प्राती गीत लिरिक्स : पारंपरिक मैथिली गीत – Maithili Parati Geet Lyrics

Parati Geet Lyrics | पराती लोकगीत - मैथिली प्राति गीत लिरिक्स

प्राती गीत लिरिक्स : पारंपरिक मैथिली गीत – Maithili Parati Geet Lyrics

उठि भोरे कहू गंगा गंगा, उठि भोरे कहू गंगा गंगा
उठि भोरे कहू गंगा गंगा, उठि भोरे कहू गंगा गंगा

छल एल पापी महाबली, जाय मगह मरि गेल।
ओकरा तन के कौआ कुकुर ने खाय, गीद्घ, गीदर देखि डराय।।
उठि भोरे कहू गंगा गंगा, उठि भोरे कहू गंगा गंगा

गलि गेल मांस हाड़ भेल बाहर, रोम रोम भेल विकलाई।
कणिका एक उडि़ पद पंकज, सुर विमान लाय धाई।।
देखू गंगा जी क महिमा जे, ओ कोना तरि जाई।।

उठि भोरे कहू गंगा गंगा, उठि भोरे कहू गंगा गंगा
उठि भोरे कहू गंगा गंगा, उठि भोरे कहू गंगा गंगा

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पंक्षी एक उड़ला गंगा में, ऊपर पांखि फहराई।
उठि भोरे कहू गंगा गंगा, उठि भोरे कहू गंगा गंगा
गेल बैकुण्ठ मुदित मन देखू, आरती सुर उतराई।
भोलाजी गंगाक महिमा, कहइत अधिक लजाई।।

जय चन्द्र झा हास्य और व्यंग्य लेखन में माहिर हैं, जिनका इस क्षेत्र में 20 वर्षों का अनुभव है। उनकी रचनाएँ मिथिला की संस्कृति, समाज और जीवन के विभिन्न पहलुओं पर हास्यपूर्ण व तीखे व्यंग्य के साथ गहरी छाप छोड़ती हैं।
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