे | पत्नी चितित हुई कि स्वामी अभी तक क्यों नहीं उठे हैं |

वे चलीं उनको जगाने | अरे , ये क्या ? उनके मुंह से तो झाग जैसा कोई उजला पदार्थ निकल रहा है | हिलाने – डुलाने पर भी वे नहीं उठे | वह रोने चिल्लाने लगी | र्रोने चिल्लाने की आवाज सुनकर उनका लड़का भी कमरे में आ गया | कमरे का दृश्य देख कर वह भी दहाड़ मारे के रोने लगा |

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यह दुखद समाचार सुनकर गाँव के मुखिया- सरपंच भी गोनू झा की पार्थिव शरीर को दर्शन करने हेतु उनके घर पधारे |

मुखिया जी अक्सर कहा करते थे कि गोनू झा की मृत्यु के बाद उनका दाहसंस्कार मैं अपने खर्चे पर गंगा किनारे कराउंगा | सरपंच भी कुछ इसी तरह की बात किया करते थे कि गोदान मेरे ही खर्चे पर ही होगा |लेकिन उनके मरने पर सबकी परीक्षा हो गया |

सरपंच साहब उनकी पत्नी से कहने लगे कि रोने धोने से अब कुछ नहीं होगा | घर में कुछ पैसा है तो निकालिए और गोदान कराइए सीधे स्वर्ग पधारेंगे | मुखिया जी भी बोले कि घर में ज्यादे देर तक लाश का रहना ठीक नहीं है | इसलिए जल्दी से लाश को घर से बाहर निकालो |

दो आदमी लाश को आगे और दो – तीन आदमी पीछे से पकड़ कर निकालने लगे | लेकिन घर का मुंह छोटा था | वे लोग लाश को बाहर निकालने में सफल नहीं हो रहे थे | उसी लोगों में से किसी ने सुझाव दिया की दुखमोचन बढ़ई को बुलाओ , दरवाजा काटेगा | दुखमोचन बढ़ई  भी  आ गया अपनी आड़ी और अन्य औजार लेकर | वह लगा दरबाजा काटने | इतने में ही गोनू झा का लड़का बोला – अरे रुको दुखमोचन भाई , बाबू जी बड़े शौक से दरबाजा बनबाए थे | दरबाजा काटने से उनके आत्मा को तकलीफ होगी | अब तो बाबू जी रहे नहीं , सो उनका पैर ही काट कर छोटा कर दो , लाश आसानी से हम लोग घर से बाहर निकाल लेंगे |

जैसे ही दुखमोचन बढ़ई उनका पैर काटने के लिए आड़ी को उनके पैर पर रखा , गोनू झा उठ कर बैठ गए और उन लोगों से कहा कि रुको भाई अभी हम मरे नहीं हैं |हम तो तुम सब का परीक्षा ले रहे थे कि तुम लोग सामने ही अपने हो कि मरने के बाद भी | यह बात सुन कर मुखिया जी , सरपंच साहेब , उनके पुत्र  और अन्य व्यक्ति की हिम्मत नहीं हुई कि गोनू झा से नजर मिलाएं |

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तब से लेकर आज तक यह कहावत बन गया कि ‘गोनू झा मरे तो गाँव को पढ़े’ | अर्थात बुरे समय में ही हित और अहित की पह्चान होती है |

गोनू झा का जन्मस्थान शोध का विषय

गोनू झा का गांव नेपाल में है, न कि भारत में। मिथिला के बीरबल कहे जाने वाले गोनू झा पर उतना शोध नहीं हुआ जितना होना चाहिए था। गोनू झा और अयाची के कालखंड में लोग अक्सर गलती करते हैं। ये दोनों राजा शिवसिंह नहीं बल्कि राजा शुभंकर ठाकुर के काल के थे। गोनू झा महाराजा महेश ठाकुर के दामाद थे और करमहा गांव निवासी महामहोपाध्याय वंशधर झा के तीसरे पुत्र चतुरराज गोनू झा थे। शादी के बाद वे अपने ससुराल भौआरा (अब भौडागढी) आकर रहने लगे।

