मनीगाछी का वाणेश्वरी मंदिर !

मनीगाछी का वाणेश्वरी मंदिर !

मिथिला में तंत्र साधकों के लिए एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है वाणेश्वरी भगवती शक्तिपीठ | यह तीर्थ स्थल मनीगाछी प्रखंड के  भंडारिसो-मकरंदा गाँव में स्थित है | वाणेश्वरी भगवती शक्तिपीठ के रूप में  पूरे  मिथिलांचल में प्रसिद्ध हैं |कहा जाता है कि सच्चे मन से जो भक्त इनके मंदिर में अपना माथा टेकता है वह खाली हाथ  वापस नहीं लौटता है | स्थानीय लोग इस स्थान को डीह कहते और यह गाँव की सतह से लगभग 10 फीट की उंचाई पर अवस्थित है | वाणेश्वरी भगवती स्थान मिथिला की एक ऐतिहासिक धरोहर भी है | स्थानीय विद्वान्  लोगों का कहना है कि कर्नाट वंश के जितने भी  राजा हुए वे अपना प्रशासकीय कार्य इसी डीह से करते थे |

कुछ विद्वानों का कहना है कि राजा शिव सिंह के गढ़ का इस वाणेश्वरी मंदिर का सम्बन्ध रहा है | घोड़दौर तालाब इस डीह से दो कि०मी० की दूरी पर स्थित है इस तालाब के पास  गोढ़यारी  गाँव है और गोढ़ियारी से पश्चिम एक कि०मी० की दूरी पर राघोपुर गाँव है जो किसी ऐतिहासिक घराने से सम्बन्ध रखता है |  वाणेश्वरी देवी की अनुपम मूर्ति माँ की प्राचीनता का बोध कराती है |

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मनोकामनाए पूरी करने वाली देवी

कहा जाता है कि दुराचारी राजाओं के अत्याचार से क्षुब्ध होकर पंडित वोण झा की पुत्री जो देखने में बहुत ही सुन्दर थी , वाणेश्वरी , प्रतिशोधस्वरुप पत्थर रूप में परिवर्तित हो गयीं| वाणेश्वरी देवी की मूर्ति समीप के के ही तालाब से निकली है जो इसकी सत्यता को स्पष्ट करता है | इस मूर्ति को स्थानीय लोगों ने तालाब से निकाल कर एक पीपल पेड़ के नीचे रखा और वहीँ पर भगवती की पूजा आराधना शुरू कर दी | कहा जाता है की बहुत से लोगों की मन्नतें भी वाणेश्वरी भगवती ने पूरी की हैं| इसके प्रमाण के रूप में वर्तमान काल में मंदिर के निर्माण कार्य से जुड़ा हुआ है |

दरभंगा की महारानी लक्ष्मीवती के द्वारा मंदिर का निर्माण

एक कहानी यह भी है कि दरभंगा के महाराजा स्व० लक्ष्मेश्वर सिंह की पत्नी महारानी लक्ष्मीवती ने वाणेश्वरी देवी से अपने देवर महाराज रामेश्वर सिंह एवं राम बहादुर श्री नाथ मिश्र के लिए एक पुत्र की मांग की थी | वाणेश्वरी भगवती के आशीर्वाद से दोनों को एक – एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई | महारानी लक्ष्मीवती ने इस डीह पर एक भव्य मंदिर की निर्माण करा दिया | इस मंदिर के पास जो शिलापट लगा हुआ है उससे स्पष्ट होता है कि मंदिर का निर्माण १९१२ ई० में हुआ था |

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वाणेश्वरी देवी मंदिर परिसर में रखी हुई अनेक मूर्तियाँ अपने आप में बहुत ऐतिहासिक सत्यताओं को समेटे हुई है | इस स्थान में मूर्तियों की बनाबट से तथा पत्थरों की पहचान से इसके निर्धारण काल की गनना करना संभव है | कहा जाता है कि इस स्थान पर जाने के लिए सड़क निर्माण करते समय चित्तीकौड़ी से भरा हुआ एक बड़ा काला मटका सहित बहुत से वस्तुएं मिली हैं जो यह स्पष्ट करता है कि वानेश्वरी देवी मंदिर हजारों वर्ष पुराना है |

मंदिर में शारदीय नवरात्रा एवं रामनवमी बहुत ही धूम धाम से मनाया जाता है | बहुत से लोग सिमरिया घाट से गंगाजल लाकर इस भगवती का जलाभिषेक करते हैं | यहाँ ब्राम्हण भोजन एवं कन्या भोजन सालों भर चलता रहता है | यहाँ के लोग इस शक्तिपीठ स्थल को पर्यटक स्थान के रूप में विकसित करने की इच्छा रखते हैं |

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जय चन्द्र झा हास्य और व्यंग्य लेखन में माहिर हैं, जिनका इस क्षेत्र में 20 वर्षों का अनुभव है। उनकी रचनाएँ मिथिला की संस्कृति, समाज और जीवन के विभिन्न पहलुओं पर हास्यपूर्ण व तीखे व्यंग्य के साथ गहरी छाप छोड़ती हैं।
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