लाले-लाले आहुल के माला बनेलऊँ ( महाकवि विद्यापति )

लाले-लाले आहुल के माला बनेलऊँ ( महाकवि विद्यापति )

लाले-लाले आहुल के माला बनेलऊँ ( महाकवि विद्यापति )

लाले-लाले आहुल के माला बनेलऊँ
गरदनि लगा लियोऊ माँ
हे माँ गरदनि लग लियोऊ माँ
हम सब छी धीया-पूता आहाँ महामाया
आहाँ नई करबै त करतै के दाया
ज्ञान बिनु माटिक मुरति सन ई काया
तकरा जगा दिया माँ
लाले-लाले आहुल के माला बनेलऊँ
गरदनि लगा लियोऊ माँ
कोठा-अटारी ने चाही हे मइया
चाही सिनेह नीक लागै मड़ैया
ज्ञान बिनु माटिक मुरुत सन ई काया
तकरा जगा दिया माँ…..
आनन ने चानन कुसुम सन श्रींगार
सुनलऊँ जे मइया ममता अपार
भवन सँ जीवन पर दीप-दीप पहार भार
तकरा हटा दिय माँ…..
लाले-लाले आहुल के माला बनेलऊँ
गरदनि लगा लियोऊ माँ
सगरो चराचर अहींकेर रचना
सुनबई अहाँ नै त सुनतै के अदना
भावक भरल जल नयना हमर माँ
चरनऊ लगा लीचड माँ…..
लाले-लाले आहुल के माला बनेलऊँ
गरदनि लगा लियोऊ माँ

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जय चन्द्र झा हास्य और व्यंग्य लेखन में माहिर हैं, जिनका इस क्षेत्र में 20 वर्षों का अनुभव है। उनकी रचनाएँ मिथिला की संस्कृति, समाज और जीवन के विभिन्न पहलुओं पर हास्यपूर्ण व तीखे व्यंग्य के साथ गहरी छाप छोड़ती हैं।
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