महाकवि विद्यापति की मैथिली काव्य रचनाएँ – महाकवि विद्यापति ने साहित्य के कई रूपों में रचनाएँ की हैं, जिनमें उनके काव्यात्मक नाटक भी महत्वपूर्ण हैं। आज हम उनके काव्यात्मक नाटको पर चर्चा करेंगे ।
विद्यापति के काव्यात्मक नाटक मैथिली साहित्य में एक विशेष स्थान रखते हैं, क्योंकि उन्होंने न केवल धार्मिक और आध्यात्मिक विषयों को चित्रित किया, बल्कि मिथिला की लोक संस्कृति, सामाजिक धारा और मानव भावनाओं को भी अपने नाटकों में प्रस्तुत किया है। यद्यपि विद्यापति के नाटकों के बारे में विस्तृत जानकारी बहुत कम उपलब्ध है, लेकिन उनके काव्यात्मक रचनाओं और नाटकों के आधार पर हम उनके भावनात्मक दृष्टिकोण को समझ सकते हैं।
विद्यापति के नाटक मुख्य रूप से धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विषयों पर केंद्रित हैं। ये नाटक सामान्यतः संस्कृत में लिखे गए थे, लेकिन इनमें मैथिली और ब्रज भाषा का मिश्रण भी देखा जाता है। विद्यापति के नाटक उनके अनूठे काव्य शैली और भावनाओं की उत्कृष्टता को दर्शाते हैं। आधुनिक विद्धानों द्वारा विद्यापति के कई सारे नाटकों का हिंदी अनुवाद किया गया है । आइये हम उनके प्रमुख नाटकों के बारे में चर्चा करते हैं ।
1. शिव विवाह
विद्यापति का “शिव विवाह” नाटक शिव और पार्वती के विवाह की कथा को वर्णित करता है। इस नाटक में शिव और पार्वती के मिलन का पवित्र प्रकरण विस्तार से प्रस्तुत किया गया है। इसमें भगवान शिव की तपस्या और पार्वती की भक्ति को प्रमुखता से चित्रित किया गया है। यह नाटक न केवल प्रेम और भक्ति की भावना को उजागर करता है, बल्कि शिव और पार्वती के संबंध को आदर्श रूप में प्रस्तुत करता है। विद्यापति ने इस नाटक के माध्यम से यह संदेश दिया कि सच्ची भक्ति और तपस्या के माध्यम से ही ईश्वर की कृपा प्राप्त होती है।
विद्यापति का भगवान शिव से प्रेम जगविदित है । मान्यता है कि भगवान भोलेनाथ स्वंग उगना का वेश बनाकर एक नौकर के रुप में विद्यापति के साथ रहते थे । महाकवि विद्यापति और उगना की कहानी मैथिली लोककथाओं में एक प्रसिद्ध कथा है। इस कथा में भगवान शिव ने विद्यापति की भक्ति से प्रसन्न होकर उनके घर एक साधारण से नौकर के रूप में आते हैं।
कहानी इस प्रकार है – विद्यापति भगवान शिव के परम भक्त थे। उन्होंने भगवान शिव की स्तुति में अनेक रचनाएँ कीं। विद्यापति की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उगना नाम से एक साधारण से नौकर का रूप धारण किया और विद्यापति के घर आ गए।
उगना विद्यापति के घर में सभी तरह के काम करते थे। एक दिन प्रचंड धुप में विद्यापति उगना के साथ कहीं जा रहे तभी विद्यापति को प्यास लग गयी, दुर-दुर तक पानी का कोई स्त्रोत्र नहीं था । बाबा विद्यापति ने उगना से जल लाने को कहा । उगना अपनी जटा से गंगा जल निकाल लाए। विद्यापति जल ग्रहण करते ही समझ गये ये साधारण जल नहि अपितु गंगाजल है ।
इस पर विद्यापति को समझ में आ गया कि उगना कोई साधारण व्यक्ति नहीं बल्कि स्वयं भगवान शिव हैं। विद्यापति ने जब उगना के चरण स्पर्श किए तो उगना ने अपना असली रूप धारण कर लिया।
यह कहानी आज भी मैथिली लोककथाओं में एक प्रसिद्ध कहानी है और भक्ति और ईश्वर के प्रति विश्वास का एक प्रतीक मानी जाती है।
2. राधा-कृष्ण संवाद
इस नाटक में, विद्यापति ने राधा और कृष्ण के प्रेम संबंध और उनके बीच के संवाद को प्रमुखता दी है। नाटक में राधा की भक्ति और कृष्ण के प्रति प्रेम, कृष्ण की लीलाएं और राधा के साथ उनके संबंध के अद्वितीय पहलुओं को दर्शाया गया है। इस नाटक के माध्यम से, विद्यापति ने राधा और कृष्ण के संबंध को एक प्रेम के प्रतिक की तरह प्रस्तुत किया है, जो भक्ति और प्रेम की उच्चतम अवस्था को दर्शाता है। राधा का कृष्ण के प्रति प्रेम न केवल भक्ति का प्रतीक है, बल्कि इसे आदर्श प्रेम के रूप में भी देखा जाता है।
विद्यापति का मशहुर कविता “चानन भेल बिसमसैर रे भुषण भेल भारी” इसी से लिया गया है ।
3. गोपी कृष्ण लीला