गोनू झा राजा शुभंकर ठाकुर के दरबार में महामंत्री थे। गोनू झा के बारे में मिली जानकारी के अनुसार, वे तिरहुत नरेश राजा शुभंकर ठाकुर के मित्र थे। राजा शुभंकर ठाकुर का कार्यकाल 1583 से 1617 के बीच था। उस समय मिथिला की राजधानी भौडागढी थी, जो वर्तमान बिहार राज्य के दरभंगा प्रमंडल में स्थित है। राजा के मित्र और दरबार के सदस्य होने के कारण गोनू झा राजधानी भौडा में ही अधिकतर समय बिताते थे। कई विदेशी शोधकर्ताओं ने गोनू झा को भौडा का ही बताया है, जबकि कुछ लोगों ने भौडा को भौआरा भी लिखा है। लेकिन मिथिला की पंजी व्यवस्था में दर्ज नामों से गोनू झा के कुल और गांव का पता चलता है। तिरहुत राज्य के अंतर्गत करमाहा गांव के निवासी वंशधर झा के छोटे पुत्र गोनू झा दरबार के सदस्य थे। करमाहा गांव को सोनकरियाम भी कहा जाता है।

सुगौली संधि के बंटवारे में जनकपुर की तरह गोनू झा का गांव भी नेपाल के हिस्से में चला गया। विद्यापति की तरह गोनू झा साहित्यकार नहीं थे, और न ही उनकी कोई पांडुलिपि है। उनके चरित्र से जुड़ी कहानियां लोककथाओं के माध्यम से तिरहुत में वर्षों से सुनाई जाती हैं। बीरबल और तेनालीराम की तरह ही गोनू झा की भी कोई छवि दस्तावेजों में नहीं है। अब तक जो दस्तावेज मिले हैं, वे केवल गोनू झा की वंश तालिका है, जिससे उनके और उनके वंशजों के बारे में जानकारी मिलती है। महामहोपाध्याय श्री वंशीधर झा के पुत्र गोनू झा तीन भाई थे। सबसे बड़े भाई महामहोपाध्याय श्री हरिब्रहम झा थे, जबकि गोनू झा सबसे छोटे थे। गोनू झा के बड़े भाई का नाम महामहोपाध्याय श्री हरिकेश झा था। उनके दो बड़े भाई महाज्ञानी पंडित थे और चारों वेदों के ज्ञाता थे। गोनू झा अपने भाईयों की तरह न तो महापंडित थे और न ही वेदों का बहुत ज्ञान था, लेकिन उनकी बुद्धि तेज थी। यही कारण था कि वे न केवल राजा शुभंकर ठाकुर के प्रिय थे, बल्कि तिरहुत नरेश ने उन्हें अपने दरबार में स्थान भी दिया था।

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गोनू झा की कोई संतान नहीं थी, जबकि बड़े भाई महामहोपाध्याय श्री हरिब्रहम झा को केवल एक पुत्री थी। उनके मझले भाई महामहोपाध्याय श्री हरिकेश झा करमाहा से बेहट (झंझारपुर) आकर बस गए। इसलिए उनके वंशजों का मूल करमाहा बेहट कहा जाता है। महामहोपाध्याय श्री हरिकेश झा को गोविंद झा, लक्ष्मीपति झा और रुचिकर झा तीन पुत्र हुए। आज गोनू झा के इन्हीं भतीजों की संतानें मधुबनी जिले के हाटी, सर्वसीमा, विठो आदि गांवों में रहती हैं। मिथिला के प्रसिद्ध विद्वान गोनू झा के विषय में बहुत कम शोध हुआ है। विद्यापति की तरह गोनू झा पर भी शोध की आवश्यकता है।

गोनू झा कौन थे ? – प्रस्तुती जय चन्द्र झा  jcmadhubani@yahoo.com

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Prof Of Dharma Shastra In KSDSU Darbhanga . Has A Over 40 Year Experience In Teaching and also done research in Maithili. Able to read pandulipi
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