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मैथिली भाषा – इतिहास और उत्पत्ति

मैथिली भाषा - इतिहास और उत्पत्ति

मैथिली भाषा – इतिहास और उत्पत्ति -मैथिली भाषा भारत के बिहार और झारखंड राज्यों के साथ-साथ नेपाल के तराई क्षेत्र में बोली जाने वाली एक प्रमुख भाषा है। यह भाषा हिंद-आर्य भाषा परिवार की सदस्य है और यह मगधी प्राकृत से विकसित हुई और मध्यकालीन भारत में यह भाषा मुख्य रूप से मिथिला क्षेत्र में प्रचलित हुई।। मैथिली का मूल स्रोत संस्कृत है, जिसके शब्द “तत्सम” और “तद्भव” रूप में मैथिली में पाए जाते हैं। इस भाषा की मिठास और मोहकता इसे खास बनाती है।

मैथिली का भौगोलिक विस्तार

भारत में मैथिली मुख्य रूप से बिहार के दरभंगा, मधुबनी, सीतामढ़ी, समस्तीपुर, मुजफ्फरपुर, बेगूसराय, पूर्णिया, कटिहार, किशनगंज, सहरसा, सुपौल, मधेपुरा, भागलपुर, अररिया, वैशाली, शिवहर और झारखंड के रांची, धनबाद, जमशेदपुर, बोकारो और देवघर जिलों में बोली जाती है। नेपाल में यह धनुषा, सिराहा, सप्तरी, महोत्तरी, सुनसरी, सर्लाही, मोरंग और रौतहट जिलों में प्रमुखता से बोली जाती है।

उत्पत्ति और इतिहास

मैथिली की उत्पत्ति मागधी प्राकृत से हुई है। इसका संबंध बांग्ला, असमिया और उड़िया भाषाओं से भी है। यह भाषा ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत प्राचीन है और त्रेता युग में मिथिलानरेश राजा जनक की राज्यभाषा थी। रामायण में भी मैथिली का उल्लेख मिलता है। मैथिली भाषा के नाम पर ही माता सिता को मैथिली कहा जाता है ।

मैथिली भाषा के साहित्यिक विकास का आरंभ लगभग 700 ईस्वी से माना जाता है। विद्यापति मैथिली के सबसे प्रमुख कवि माने जाते हैं। विद्यापति ने संस्कृत, अवहट्ट और मैथिली में रचनाएँ कीं। उनका साहित्य मैथिली के विकास में मील का पत्थर साबित हुआ।

आधुनिक समय में मान्यता

भारत सरकार ने 22 दिसंबर 2003 को मैथिली भाषा को आधिकारिक रूप से संविधान कि आठवीं अनुसूची में शामिल किया । यह कदम मैथिली भाषा और इसके बोलने वालों के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि थी। यह कदम मैथिली भाषा के संरक्षण और विकास के लिए महत्वपूर्ण था। इससे न केवल भाषा को मान्यता मिली, बल्कि इसके साहित्य, संस्कृति और शिक्षा के क्षेत्र में भी सुधार की उम्मीद बढ़ी। झारखंड राज्य ने मैथिली को अपनी द्वितीय राजभाषा का दर्जा दिया है। नेपाल में भी इसे क्षेत्रीय और प्रादेशिक भाषा का दर्जा प्राप्त है।

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मैथिली भाषा को मान्यता मिलने से सरकारी नौकरियों में भी इसे एक महत्वपूर्ण भाषा के रूप में देखा जाने लगा, जिससे मैथिली भाषी युवाओं के लिए अवसर बढ़े।

मैथिली भाषा की लिपि और लेखन शैली

तिरहुता लिपि

मैथिली भाषा की पारंपरिक लिपि तिरहुता (या मिथिलाक्षर) है। तिरहुता लिपि का उपयोग प्राचीन समय से ही मैथिली साहित्य और लेखन में होता आया है। यह लिपि ब्राह्मी लिपि से विकसित हुई है और इसका रूप देवनागरी लिपि से मिलता-जुलता है।

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तिरहुता लिपि की विशेषताएँ:
  • अक्षरों का स्वरूप: तिरहुता लिपि में अक्षर देवनागरी लिपि की तरह ही होते हैं, लेकिन इनके लिखने का तरीका थोड़ा अलग होता है।
  • व्यवहारिकता: तिरहुता लिपि को समझने और लिखने के लिए देवनागरी जानने वाले लोगों को बहुत अधिक कठिनाई नहीं होती।
  • ऐतिहासिक महत्व: तिरहुता लिपि का उपयोग प्राचीन मैथिली साहित्य, धार्मिक ग्रंथों, और शिलालेखों में किया गया है।

