मिथिला जनपद कॆ स्थापना काल का निर्णय -वॆद ग्रन्थ विश्व कॆ पुस्तकाल्य का प्राचीनतम् ग्रन्थ माना गया है | उसमॆं गंगा, यमुना आदि नदियॊं का यथास्थान उल्लॆख पाया गया है लॆकिन पर्वत राज हिमालय का नहीं | आधुनिक युग कॆ सांइस कॆ जानकारॊ नॆ यह कहा की हिमालय की उत्पती सर्वप्रथम ज्वालामुखी कॆ रुप मॆं हुई | इस कारणवश आज जहाँ मिथिला है वहाँ आज सॆ पचास लाख वर्ष पुर्व एक दलदली भूमी थी |
कालान्तर मॆं वैवस्व्त मनु कॆ पुत्र इक्ष्वाकु नॆ अपनी राजधानी अयॊध्या बनायी थी | इक्ष्वाकु कॆ कई पुत्र हुए, जिनमॆं प्रथम पुत्र विकुक्षी नॆ सूर्यवंश की मूल शाखा अयॊध्या का शासन सूत्र अपनॆ हाथ मॆं लिया तथा दुसरॆ पुत्र निमि, जॊ की महत्वाकांक्षी युवक था, नई भूमी की खॊज मॆं (कॊलम्बस की भाँती) पूर्व की ऒर अग्रसर हुआ | उसी निमी कॆ पुत्र मिथि हुए, जिसनॆ पूर्वॊतर भारत मॆं सदानीरा नदी कॊ पार कर मिथिला नगरी एवं जनपद की स्थापना की, जिसका जिक्र पौराणिक कथाऒं सॆ मिलता है | इस काल गणना कॊ प्राचीन भारत कॆ काल गणना कॆ अनुसार किया गया जिससॆ कारन आधुनिक विद्वान माननॆ सॆ हिचकिचातॆ हैं | परन्तू इसॆ ना माननॆ का उनकॆ पास भी कुछ खास जानकारी नहीं हैं |
डा. ऒल्डॆनबर्ग नॆ अपनॆ ‘बुद्ध’ नामक ऎतिहासिक ग्रन्थ मॆं अंकित किया है कि संहिता काल मॆं आर्य समाज का कॆन्द्र भलॆ ही सरस्वती एवं दृशद्वती नदियॊं कॆ बिच का भू भाग रहा हॊ किन्तु ब्राह्मण काल मॆं उस संस्कृति का कॆन्द्र कुरु पंचाल एवं उसकॆ आस पास कॆ प्रदॆशॊ मॆं था, जिसॆ स्मृतिकार ‘ब्राह्मर्षि दॆश कहतॆ है | ‘शतपथ’ ब्रह्मण ‘ सॆ स्पष्ट हॊता है कि उत्तर ब्रह्मण काल मॆं आर्यॊ नॆ पूर्व की ऒर आगॆ बढकर सदानीरा कॊ पार किया और उसकॆ पूर्व मॆं विदैह भूमि अथवा मिथिला प्रदॆश मॆं आर्य संस्कृति का विकास, विस्तार तथा प्रसार किया |
प्रॊफॆसर ववरण नॆ अपनॆ ‘इण्डियन स्टडीज’ नामक ग्रन्थ मॆं यह प्रतिपादन किया कि ब्राह्मण आर्यॊ कॆ पूर्व की ऒर अभियान की तीन अवस्थाएँ सिद्व हॊती है | प्रथम अभियान मॆं सप्तसिन्धु (पंजाब) प्रदॆश मॆं उन्हॊनॆ अपना विस्तार विकास किया और द्वितीय अभियान मॆं वॆ सरस्वती नदी कॆ किनारॆ तक पूर्व दिशा मॆं बढ आयॆ | तृतीय अभियान मॆं आर्य राजा एवं महर्षि सदानीरा कॆ किनारॆ तक पहुँच गयॆ और उसकॊ पारकर पूर्वीय क्षॆत्र मॆं भी उन्हॊनॆ अपनी सत्ता स्थापित कर ली | यह अभियान वैदिक संहिता युग कॆ निकट भविष्य मॆं ब्राह्मण काल मॆं हुआ था, ऎसा ब्राह्माण ग्रन्थॊ सॆ पता चलता है |
प्राचिन ग्रंथो जैसे पुराणो, रामायण एवम महाभारत मै मिथिला का कई प्रसंगो मै जिक्र आया है । रामायण का में मां सीता तथा राम के विवाह का जिक्र तथा महाभारत में भगवान बलराम का राजा जनक जी के यहांं आने कि विस्तृत कथा मिलती है । आइये अब हम इसपर विस्तार से प्रकाश डालते हैं ।
जब भी हम अयोध्या राज्य और महाराज दशरथ का जिक्र करते हैं तो उस समय हमे विदेह पुरी के राज्य मिथिला एवं राजा जनक का स्मरण हो जाता है । ये दोनो रामायण एवम धार्मिक स्थलो का आधार हैं । प्राचिन काल से यह राज्य उत्तरी बिहार एवम नेपाल के तराई इलाके का ईलाका माना जाता है ।
