जनकपुर धाम

जनकपुर धाम Janakpur dham

जनकपुर धाम – रामायण में वर्णित जनकपुर धाम का जितना वर्णन किया जाए कम है । यह माता सीता कि जन्म भुमि तथा श्री राम चंद्र की विवाह स्थली है । यहि वो मंदिर हैं जहां प्रभू राम ने शिव जी का धनुष तोडा था । जनकपुर काठमाण्डु के बाद नेपाल का सबसे बडा शहर है । जनकपुर के चारों ओर विश्वामित्र, गौतम, बाल्मीकि और याज्ञवल्क्य के आश्रम थे, जो अब भी किसी न किसी रूप में विद्यमान हैं।

जनकपुर भारत देश के बिहार राज्य के मधुबनी की सीमा से लगा हुआ है, जिसे मिथिला नरेश जनक की राजधानी कहा जाता है । विदेह राज्य के संस्थापक मिथिला वंश के महाराज सिरध्वज 22 में राजा थे, और वे अयोध्या के राजा दशरथ के समकालीन थे। राम की पत्नी माँ सीता मिथिला के जनक सिरध्वज (राजा जनक) की पुत्री थीं। रामायण और महाभारत जैसे प्राचीन महाकाव्य में राजा जनक की राजधानी जनकपुर बताया गया है। राजा जनक का प्राचीन महल जनकपुर से सात कोस दूर था।

मिथिला नगरी के स्थान पर जनकपुर धाम की ख्याति कैसे बढ़ी, और इसे राजा जनक की राजधानी के रूप में क्यों जाना जाता है,

इसके बारे में एक कथा है। कहा जाता है कि पवित्र जनक वंश का – कराल जनक के समय में नैतिक पतन हो गया था। अर्थशास्त्र में लिखा है कि कराल जनक ने ब्राह्मण कन्या का अपहरण किया, इसी कारण वह पुरे वंश के साथ मारा गया। कलंक जनक के वध के कारण जनक वंश के जो लोग बच गए, वे तराई के जंगलों में जाकर छिप गए। जहां वे लोग छिपे थे, उस स्थान को जनकपुर कहा जाने लगा (आयार्वत पटना, रविवार 25/8/68, पृष्ठ 9 के आधार पर)। अश्वघोष ने भी अपने ग्रंथ बुद्ध चरित्र में इसकी पुष्टि की है।

जनकपुर के प्रसिद्ध होने का प्रमुख कारण वहां माँ सीता का अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र श्रीराम के साथ विवाह होना है। हिन्दू धर्म में जनकपुर का बहुत महत्व है।

रामनवमी और विवाहपंचमी के समय में आज भी लाखों लोग यहाँ आते हैं। आज भी यहाँ माँ सीता का पावन मंदिर है तथा राम जी द्वारा टूटा हुआ धनुष भी है।

जनकपुर धाम के प्रमुख पर्यटन स्थल :-

जनकपुर धाम
  1. जानकी मंदिर (नौलखा मंदिर):
    जनकपुर में राम-जानकी के कई भव्य मंदिर स्थित हैं, जिनमें सबसे भव्य मंदिर का निर्माण टीकमगढ़ की महारानी वृषभानु कुमारी ने करवाया था। पुत्र प्राप्ति की इच्छा से उन्होंने पहले अयोध्या में ‘कनक भवन मंदिर’ का निर्माण करवाया, लेकिन जब पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई, तो गुरु की सलाह पर १८९६ ई. में जनकपुर में जानकी मंदिर बनवाना आरंभ किया। मंदिर निर्माण के पहले ही वर्ष में वृषभानु कुमारी को पुत्र की प्राप्ति हुई। नौ लाख रुपये के संकल्प पर बने इस मंदिर को ‘नौलखा मंदिर’ कहा गया, हालांकि इसके निर्माण में १८ लाख रुपये का खर्च हुआ। वृषभानु कुमारी के निधन के बाद, उनकी बहन नरेंद्र कुमारी ने इस कार्य को पूरा किया और बाद में वृषभानु कुमारी के पति से विवाह कर लिया। १२ वर्षों में मंदिर का निर्माण पूर्ण हुआ, लेकिन १८१४ में ही इसमें मूर्ति स्थापित कर पूजा शुरू कर दी गई।
  2. जानकी मंदिर के उत्तर में ‘अखंड कीर्तन भवन’ स्थित है, जहाँ १९६१ से निरंतर ‘सीताराम’ का कीर्तन हो रहा है। मंदिर के बाहरी परिसर में लक्ष्मण मंदिर है, जिसे जानकी मंदिर से भी प्राचीन माना जाता है। परिसर में राम-जानकी विवाह मंडप भी है, जिसमें १०८ खंभों और प्रतिमाओं से सजावट की गई है।
  3. विवाह मंडप (धनुषा):
    राम-सीता स्वंगवर स्थल। जनकपुर से 14 किमी दूर स्थित इस स्थान पर राम ने धनुष तोड़ा था। विवाह पंचमी पर विशेष आयोजन होता है।
  4. रत्ना सागर और अन्य कुंड:
    रत्ना सागर, अनुराग सरोवर, सीताकुंड जैसे तालाब। रत्ना सागर जानकी मंदिर से 9 किमी दूर है, और यहां पौराणिक धनुष की आकृति देखने की मान्यता है।
  5. दूधमती नदी:
    मंदिर से कुछ दूर ‘दूधमती’ नदी के बारे में कहा जाता है कि जुती हुई भूमि के कुंड से उत्पन्न शिशु सीता को दूध पिलाने के उद्देश्य से कामधेनु ने जो धारा बहायी, उसने उक्त नदी का रूप धारण कर लिया ।
  6. राम-जानकी मंदिर और संस्कृत विद्यालय:
    ज्ञानकूप नामक संस्कृत विद्यालय, जहाँ छात्रों के लिए निःशुल्क आवास और भोजन की सुविधा है।

