शंकराचार्य से शास्त्रार्थ करने वाले मण्डन मिश्र कौन थे !

मण्डन मिश्र कौन थे

मण्डन मिश्र कौन थे-मण्डन मिश्र  को इतिहास  एक ऐसे व्यक्ति के रूप में जानता हैं जिन्होंने ने शंकराचार्य  को शास्त्रार्थ में तगड़ी टक्कर दी थी | उनकी पत्नी भारती ने तो शंकराचार्य  शास्त्रार्थ में को हरा भी दिया था |

मण्डन मिश्र कौन थे !

मण्डन मिश्र कौन थे !
मण्डन मिश्र

मण्डन मिश्र गृहस्थ आश्रम का पालन करने वाले मिथिला के प्रकाण्ड विद्वान थे |

कुमारिल भट्ट के इस शिष्य थे के बारे में ऐसा कहा जाता है की उनके आश्रम की सारिकाएँ भी शुद्ध संस्कृत में वार्तालाप करती थी |

मूलतः एक मैथिल ब्राह्मण में जन्मे मण्डन मिश्र सहरसा जिले के महेशि के रहने वाले थे |

इनके द्वारा रचित प्रसिद्ध ग्रन्थ ब्रहमसिद्धि है|मण्डन मिश्र की कृतियाँ में निधि विवेक , भावना विवेक ,विभ्रम विवेक , मीमांसा सुत्रानुमनी , स्फोटसिद्धि , ब्रम्हसिद्धि आदि प्रसिद्द है |मीमांसा के प्रसिद्ध विद्वान् मण्डन मिश्र को व्याकरण की प्रसिद्ध पुस्तक “स्फोटसिद्धि” के लेखन का श्रेय भी दिया जाता है |

शंकराचार्य से शास्त्रार्थ

शंकराचार्य से शास्त्रार्थ
शंकराचार्य से शास्त्रार्थ, प्रतिकात्मक छवि

ऐसा कहा जाता है की शंकराचार्य मंडन मिश्र से उम्र में छोटे थे | ७वीं शताब्दी में जब आदि शंकराचार्य भारत भ्रमण पर निकल कर शास्त्रार्थ द्वारा हिन्दू धर्म की पुनर्स्थापना करने लगे तब उनका आगमन सहरसा जिले के महिषी ग्राम में हुआ जो की मिथिला प्रान्त में पड़ता था | शंकराचार्य ने मंडन मिश्र से यहीं शास्त्रार्थ किया था |

शास्त्रार्थ में मण्डन मिश्र शंकराचार्य से हार गए थे | शास्त्रार्थ के शर्त के अनुसार मण्डन मिश्र ने शंकराचार्य को अपना गुरु मानना पड़ा था | शंकराचार्य ने मंडन मिश्र को अपने धर्म में शामिल कर लिया और उनका नया नाम सुरेशाचार्य रखा |

पनिहारियों की विद्वता ने  किया था शंकराचार्य  को भी आश्चर्यचकित

मण्डन मिश्र कौन थे
पनिहारि, मिथिला में घरेलु काम करने वाले महिलाओं को बोला जाता है

ऐसा कहा जाता है कि जब शंकराचार्य ने मंडन मिश्र की विद्वता के बार में सूना तो उनके मन में मण्डन मिश्र से शास्त्रार्थ करने की इच्छा हुई | जब वे महेशि नगर पहुंचे तो एक कुआं से जल भरकर मार्ग में जाती हुई पनिहारियों से मण्डन मिश्र का घर पूछने लगे |जब पनिहारियों को यह मालुम हुआ कि शंकराचार्य मण्डन मिश्र से शास्त्रार्थ करने आये हैं , तब उसने ग्राम जलाशय का वर्णन करने के लिए शंकराचार्य से आग्रह किया |

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शंकराचार्य ने जलाशय का वर्णन संस्कृत पद्द द्वारा निम्न रूप से किया –

“ रात्रिर्गमिष्यति भविष्यति सुप्रभातम भास्वानुदेष्यति हसिष्यति पंकज श्री: | हत्यं विचिन्तयति कोष गते द्विरेफे , हा | इंत | ? हंत | ?? नलिनी गज उज्जहा ||”

शंकराचार्य का उक्त पद्द सुनकर पनिहारिन ने कहा

“आचार्य जी आप तो लट लकार के प्रयोग के प्रयोग पर विशेष बल देते हैं | पनिहारिन के संस्कृत ज्ञान को देखकर शंकराचार्य स्तब्ध हो गए | शंकराचार्य ने पुनः मण्डन मिश्र के निवास स्थान के बारे में पूछा |

तब उन महिलाओं ने कहा-

“स्वतः परमानं कीरांगना यत्र गिरो गिरन्ति |

द्वारस्थ नीडान्तरसनिरुद्धा जानी हितनमण्डन मिश्र तौकः |

फल प्रद कर्म्मफल प्रोदउन्जः कीरांगना यत्र गिर गिरन्ति |

द्वारस्थ नीडान्तर सतिबद्धा जानी हितान्मंडन मिश्र तौकः |

जगद ध्रु वंश्यां जगतध्रुवं स्यात्किराडग्गना यत्र गिरं गिरन्ति |

शिष्यैर संख्यैरपि गीयमानं अवेहितनमण्डनमिश्र तौकः |

इसका मूलतः अर्थ यह है की , “जहां पर शुक ,  सारिका , अध्यात्मिक विषय में शास्त्रार्थ करते हों वही घर है , मिश्र जी वहीं रहते हैं “