रामायण-काल में मिथिला
रामायण-काल में मिथिला जनपद अत्यधिक ख्यातिप्राप्त था, जहाँ माता सीता के पिता धर्म स्वरुप राजा जनक का शासन था। जनकपुर को मिथिला भी कहा जाता था। मिथिला में कमतौल समीप अहिल्याश्रम स्थित है जहां गौतम ऋषि अपनि पत्नि के साथ निवास करते थे । भगवान राम द्वारा माता अहिल्या के उद्धार की कथा भी रामायण में मिलती है ।
वाल्मीकि रामायण में ही यह वर्णन मिलता है कि मिथिला के राजवंश के प्रवर्तक निमि थे। उनके पुत्र मिथि तथा मिथि के पुत्र जनक थे।
रामायण में उल्लेखित है कि मिथिला के निवासी विनम्र और अतिथि-सत्कार में निपुण थे। इस ग्रंथ के अनुसार, महर्षि विश्वामित्र राम और लक्ष्मण को साथ लेकर चार दिन की यात्रा के उपरांत मिथिला पहुंचे थे।
पुराणों में मिथिला का उल्लेख
विभिन्न पुराणो में मिथिला का उल्लेख देखने को मिलता है । वायु पुराण तथा विष्णु पुराण में वर्णित है कथा के अनुसार राजा निमि को मिथिला का प्रथम राजा थे तथा उनके पुत्र इक्ष्वाकु वंशी राजा मिथि के नाम पर इस राज्य का नाम मिथिला रखा गया ।
महाभारत -काल में मिथिला
महाभारत में भीम से द्वारा मिथिलाराज जनक के पराजय का उल्लेख है साथ ही भगवान श्री कृष्ण के पाण्ड्वो के साथ इस नगर के भ्रमण का की जिक्र किया गया है । महाभारत में ही राजा जनक के विदेह कहलाने का भी उल्लेख है ।
जैन तीर्थ
जैन ग्रंथ विविधकल्प सूत्र में मिथिला का वर्णन जैन तीर्थ के रूप में किया गया है। इस ग्रंथ से यह जानकारी मिलती है कि मिथिला का एक अन्य नाम जगती भी था। इसके निकट कनकपुर नामक नगर स्थित था। जैन धर्म के तीर्थंकर मल्लिनाथ और नेमिनाथ ने यहीं दीक्षा ग्रहण की थी और यहीं उन्हें कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई। इसके अतिरिक्त, अकंपित का जन्म भी यहीं हुआ था।
मिथिला का धार्मिक और भौगोलिक महत्व गंगा और गंडकी नदियों के संगम से और बढ़ जाता है। जैन तीर्थंकर महावीर ने भी मिथिला में निवास किया था और अपने परिभ्रमण के दौरान यहां आते-जाते थे। जिस स्थल पर राम और सीता का विवाह हुआ था, वह शाकल्य कुण्ड के नाम से प्रसिद्ध था।
जैन ग्रंथ सूत्र-प्रज्ञापणा में मिथिला को मिलिलवी के नाम से भी उल्लेखित किया गया है।
मिथिला जनपद कॆ स्थापना काल का निर्णय तीरभुक्ति (तिरहुत)
वृहद्विष्णुपुराण के मिथिला-माहात्म्य में मिथिला को तीरभुक्ति के नाम से भी उल्लेखित किया गया है। मिथिला का यह नाम दो विशेष आधारों पर दिया गया है:
- मिथि के नाम से मिथिला।
- अनेक नदियों के तट पर स्थित होने और उनके पोषण से समृद्ध होने के कारण इसे तीरभुक्ति कहा गया।
इस ग्रंथ में गंगा से लेकर हिमालय के बीच स्थित मिथिला क्षेत्र का वर्णन किया गया है। मिथिला में मुख्य रूप से 15 नदियों की स्थिति मानी गई है, और उनके नाम भी विस्तार से गिनाए गए हैं। जो इस प्रकार हैं ।
- कोसी
- हिमालय से निकलने वाली महत्वपूर्ण नदी, जिसे “सorrow of Bihar” भी कहा जाता है।
- कमला
- मधुबनी और दरभंगा जिलों से होकर बहने वाली नदी।