देवनागरी लिपि

वर्तमान समय में मैथिली भाषा को देवनागरी लिपि में भी लिखा जाता है। यह लिपि भारत में सबसे अधिक प्रचलित है और इसे अधिकतर लोग आसानी से पढ़ और समझ सकते हैं।

देवनागरी लिपि की विशेषताएँ:
  • समाज में व्यापक उपयोग: देवनागरी लिपि हिंदी, संस्कृत, मराठी और नेपाली जैसी भाषाओं में भी प्रयोग होती है, इसलिए इसे अधिक लोग समझ सकते हैं।
  • साहित्यिक उपयोग: मैथिली भाषा का आधुनिक साहित्य, समाचार पत्र, पत्रिकाएँ और पाठ्यपुस्तकें अधिकतर देवनागरी लिपि में लिखी जाती हैं।

मैथिली लेखन शैली

मैथिली लेखन शैली में साहित्यिक और सांस्कृतिक धरोहर का समृद्ध मिश्रण है। इसकी लेखन शैली में निम्नलिखित प्रमुख विशेषताएँ होती हैं:

  • साहित्यिक विविधता -मैथिली साहित्य में विभिन्न प्रकार की लेखन शैली पाई जाती है, जिसमें कविताएँ, नाटक, कथा, उपन्यास, धार्मिक ग्रंथ, और लोक साहित्य शामिल हैं। यह भाषा अपनी मधुर ध्वनि और अभिव्यक्तियों के लिए जानी जाती है।
  • कविताएँ और गीत -मैथिली में काव्य और गीतों की एक लंबी परंपरा है। महाववि विद्यापति जैसे कवियों ने प्रेम, भक्ति और प्रकृति पर आधारित रचनाएँ लिखी हैं जो आज भी लोकप्रिय हैं। मैथिली गीतों में राग और ताल का विशेष महत्व होता है।
  • कथा और नाटक – मैथिली साहित्य में कथाएँ और नाटक भी महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। मिथिला की सांस्कृतिक और सामाजिक जीवन को दर्शाने वाली रचनाएँ आज भी प्रचलित हैं। यह नाटक और कथाएँ समाज के विभिन्न पहलुओं को उभारती हैं।

मैथिली की विशिष्टताएँ

मैथिली भाषा की मिठास, सरलता और मोहकता इसे अन्य भाषाओं से अलग बनाती है। यह नेपाली, हिंदी और बांग्ला से कई मामलों में मेल खाती है, लेकिन इसकी अपनी अलग पहचान और शब्दावली है। मैथिली भाषा की शब्दावली बहुत समृद्ध है। इसमें संस्कृत, हिंदी और अन्य स्थानीय भाषाओं से शब्द लिए गए हैं। मैथिली भाषा की कई क्षेत्रीय बोलियाँ होती हैं, जो इसे और भी विविधतापूर्ण बनाती हैं। ये बोलियाँ विभिन्न क्षेत्रीय विशेषताओं को दर्शाती हैं।

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वर्तमान स्थिति और प्रयास

आज के समय में मैथिली भाषा के प्रचार-प्रसार और विकास के लिए कई प्रयास किए जा रहे हैं। गैर-सरकारी संस्थाएँ और मीडिया इसमें अहम भूमिका निभा रही हैं। 15-20 रेडियो स्टेशन मैथिली में कार्यक्रम प्रसारित करते हैं। नेपाल के कुछ प्रमुख टीवी चैनलों, जैसे नेपाल 1, सागरमाथा चैनल, तराई टीवी और मकालू टीवी पर मैथिली भाषा में कार्यक्रम प्रसारित किए जाते हैं।

मैथिली सिनेमा और धारावाहिक

मैथिली सिनेमा और धारावाहिकों का प्रचलन भी बढ़ रहा है। कई मैथिली फिल्में और धारावाहिक बड़े पर्दे और टेलीविजन पर प्रदर्शित हो रहे हैं। इससे मैथिली भाषा को नए माध्यमों में पहचान मिल रही है और युवा पीढ़ी के बीच इसकी लोकप्रियता बढ़ रही है। YouTube पर भी कई मैथिली कलाकार अपने कला का प्रर्दशन कर रहे हैं ।

साहित्य और संस्कृति में योगदान

प्राचीन साहित्य

मैथिली भाषा का साहित्यिक इतिहास अत्यंत समृद्ध है और यह लगभग एक हजार वर्षों तक फैला हुआ है। विद्यापति, जो 14 वीं शताब्दी के एक महान कवि थे, मैथिली साहित्य को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया। उनके प्रेम और भक्ति के गीत आज भी लोकप्रिय हैं।

