मिथिला पंचांग के अनुसार 2025 में होली कब है?

मिथिला पंचांग के अनुसार 2025 में होली कब है?

होली, रंगों का त्योहार, भारत के प्रमुख पर्वों में से एक है। यह पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत, प्रेम, सद्भावना और सामाजिक समरसता का प्रतीक है। खासकर मिथिला क्षेत्र में होली का विशेष महत्व है। यहाँ यह त्योहार पारंपरिक भक्ति गीतों, फगुआ, और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ हर्षोल्लास से मनाया जाता है।

मिथिला पंचांग के अनुसार 2025 में होली की तिथि

मिथिला और बनारस पंचांग के अनुसार होली फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है। 2025 में होली निम्नलिखित तिथियों पर मनाई जाएगी:

  • होलिका दहन – 13 मार्च 2025, गुरुवार
    • फाल्गुन पूर्णिमा तिथि गुरुवार 13 मार्च की सुबह 10:11 बजे से प्रारंभ होगी।
    • इस दिन भद्रा भी सुबह 10:11 बजे से शुरू होकर रात 10:47 बजे तक रहेगी।
    • भद्रा समाप्त होने के बाद, उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में होलिका दहन किया जाएगा।
  • स्नान-दान की पूर्णिमा – 14 मार्च 2025, शुक्रवार
    • पूर्णिमा तिथि 14 मार्च दोपहर 11:22 बजे तक रहेगी।
    • इस दिन सूर्योदयकालीन पूर्णिमा के दौरान स्नान-दान और कुलदेवता को सिंदूर अर्पण किया जाएगा।
  • रंगों की होली – 15 मार्च 2025, शनिवार
    • रंगोत्सव चैत्र कृष्ण प्रतिपदा को मनाया जाएगा।
    • इस दिन दो शुभ नक्षत्रों (उत्तराफाल्गुनी और हस्त) का युग्म संयोग रहेगा।
    • दोपहर 12:55 बजे के बाद वृद्धि योग का शुभ संयोग भी रहेगा।
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होलिका दहन का शुभ मुहूर्त

मिथिला पंचांग के अनुसार होलिका दहन का शुभ मुहूर्त निम्नलिखित रहेगा:

  • भद्रा समाप्ति के बाद: 13 मार्च की रात 10:47 बजे के बाद
  • शुभ प्रदोषकाल: रात 11:00 बजे से 12:30 बजे तक (स्थानीय समय अनुसार भिन्न हो सकता है)

होलिका दहन की पूजा विधि

होलिका दहन के दिन विशेष पूजा-अर्चना करने से रोग-शोक और नकारात्मकता का नाश होता है। पूजा की विधि:

  1. सामग्री: अक्षत, गंगाजल, रोली-चंदन, मौली, हल्दी, दीपक, मिष्ठान, आटा, गुड़, कपूर, तिल, धूप, गुग्गुल, जौ, घी, आम की लकड़ी, गाय के गोबर से बने उपले।
  2. होलिका की परिक्रमा: पूजन के बाद सात बार होलिका की परिक्रमा करें।
  3. प्रसाद: होलिका दहन के बाद चना या गेहूं की बाली को सेंककर प्रसाद के रूप में ग्रहण करें।
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मिथिला में होली कैसे मनाई जाती है?

मिथिला क्षेत्र में होली को पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ मनाया जाता है। यहाँ की होली कुछ विशेष तरीकों से अलग पहचान रखती है:

  1. फगुआ गान: पारंपरिक मैथिली लोकगीत और भक्ति संगीत गाए जाते हैं।
  2. गृह पूजा: इस दिन घर के देवताओं की विशेष पूजा होती है।
  3. मिठाइयाँ और पकवान: खासकर मालपुआ, गुजिया, खजूर, और ठंडाई बनाई जाती है।
  4. संयुक्त होली मिलन समारोह: गाँव और कस्बों में सामूहिक होली खेली जाती है।

निष्कर्ष

मिथिला पंचांग के अनुसार 2025 में होली तीन दिनों तक मनाई जाएगी:

  • 13 मार्च को होलिका दहन (रात 10:47 बजे के बाद)
  • 14 मार्च को स्नान-दान की पूर्णिमा
  • 15 मार्च को रंगोत्सव (रंग खेलने का दिन)
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यह पर्व आनंद, प्रेम, और भाईचारे का प्रतीक है। इसे धार्मिक और पारंपरिक विधियों के अनुसार मनाना शुभ फलदायक होता है।

आप सभी को होली की अग्रिम शुभकामनाएँ!

प्रो. शिव चन्द्र झा, के.एस.डी.एस.यू., दरभंगा में धर्म शास्त्र के प्रख्यात प्रोफेसर रहे हैं। उनके पास शिक्षण का 40 से अधिक वर्षों का अनुभव है। उन्होंने मैथिली भाषा पर गहन शोध किया है और प्राचीन पांडुलिपियों को पढ़ने में कुशलता रखते हैं।
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