- विण्ववती (विल्ववती = बेलौंती)
- प्राचीन नदी, जिसका सटीक स्थान वर्तमान में स्पष्ट नहीं है।
- यमुना
- जिसे “जमुने” भी कहते हैं। यह अधवारा समूह की नदी है जो छोटी बागमती में मिलती है।
- नेपाल में जनकपुर के पास से बिहार के मधुबनी जिले तक बहती है।
- गैरिका (गेरुआ)
- बाद में इसके कई धाराएँ प्रचलित हुईं, जैसे: फरैनी, कजला, कमतारा, गोरोभगड़, चकरदाहा, नीतिया धार आदि।
- जलाधिका वाग्मती (बागमती)
- दरभंगा और समस्तीपुर जिलों से गुजरने वाली प्रमुख नदी।
- व्याघ्रमती (छोटी बागमती)
- बघोर नदी से बनने वाली यह नदी दरभंगा के बीच से उत्तर-दक्षिण दिशा में बहती है।
- विरजा
- मिथिला की ऐतिहासिक नदी।
- गण्डला (गण्डक/बूढ़ी गण्डक)
- यह नदी गंगा की एक सहायक नदी है।
- इक्ष्वावती
- संभवतः लच्छा धार या बैती नदी।
- कभी कोसी की मुख्य धारा भी इसी मार्ग से बहती थी।
- लक्ष्मणा (लखनदेई)
- मधुबनी जिले से गुजरने वाली नदी।
- गण्डकी
- गंगा की प्रमुख सहायक नदी।
- अकुक्षि वर्त्तिनी (भुतही बलान)
- मिथिला क्षेत्र में बहने वाली महत्वपूर्ण नदी।
- जङ्घा (संभवतः धेमुरा)
- मिथिला की एक और प्राचीन नदी।
- जीवापिका (जीववत्सा = जीबछ)
- उत्तरी बिहार में बहने वाली प्रमुख नदी।
वृहद्विष्णुपुराण में मिथिला की सीमा
वृहद्विष्णुपुराण में मिथिला की सीमा का विस्तार स्पष्ट रूप से बताया गया है:
श्लोक:
कौशिकीन्तु समारभ्य गण्डकीमधिगम्यवै।
योजनानि चतुर्विंश व्यायामः परिकीर्त्तितः॥
गङ्गा प्रवाहमारभ्य यावद्धैमवतम्वनम्।
विस्तारः षोडशप्रोक्तो देशस्य कुलनन्दन॥[21]
अर्थ:
- पूर्व में: कोसी नदी से आरंभ।
- पश्चिम में: गंडकी नदी तक।
- उत्तर में: हिमालय के वन (तराई क्षेत्र)।
- दक्षिण में: गंगा नदी।
- मिथिला का विस्तार पूर्व-पश्चिम में 24 योजन और उत्तर-दक्षिण में 16 योजन बताया गया है।
महाकवि चन्दा झा का मैथिली रूपांतरण
महाकवि चन्दा झा ने उक्त श्लोक का मैथिली भाषा में रूपांतरण किया है:
गंगा बहथि जनिक दक्षिण दिशि पूब कौशिकी धारा।
पश्चिम बहथि गंडकी उत्तर हिमवत वन विस्तारा॥
वर्तमान क्षेत्रफल
प्राचीन सीमाओं के अनुसार, मिथिला का भूभाग वर्तमान में नेपाल के तराई क्षेत्र और भारत के बिहार राज्य के निम्नलिखित जिलों को सम्मिलित करता है:
- पश्चिमी चंपारण
- पूर्वी चंपारण
- शिवहर
- सीतामढ़ी
- मुजफ्फरपुर
- वैशाली
- समस्तीपुर
- बेगूसराय
- दरभंगा
- मधुबनी
- सुपौल
- मधेपुरा
- सहरसा
- खगड़िया
- भागलपुर (आंशिक रूप से)
प्रस्तावित मिथिला राज्य
मिथिला की प्राचीन सीमा और ऐतिहासिक संदर्भों के आधार पर कोसी नदी को इसकी पूर्वी सीमा माना गया है। कोसी नदी का प्राचीन काल में अनियंत्रित विस्तार और कोई स्थिर मार्ग न होने के कारण, यह सीमा अधिक प्रसिद्ध हुई।
पूर्वी बिहार के हिस्से, जैसे:
- अररिया
- किशनगंज
- पूर्णिया
- कटिहार
भी मिथिला का स्वाभाविक भाग माने जाते हैं।
जय मिथिला! जय भारत!
मिथिला जनपद कॆ स्थापना काल का निर्णय साभार – प्रॊ. शिव चन्द्र झा shiv.chandra@themithila.com
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