मधुश्रावणी पूजा 2025 कब है ? जाने पूजा विधि – मधुश्रावणी पूजा एक प्राचीन और विशेष पर्व है, जिसे मैथिल ब्राह्मण और अन्य मिथिलांचल समुदाय के लोग विशेष श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाते हैं। इसकी शुरुआत पौराणिक काल में मानी जाती है, जब देवी मनसा की आराधना और नाग देवता की पूजा को जीवन में सुख-समृद्धि का प्रतीक माना गया। माना जाता है कि इस पर्व का उद्गम राजा श्रीकर और विषहरी देवी से जुड़ी कथाओं में निहित है, जो विषहरण और परिवार की रक्षा के प्रतीक हैं। इस ऐतिहासिक परंपरा को मिथिला की सांस्कृतिक धरोहर के रूप में देखा जाता है, जो आज भी मैथिल समुदाय की आस्था और परंपरा को जीवित रखे हुए है। यह व्रत मुख्य रूप से नवविवाहिताओं द्वारा किया जाता है और इसे जीवन में केवल एक बार, विवाह के बाद पहले सावन में किया जाता है। मधुश्रावणी व्रत 2025 में श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि से प्रारंभ होगा। यह पर्व 14 दिनों तक चलता है और प्रत्येक दिन इसमें विशेष पूजा और कथा वाचन का आयोजन होता है।
श्रावण मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि से यह व्रत आरंभ होता है। 2025 में यह तिथि 14 जुलाई को पड़ रही है। अंतिम दिन विधिवत पूजा-अर्चना और कथा सुनने के बाद व्रत का समापन होता है। इस पर्व का उद्देश्य नवविवाहिताओं के जीवन में सुख, समृद्धि, और अखंड सौभाग्य की कामना करना है। इस व्रत के माध्यम से स्त्रियाँ अपने पति की दीर्घायु और वैवाहिक जीवन की स्थिरता की प्रार्थना करती हैं।
इस व्रत में पूजा स्थल पर पूरे 14 दिनों तक अखंड दीप जलाने की परंपरा है। यह दीप नवविवाहिता की देखरेख में जलता रहता है। नवविवाहिताओं के ससुराल पक्ष से पूजन सामग्री आती है, जिसमें मिट्टी और गोबर से बनी मूर्तियाँ (गणेश, गौरी-शंकर, विषहारा) शामिल होती हैं। इसके अलावा मिष्ठान, वस्त्र, धूप, दीप, फूल, और नैवेद्य की व्यवस्था की जाती है।
प्रत्येक दिन कथा वाचिका विशेष मधुश्रावणी कथा सुनाती हैं। इन कथाओं में विषहरी की शक्ति, बिहुला के धैर्य, मनसा देवी की आराधना, सती के बलिदान, समुद्र मंथन की गाथा, और पृथ्वी के जन्म की कहानियाँ शामिल होती हैं। प्रत्येक कथा में जीवन के संघर्ष, सत्य की विजय और धर्म के पालन का संदेश निहित होता है। इन कथाओं के माध्यम से नवविवाहिताओं को वैवाहिक जीवन में धैर्य, समर्पण, और विश्वास के महत्व को समझाया जाता है, जो इस पर्व की मुख्य भावना को दर्शाता है। यह कथाएँ विषहरी, बिहुला, मनसा, सती, समुद्र मंथन, और पृथ्वी जन्म जैसी पौराणिक घटनाओं पर आधारित होती हैं। इन कथाओं के माध्यम से धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों को व्यक्त किया जाता है। पूजा के दौरान महिलाएं पारंपरिक “गोसांई गीत” और “पावनी गीत” गाती हैं। संध्या पूजा में “कोहबर” और “संझौती गीत” का विशेष महत्व है।
मधुश्रावणी पूजा के विशेष अनुष्ठान
14 दिनों तक चलने वाली इस पूजा में नवविवाहिताएँ सुबह और शाम दोनों समय पूजा करती हैं। सुबह के समय पूजा में तोड़े गए फूलों का उपयोग किया जाता है, जिन्हें संध्या समय में बगीचों से तोड़ा गया होता है। नवविवाहिताएँ बांस की डाली में फूल और पत्ते इकट्ठा करके लाती हैं। यह प्रक्रिया पूजा का एक अभिन्न हिस्सा है, जिसमें वे अपनी सहेलियों के साथ गीत गाते हुए गाँव के मंदिरों और बगीचों में जाती हैं।
पूजा के 14वें दिन विधिवत तरीके से महादेव, गौरी, विषहरी और नाग-नागिन की पूजा की जाती है। पूजन स्थल पर कमल के पत्ते (मैनी) पर विभिन्न आकृतियाँ बनाई जाती हैं। नवविवाहिता का ससुराल पक्ष पूजन सामग्री, नए वस्त्र, आभूषण, और मिष्ठान के साथ पाँच बुजुर्गों को आशीर्वाद देने के लिए भेजता है। बुजुर्गों के आशीर्वाद के बाद पूजा संपन्न होती है।
मधुश्रावणी पूजा के अंतिम दिन एक विशेष परंपरा निभाई जाती है, जिसे “टेमी दागना” कहा जाता है। इस प्रक्रिया में जलती हुई दीपक की बाती से नवविवाहिता के घुटने और पैर के पंजे पर पत्ता रखकर दागा जाता है। इसे शुभ और मंगलकारी माना जाता है।
मिथिला की इस पारंपरिक पूजा का प्रभाव नेपाल तक देखने को मिलता है। नेपाल में इसे बड़े धूमधाम और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। 14 दिनों तक बिना नमक का भोजन करना, प्रतिदिन पूजा स्थल पर उपस्थित रहना और पारंपरिक गीत-गान करना इसे कठिन तपस्या के समान बनाता है। इसके बावजूद, नवविवाहिताएँ इस पर्व का पूरा आनंद लेती हैं।
FAQ – मधुश्रावणी पूजा 2025 कब है ? जाने पूजा विधि
मधुश्रावणी पूजा 2025 कब है?
मधुश्रावणी पूजा 2025 की शुरुआत 14 जुलाई (श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की पंचमी) से होगी और इसका समापन 27 जुलाई (श्रावण शुक्ल पक्ष की तृतीया) को होगा।
मधुश्रावणी पूजा का महत्व क्या है?
यह पूजा नवविवाहिताओं द्वारा अपने वैवाहिक जीवन की सुख-शांति, समृद्धि और पति की दीर्घायु के लिए की जाती है। इसे मिथिला क्षेत्र का एक प्रमुख त्योहार माना जाता है।
मधुश्रावणी पूजा कितने दिनों तक चलती है?
यह पर्व 14 दिनों तक चलता है, जो श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की पंचमी से श्रावण शुक्ल पक्ष की तृतीया तक रहता है।
मधुश्रावणी पूजा में क्या-क्या सामग्री उपयोग होती है?
पूजन सामग्री में शिव-पार्वती की मूर्ति, नाग-नागिन की मूर्ति, फल, फूल, मिठाई, पान, सुपारी, अक्षत, धूप, दीप, और बांस की टोकरी शामिल हैं।
मधुश्रावणी पूजा में कौन-कौन सी कथाएं सुनाई जाती हैं?
पूजा के दौरान शिव-पार्वती विवाह कथा, गंगा कथा, और बिहुला-सती कथा जैसी पौराणिक कथाएं सुनाई जाती हैं।
मधुश्रावणी पूजा कहाँ प्रमुखता से मनाई जाती है?
यह पर्व मुख्य रूप से मिथिला क्षेत्र (बिहार और नेपाल के कुछ हिस्सों) में मनाया जाता है।
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