तो क्या केवल पुस्तकों में रह जायेगा अहिल्या स्थान और विद्यापति डीह ?

तो क्या केवल पुस्तकों में रह जायेगा अहिल्या स्थान और विद्यापति डीह ?

मिथिला की पुण्य धरती पौराणिक ,  सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक धरोहरों के लिए प्रसिद्ध है | यह महाभारतकाल से लेकर रामायणकाल तक के कई प्रसंगों को अपनी गोद में समेटे हुई है | इसलिए महाभारत और रामायण के प्रसंगों से सम्बंधित मिथिलांचल के स्थान लोगों के बीच आस्था और विश्वास का केंद्र बन गया है | इसके वाबजूद भी ये सभी स्थान आज राजनीतिक उपेक्षा के शिकार हो गए हैं |राजनीतिक उपेक्षा के कारण यहाँ कि प्राचीन धरोहरें अब खंडहर बनती जा रही हैं |

स्थिति ऐसी है कि एक दिन इन प्राचीन ऐतिहासिक धरोहरों का नामोनिशान मिट जाएगा | प्रत्येक चुनाव उपरांत सभी दलों के नेता आते हैं , इन धरोहरों की बिकास एवं संरक्षण की बड़ी-बड़ी बाते करते हैं और  चुनाव जीतने के बाद अपना वादा भूल जाते हैं | जिसके परिणामस्वरूप ये सभी ऐतिहासिक स्थल पर्यटन स्थान का रूप नहीं ले सकें है | इसकी स्पष्टतः वजह यह है कि विभिन्न राजनीतिक दलों  में इसको लेकर राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव है | लोगों के बीच भी अब यह एक चुनावी  मुद्दा नहीं गया है |

इस लेख में हम मिथिला की महत्वपूर्ण धरोहरों की वर्तमान स्थिति और उनके संरक्षण के लिए आवश्यक उपायों पर चर्चा करेंगे।

उपेक्षा का शिकार हो रहा है अहिल्या स्थान

उपेक्षा का शिकार हो रहा है अहिल्या स्थान
उपेक्षा का शिकार हो रहा है अहिल्या स्थान

मिथिला के अनेक ऐतिहासिक और पौराणिक धरोहरें हैं में से एक है अहिल्यास्थान जो दरभंगा  जिला के जाले प्रखंड के अंतर्गत अहियारी गाँव में स्थित है | यह कमतौल रेलवे स्टेशन से तीन कि०मी० पश्चिम में अवस्थित है |कहा जाता है कि भगवान् रामायण काला में भगवान् श्री राम अपने गुरु  विश्वामित्र के साथ एक बार जनकपुर इसी रास्ते से जा रहे थे तो वे अहिल्यास्थान में रुके थे| इसी स्थान पर भगवान् राम ने गौतम ऋषि की श्रापित पत्नी अहिल्या को श्राप से मुक्ति कराया था |

एक अन्य कथानुसार एकबार मिथिला में भीषण अकाल पड़ गया | लोगों के साथ-साथ ऋषि मुनियों के लिए भी भोजन का संकट हो गया | गौतम ऋषि ने अपने शक्ति ,  तप और योग बल से ऋषि मुनियों के लिए भोजन का प्रबंध किया | आज वही स्थान सरकारी उपेक्षा का शिकार बन गया है | हद तो यह है की  अहिल्यास्थान को आज तक एक पर्यटकस्थल भी नहीं बनाया जा सका है | कुछ सौन्दर्यीकरण के कार्यो  को अगर  छोड़ दिया जाए तो बाकी कार्यो में यह अब भी अधूरा ही है |

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ग्राम  बिस्फी स्थित विद्यापति डीह बन रहा है खंडहर

ग्राम  बिस्फी स्थित विद्यापति डीह बन रहा है खंडहर
ग्राम  बिस्फी स्थित विद्यापति डीह बन रहा है खंडहर

इसी प्रकार मैथिली के प्रसिद्ध कवि जिन्हें कवि कोकिल की उपाधि दी गयी अर्थात विद्यापति जिनके यहाँ भगवान् शिव उगना का रूप धारण कर नौकर का काम करते थे | विद्यापति का जन्म स्थान बिस्फी गाँव भी कमतौल स्टेशन से पांच कि०मी० की दूरी पर पूरब में स्थित है |

यह  भी सरकारी उपेक्षा का शिकार हो रहा है | विद्यापति की डीह तो अब खंडहर बनती जा रही है और इसे बचाना अत्यंत ही आवश्यक है | लेकिन इसे देखने वाला कोई नहीं |

जगह – जगह तो विद्यापति के नाम पर समारोह आयोजित किये जाते हैं | उस समारोह में बड़े -बड़े नेता , मंत्री , केन्द्रीय मंत्री भाग लेते हैं और इस समारोह में भाषण देते हैं कि जब वे देश-विदेश के भ्रमण पर जाते हैं तो वहां के पुस्तकालयों में , विश्वविद्यालयों में विद्यापति का बर्णन देखने का मौक़ा मिलता हैं लेकिन विद्यापति के जन्म -स्थान विस्फी को देखने का मौक़ा किसी को नहीं मिलता है |