  1. विद्यापति: विद्यापति को मैथिली का सबसे महान कवि माना जाता है। उन्होंने प्रेम, भक्ति और प्रकृति पर आधारित कई गीत और कविताएँ लिखीं।
  2. गोस्वामी तुलसीदास: तुलसीदास ने मैथिली में भी कुछ कविताएँ और दोहे लिखे हैं, जो भक्ति और धार्मिक भावना को प्रकट करते हैं।
  3. सीताराम झा: आधुनिक मैथिली साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

आधुनिक साहित्य

वर्तमान समय में भी मैथिली साहित्य का महत्वपूर्ण योगदान है। कई लेखक और कवि अपने साहित्यिक कृतियों के माध्यम से भाषा को समृद्ध कर रहे हैं।

  1. हरिमोहन झा: उनकी रचना “खट्टा-मीठा” और “प्रणय-प्रसून” आज भी साहित्य प्रेमियों के बीच लोकप्रिय हैं।
  2. राजकमल चौधरी: उनके काव्य संग्रह और कहानियाँ मैथिली साहित्य को आधुनिक दृष्टिकोण से परिपूर्ण करती हैं।

संस्कृति में योगदान

लोककला और संगीत

मैथिली संस्कृति में लोककला और संगीत का महत्वपूर्ण स्थान है। मैथिली के लोकगीत, लोकनृत्य और संगीत देश-विदेश में प्रचलित हैं।

  1. मधुबनी चित्रकला: मिथिला की मधुबनी चित्रकला विश्व प्रसिद्ध है। यह कला विशेष रूप से महिलाओं द्वारा की जाती है और इसमें धार्मिक, सामाजिक और प्राकृतिक दृश्य चित्रित होते हैं।
  2. लोकगीत और लोकनृत्य: मैथिली के लोकगीत जैसे “सोहर”, “समाचकेवा” और लोकनृत्य जैसे “झूमर” और “घुमर” बहुत लोकप्रिय हैं।
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धार्मिक और सामाजिक समारोह

मैथिली संस्कृति में कई धार्मिक और सामाजिक समारोह होते हैं जो इसकी सांस्कृतिक धरोहर को प्रकट करते हैं।

  1. छठ पूजा: छठ पूजा मिथिला क्षेत्र का एक प्रमुख त्योहार है जिसे बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।
  2. विवाह और पारंपरिक समारोह: मिथिला क्षेत्र के विवाह और अन्य पारंपरिक समारोह में मैथिली संस्कृति की झलक मिलती है। इसमें विशेष रीति-रिवाज और परंपराएँ शामिल होती हैं।

साहित्य और संस्कृति के संरक्षण के प्रयास

साहित्यिक संस्थान और संगठन

मैथिली भाषा के साहित्य और संस्कृति के संरक्षण के लिए कई संस्थान और संगठन काम कर रहे हैं। ये संस्थान साहित्यिक सम्मेलन, कार्यशालाएँ और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं।

  1. मिथिला विश्वविद्यालय: मिथिला विश्वविद्यालय मैथिली भाषा और साहित्य के अध्ययन और शोध के लिए महत्वपूर्ण संस्थान है।
  2. मैथिली साहित्य परिषद: यह संगठन मैथिली साहित्य के विकास और प्रचार-प्रसार के लिए काम कर रहा है।

डिजिटल और ऑनलाइन प्रयास

आज के डिजिटल युग में मैथिली भाषा का प्रचार-प्रसार ऑनलाइन माध्यमों से भी हो रहा है। सोशल मीडिया, वेबसाइट्स, और ऐप्स के माध्यम से मैथिली साहित्य और संस्कृति की सामग्री उपलब्ध कराई जा रही है।

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स: सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर मैथिली भाषा के पेज और समूह हैं जो भाषा को संरक्षित और प्रचारित कर रहे हैं।

मैथिली वेबसाइट्स और ब्लॉग्स: कई वेबसाइट्स और ब्लॉग्स मैथिली साहित्य और संस्कृति के बारे में जानकारी प्रदान कर रहे हैं।

निष्कर्ष

मैथिली भारत और नेपाल में एक समृद्ध और मिठास भरी भाषा है। यह भाषा अपनी सांस्कृतिक धरोहर और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के लिए जानी जाती है। इसके संरक्षण और संवर्धन के लिए सतत प्रयास किए जाने चाहिए, ताकि यह आने वाली पीढ़ियों तक अपनी महत्ता बनाए रखे।

मैथिली भाषा – इतिहास और उत्पत्ति साभार – प्रॊ. शिव चन्द्र झा shiv.chandra@themithila.com

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Prof Of Dharma Shastra In KSDSU Darbhanga . Has A Over 40 Year Experience In Teaching and also done research in Maithili. Able to read pandulipi
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