कैसे पहुंचे जनकपुर धाम

  • वायुमार्ग – जनकपुर में अपना हवाई अड्डा भी है लेकिन यहां केवल छोटे विमान ही उतरते हैंं तथा यहां से वायुसेवा सिर्फ नेपाल के शहरो तक सीमित है । अगर आप भारत या अन्य किसी देश से जनकपुर जाना चाहते हैं तों सबसे नजदिक हवाईअड्डा भारत का दरभंगा हवाईअड्डा है । यहां से भारत के सभी मुख्य शहरो से नियमित हवाई सेवा उपलब्ध है । दुसरा विक्ल्प नेपाल का काठ्मांडु हवाई अड्डा है । दोनो हवाईअड्डा से नियमित प्राईवेट टेक्सी तथा बस कि सुविधा उपलब्ध है । अगर आप दरभंगा आते हैं तो यहां से सुबह ६ बजे से लेकर रात के ६ बजे तक बस कि सुविधा उपलब्ध है । बस भारत-नेपाल सीमा से पिपरौन तक आती और उसके उपरांत आप २०० मीटर चलकर सीमा के पार नेपाल पहुंच जाएगे । यहां से ई-रिक्सा अथवा बस आपको मिल जाएगी । पिपरौन सीमा से जनकपुर की दुरी मात्र १२ कि.मी. है ।
  • बस- भारत तथा नेपाल के प्रमुख शहरों से बस की नियमित सेवा उपलब्ध है । पटना, अयोध्या, काठ्मांडु इत्यादि शहरों से बस उपलब्ध है ।
  • रेलमार्ग – जनकपुर रेलवे स्टेशन से भारत के जयनगर सीमा तक प्रति-दिन दो रेलगाडी का परिचालन होता है । जयनगर रेलवे स्टेशन से भारत के सभी प्रमुख शहरो के लिये नियमीत रेलवे सेवा उपलब्ध हैं ।
  • निजी वाहन – दरभंगा से जनकपुर की दूरी लगभग 100 किलोमीटर है। दरभंगा रहिका -बैनिपट्टी उमगांव मार्ग का उपयोग सबसे आसान रास्ता है । बिहार की राजधानी पटना से इसका सीतामढ़ी के भिट्ठामोड़ होते हुये सीधा सड़क संपर्क है। पटना से इसकी दूरी 140 की मी है।

सीमा पार करने के लिए:

  • वाहन का वैध दस्तावेज़ (RC, ड्राइविंग लाइसेंस,): साथ रखें।
  • नेपाल में निजी वाहन चलाने के लिए सीमा पर “नेपाल परमिट” लेना होगा। इसे भंसार कहते हैं। शुल्क मामूली होता है।
  • पासपोर्ट या आधार कार्ड (भारत-नेपाल सीमा पर आमतौर पर आधार मान्य है) लेकर चलें।

यात्रियों के ठहरने हेतु यहाँ होटल एवं धर्मशालाओं का उचित प्रबंध है। यहाँ के रीति-रिवाज बिहार के जैसे ही हैं। वैसे प्राचीन मिथिला की राजधानी माना जाता है यह शहर। भारतीय पर्यटक के साथ ही अन्य देश के पर्यटक भी काफी संख्या में यहाँ आते हैं।

निष्कर्ष: जनकपुर धाम

जनकपुर का जानकी मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि यह इतिहास, संस्कृति और वास्तुकला का अद्भुत संगम भी प्रस्तुत करता है। महारानी वृषभानु कुमारी द्वारा पुत्र प्राप्ति की कामना से निर्मित यह मंदिर अपनी भव्यता, पौराणिक महत्व और निरंतर कीर्तन की परंपरा के लिए प्रसिद्ध है। राम-जानकी विवाह मंडप और 108 प्रतिमाओं वाला परिसर इस स्थान को और भी विशेष बनाते हैं। जानकी मंदिर न केवल नेपाल बल्कि भारत और समूचे हिंदू समाज के लिए श्रद्धा और गौरव का प्रतीक है।

जनकपुर धाम – साभार – प्रॊ. शिव चन्द्र झा shiv.chandra@themithila.com

लेखक जाने माने संस्कृत भाषा के विद्वान हैंं, तथा दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के सेवानिवृत व्याख्याता हैं ।

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प्रो. शिव चन्द्र झा, के.एस.डी.एस.यू., दरभंगा में धर्म शास्त्र के प्रख्यात प्रोफेसर रहे हैं। उनके पास शिक्षण का 40 से अधिक वर्षों का अनुभव है। उन्होंने मैथिली भाषा पर गहन शोध किया है और प्राचीन पांडुलिपियों को पढ़ने में कुशलता रखते हैं।
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