राजनीतिक उपेक्षा और संरक्षण का अभाव

मिथिला क्षेत्र की इन ऐतिहासिक और पौराणिक धरोहरों की दुर्दशा का प्रमुख कारण राजनीतिक उपेक्षा है। हर चुनाव के समय राजनीतिक दल इन धरोहरों के विकास और संरक्षण के बड़े-बड़े वादे करते हैं, लेकिन चुनाव समाप्त होते ही ये वादे धूल में मिल जाते हैं।

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अहिल्या स्थान और विद्यापति डीह जैसे स्थल पर्यटन स्थल के रूप में विकसित हो सकते थे, लेकिन इच्छाशक्ति के अभाव में ऐसा नहीं हो पाया। सरकारी स्तर पर किए गए सौंदर्यीकरण कार्य भी अधूरे रह गए हैं। स्थानीय लोगों और संगठनों ने भी इन धरोहरों के संरक्षण के लिए आवाज उठाई है, लेकिन उनका प्रयास पर्याप्त नहीं है।

पर्यटन के विकास की संभावनाएं

अगर मिथिला की इन धरोहरों को संरक्षित और विकसित किया जाए, तो यह क्षेत्र न केवल सांस्कृतिक धरोहरों को बचा सकता है, बल्कि पर्यटन के क्षेत्र में भी प्रगति कर सकता है।

पर्यटक स्थल के रूप में विकास

  1. इन्फ्रास्ट्रक्चर का विकास:
    • अहिल्या स्थान और विद्यापति डीह तक पहुंचने के लिए सड़कों का निर्माण और रेलवे कनेक्टिविटी को बेहतर बनाया जाए।
    • इन स्थलों के आसपास स्वच्छता और बुनियादी सुविधाओं की व्यवस्था की जाए।
    • इन स्थलों को राष्ट्रीय धरोहर का दर्जा दिया जाए।
    • पर्यटन मंत्रालय को इन स्थलों के विकास की जिम्मेदारी दी जाए।
  2. धार्मिक पर्यटन:
    • धार्मिक उत्सवों और मेलों का आयोजन किया जाए, जिससे स्थानीय और बाहरी पर्यटकों को आकर्षित किया जा सके।
    • संरक्षण और विकास के लिए पर्याप्त बजट आवंटित किया जाए।
  3. सांस्कृतिक आयोजन:
    • विद्यापति की रचनाओं और उनकी संस्कृति को प्रचारित करने के लिए सांस्कृतिक समारोह आयोजित किए जाएं।
    • इन स्थलों के महत्व को जन-जन तक पहुंचाने के लिए मीडिया और अन्य साधनों का उपयोग किया जाए।

स्थानीय लोगों की भागीदारी

स्थानीय लोगों को इन धरोहरों के संरक्षण और प्रचार में भागीदार बनाया जाना चाहिए।

  1. सामुदायिक प्रयास:
    • स्थानीय स्वयंसेवी संगठनों और एनजीओ के माध्यम से इन स्थलों की देखरेख की जा सकती है।
  2. शैक्षिक कार्यक्रम:
    • स्कूलों और कॉलेजों में मिथिला की धरोहरों के महत्व पर आधारित कार्यक्रम आयोजित किए जाएं।

मिथिला की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहरें हमारी धरोहर हैं और इन्हें संरक्षित करना हमारी जिम्मेदारी है। अहिल्या स्थान और विद्यापति डीह जैसे स्थलों का संरक्षण न केवल हमारी संस्कृति को संरक्षित करेगा, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत भी बनेगा। सरकार, प्रशासन, और जनता को मिलकर इन धरोहरों को बचाने के लिए प्रयास करने होंगे। यदि समय रहते इन स्थलों का संरक्षण नहीं किया गया, तो यह हमारी सांस्कृतिक पहचान के लिए एक बड़ी क्षति होगी।

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सरकार और प्रशासन को इन स्थलों के संरक्षण के लिए ठोस कदम उठाने होंगे। विशेष रूप से, दरभंगा महाराज के किले जैसे महत्वपूर्ण स्थलों के लिए एक व्यापक संरक्षण योजना बनाई जानी चाहिए। यह योजना इन स्थलों को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के साथ-साथ उनकी ऐतिहासिक महत्ता को संरक्षित करने पर भी केंद्रित होनी चाहिए। और प्रशासन को इन स्थलों के संरक्षण के लिए ठोस कदम उठाने होंगे।

एक विद्वान ने ठीक ही कहा है, “जो समाज अपनी संस्कृति और धरोहरों को बचा नहीं सकता, उसका पतन निश्चित है।”

जय मिथिला! जय भारत!

साभार – (नागेंद्र झा “खेलू भाई”)

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प्रो. शिव चन्द्र झा, के.एस.डी.एस.यू., दरभंगा में धर्म शास्त्र के प्रख्यात प्रोफेसर रहे हैं। उनके पास शिक्षण का 40 से अधिक वर्षों का अनुभव है। उन्होंने मैथिली भाषा पर गहन शोध किया है और प्राचीन पांडुलिपियों को पढ़ने में कुशलता रखते हैं।
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