इन्द्र गहि-गहि, चक्र गहि-गहि लिरिक्स Indr Gahi Gahi Chakra Gahi Gahi Lyrics

Parati Geet Lyrics | पराती लोकगीत - मैथिली प्राति गीत लिरिक्स

इन्द्र गहि-गहि, चक्र गहि-गहि लिरिक्स Indr Gahi Gahi Chakra Gahi Gahi Lyrics

इन्द्र गहि-गहि, चक्र गहि-गहि, 
खर्ग लिअ माता भगवती
अड़हुल फूल भकनार भयो, 
देखि पुनि आनन्द भयो
सोनाके आसन रत्न सिंहासन, 
आबि बैसाउ माता भगवती
सोनाके झारी गंगाजल पानी, 
चरण पखारब माता भगवती
सोनाके थारी छत्तीसो व्यंजन, 
भाग लगाउ माता भगवती
सोनाके सराइ कपूरक बाती, 
आरती देखाउ माता भगवती
अड़हुल फूल भकनार भयो…

जय चन्द्र झा हास्य और व्यंग्य लेखन में माहिर हैं, जिनका इस क्षेत्र में 20 वर्षों का अनुभव है। उनकी रचनाएँ मिथिला की संस्कृति, समाज और जीवन के विभिन्न पहलुओं पर हास्यपूर्ण व तीखे व्यंग्य के साथ गहरी छाप छोड़ती हैं।
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