इस नाटक में, विद्यापति ने गोपियों और कृष्ण की रास लीला को चित्रित किया है। नाटक में कृष्ण की शरारतें, गोपियों के प्रति उनका आकर्षण और उनकी नृत्य लीला को दिखाया गया है। गोपियों के कृष्ण के प्रति प्रेम, उनकी भक्ति और कृष्ण द्वारा गोपियों के साथ रास लीला का अद्वितीय दृश्य बहुत ही सुंदरता से प्रस्तुत किया गया है। यह नाटक आदर्श प्रेम और भक्ति की कथा के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
मिथिला में यह नाटक बहुत हि प्रसिद्ध था लेकिन समय के साथ यह विलुप्त हो गया है ।
4. मिथिला की संस्कृति और समाज का चित्रण
विद्यापति के नाटकों में मिथिला की सांस्कृति कि गहराई से प्रभावित है। उन्होंने मिथिला की लोक संस्कृति, वहाँ की परंपराओं और धार्मिक अनुष्ठानों को चित्रित किया है। मिथिला के लोगों, उनके रीति-रिवाजों, विवाह संस्कारों और अन्य सामाजिक घटनाओं को उनके नाटकों में बहुत ही सुंदरता से प्रस्तुत किया गया है। ये नाटक न केवल धार्मिक या भक्ति विषयों पर आधारित हैं, बल्कि समाज के सामाजिक और सांस्कृतिक पहलुओं को भी उजागर करते हैं।
विद्यापति के गीत चाहे पुजा पाठ हो या कोई भी संस्कार आज भी मिथिला कि महिलाओं द्वारा गाया जाता है ।
5. हास्य और दर्शन
विद्यापति के नाटकों में हास्य का भी महत्वपूर्ण स्थान है। अपने नाटकों में उन्होंने हास्य के माध्यम से समाज के विभिन्न पहलुओं की आलोचना और प्रमुखता को उजागर किया है। उनके नाटकों में पात्रों की शरारतें, चतुराई और समाज की विडंबनाओं को हास्यपूर्ण तरीके से प्रस्तुत किया गया है। इसके साथ ही, उनके नाटकों में दार्शनिक और ज्ञानवर्धक बातें भी होती हैं, जो दर्शकों को जीवन के गहरे पहलुओं पर विचार करने के लिए प्रेरित करती हैं।
6. काव्यात्मकता और भाषा
विद्यापति के नाटकों में काव्यात्मकता प्रमुख रूप से विद्यमान है। उनकी भाषा सरल, रोचक और लयबद्ध होती है, जो नाटक को और भी आकर्षक बनाती है। विद्यापति की कविताओं की शैली भारतीय काव्यशास्त्र का अच्छा प्रभाव दिखाती है, और उनके काव्यात्मक रचनाओं में विभिन्न काव्य रसों (श्रृंगार, वीर, करुण आदि) का सुंदर मिश्रण होता है। उनकी काव्य रचनाओं की मिठास और भावनाओं की गहराई दर्शकों को प्रभावित करती है।
इन्ही कारणो से विद्यापति को महाकवि कि उपाधी दि गई है ।
7. धार्मिक नाटकों का प्रभाव
विद्यापति के नाटकों में धार्मिक भावनाओं का विशेष महत्व है। उनकी भगवान कृष्ण, शिव और अन्य देवताओं के प्रति भक्ति इन नाटकों में प्रमुखता से चित्रित होती है। इन नाटकों के माध्यम से, विद्यापति ने न केवल धार्मिक विश्वासों को प्रस्तुत किया बल्कि भक्ति मार्ग की महिमा और जीवन में धर्म के महत्व को भी दिखाया।
8. महिला पात्रों का महत्व
विद्यापति के नाटकों में महिला पात्रों का विशेष स्थान है। उन्होंने अपने नाटकों में महिलाओं के विभिन्न रूपों को चित्रित किया है—कभी राधा के रूप में, कभी गोपियों के रूप में, और कभी पार्वती के रूप में। इन पात्रों के माध्यम से, विद्यापति ने महिलाओं की महिमा, उनकी भक्ति और उनके प्रति सम्मान की भावना को उजागर किया है। महिला पात्रों का चित्रण उनके नाटकों में एक गहरी मानवतावादी दृष्टिकोण को दर्शाता है।
आज के समय में मिथिला में नाट्य कला
आज के इस आधुनिक युग में मिथिला में नाटक की परंपरा लगभग समाप्त हो चुकि है । अगर आप मिथिला से हैं तो आपने बचपन में देखा होगा बहुत सारे नाटक या रामायण मंडली गांव-गांव में अपने नाटय कला का प्रदशन करते थे । ये महिनो तक किसी गांव में रहकर लोगो का मनोरंजन और मिथिला कि सांस्कृतिक विरासत का प्रचार करते थे बदले में गांव के लोग इन्हे यथा संभव अनाज आदी देकर इन्हे पुरुस्कृत करते थे । लेकिन समय के साथ टेलिविजन एवम मोबाईल के लोकप्रिय होने के उपरांत इन नाट्य मंडलियों का अंत हो गया ।
महाकवि विद्यापति की मैथिली काव्य रचनाएँ – साभार – प्रॊ. शिव चन्द्र झा shiv.chandra@themithila.com
लेखक जाने माने संस्कृत भाषा के विद्वान हैंं, तथा दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के सेवानिवृत व्याख्याता हैं ।
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