उसके पश्चात बस्ती में घूमते जहां तोता मैना शास्त्रार्थ कर रहे थे , वहीँ पहुंचकर रुक जाते हैं | मण्डन मिश्र यथोचित नमस्कार कर , सत्कार दे कुशल आदि तथा आने का कारण पूछते हैं | स्वामी शंकराचार्य अपना परिचय देते हुए कहते हैं मैं आपसे शास्त्रार्थ करने आया हूँ |

मण्डन मिश्र के आश्रम में केवल मनुष्य ही नहीं, बल्कि पक्षी भी संस्कृत में संवाद करते थे। पनिहारिनों की संस्कृत विद्वता ने शंकराचार्य को चकित कर दिया। यह दर्शाता है कि मिथिला की सांस्कृतिक और शैक्षिक परंपरा कितनी समृद्ध थी।

भारती से शास्त्रार्थ

मण्डन मिश्र कौन थे
भारती

दुसरे दिन एक सभा आयोजित की गयी |

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शास्त्रार्थ में दोनों की मध्यस्था हेतु विद्वानों के परामर्श से मिश्र की पत्नी सरस्वती बनायी जिनका वास्तविक नाम भारती था |

दोनों का शास्त्रार्थ प्रारंभ हुआ , विषय था ज्ञान वाद और कर्म वाद | लगातार प्रश्नोत्तर होते रहे |

अंत में शंकराचार्य की जीत हुई | तब सरस्वती देवी ने कहा कि स्वामी जी ! अभी मिश्र जी नहीं हारे हैं | उनका दाहिना अंग हार गया है , अभी वामा अंग शेष है | जब तक आप शास्त्रार्थ में मुझे नहीं हरा देते तब तक आप की प्रश्नोत्तर होते रहे |

अंत में मिश्र की पत्नी ने प्रश्नोत्तर स्वामी से प्रश्न किया कि काम की बाह्य और अन्तरंग कला कितनी है |

शंकराचार्य पूर्ण ब्रम्हचारी थे | इस कला की उन्हें जानकारी नहीं थी | अतः वे उत्तर नहीं दे सके और कुछ समय मौन रह कर कहने लगे कि देवी जी मैं यह नहीं जानता हूँ |

सरस्वती जी को विजय श्री मिली और स्वामी जी नतमस्तक होकर चले गए |

प्राचिन काल से ही विद्वानो कि बस्ती है मिथिला

मिथिला क्षेत्र ने भारतीय दर्शन, साहित्य और अध्यात्म में अद्वितीय योगदान दिया है। मण्डन मिश्र और उनकी पत्नी भारती के शास्त्रार्थ ने यह स्पष्ट कर दिया कि यह क्षेत्र न केवल विद्वानों की भूमि है, बल्कि यहां की महिलाएं भी ज्ञान और तर्क में समान रूप से प्रवीण रही हैं। मण्डन मिश्र के समय में उनकी पत्नी भारती ने न केवल शास्त्रार्थ में निर्णायक की भूमिका निभाई, बल्कि शंकराचार्य को भी अपनी विद्वता से प्रभावित किया।

निहारिनों से लेकर भारती तक, सभी ने दिखाया कि मिथिला की महिलाएं न केवल परिवार की देखभाल करती थीं, बल्कि ज्ञान, तर्क और दर्शन में भी अग्रणी थीं। पनिहारिनों का संस्कृत में संवाद करना और शंकराचार्य से गहन चर्चा करना यह बताता है कि यह परंपरा पूरे समाज में व्याप्त थी।

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आज के समय में यह कहानी प्रेरणा का स्रोत है। यह हमें सिखाती है कि शिक्षा और विद्वता का कोई लिंग नहीं होता और महिलाओं को समान अवसर देकर समाज को समृद्ध बनाया जा सकता है।

मिथिला की विद्वता को बचाने की आवश्यकता

आज मिथिला के गौरवशाली अतीत को संरक्षित करने की आवश्यकता है। शिक्षा, संस्कृति और इतिहास के संरक्षण के लिए नीतियां बनाई जानी चाहिए। मिथिला की इस महान विद्वता को देश और विश्व के स्तर पर पहचान दिलाई जानी चाहिए, ताकि आने वाली पीढ़ियां इस गौरवशाली परंपरा से प्रेरणा ले सकें।

शास्त्रार्थ के प्रसंगों से यह प्रमाणित होता है कि मिथिला केवल धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध नहीं थी, बल्कि बौद्धिक स्तर पर भी अन्य क्षेत्रों से श्रेष्ठ थी। मिथिला की महिलाएं विद्वता, निर्णय क्षमता और तर्कशक्ति में किसी से कम नहीं थीं।

मण्डन मिश्र कौन थे  – साभार – प्रॊ. शिव चन्द्र झा shiv.chandra@themithila.com

लेखक जाने माने संस्कृत भाषा के विद्वान हैंं, तथा दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के सेवानिवृत व्याख्याता हैं ।

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प्रो. शिव चन्द्र झा, के.एस.डी.एस.यू., दरभंगा में धर्म शास्त्र के प्रख्यात प्रोफेसर रहे हैं। उनके पास शिक्षण का 40 से अधिक वर्षों का अनुभव है। उन्होंने मैथिली भाषा पर गहन शोध किया है और प्राचीन पांडुलिपियों को पढ़ने में कुशलता रखते हैं।
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