दरभंगा महाराज का इतिहास – जब दिल्ली की गद्दी पर अकबर बैठा तो उसे मालुम हुआ कि मिथिला में फैली आराजकता के कारण कर की प्राप्ति नहीं हो पा रही है तो सबसे पहले उसने मिथिला में शान्ति स्थापना का प्रयास किया उसने यह भी निर्णय लिया कि किसी मैथिल ब्राम्हण को वहां का शासक बना दिया जाय जो वहां पर शान्ति स्थापित करके , कर की भी वसूली कर सके |
अकबर ने अपने सलाहकारों से मंत्रणा करने के बाद मध्य भारत स्थित गढ़मंडला के राज पंडित चन्द्रपति ठाकुर जो की एक श्रोतिय ब्राम्हण थे , को दिल्ली बुलाया | उन्होंने चन्द्रपति ठाकुर से किसी एक पुत्र के बारे में निर्णय करने को कहा क्योंकि अकबर जानता था कि चन्द्रपति को पांच पुत्र हैं और सभी पुत्र विद्वान् और पराक्रमी भी हैं |
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पहले नहीं संभल पाये थे राज्य व्यवस्था
चन्द्रपति ने अपने मंझला पुत्र आचार्य पंडित महेश ठाकुर को मिथिला में शासन व्यवस्था चलाने हेतु सम्राट अकबर को सौंप दिया | अकबर सम्राट ने पंडित महेश ठाकुर को मिथिला राज्य का शासक घोषित कर दिया | इस तरह १५७७ ई० को महेश ठाकुर मिथिला राज्य के राजा बन गए |
लेकिन मिथिला राज्य में उस समय इतनी अव्यवस्था फ़ैल गयी थी कि वे वर्षों तक कर की वसूली नहीं कर पाए | परिणाम स्वरुप , अकबर ने उनसे क्रुद्ध होकर मिथिला राज्य वापस ले लिया | लेकिन महेश ठाकुर के योग्य , प्रिय एवं प्रतिभाशाली शिष्य ने पुनः दिल्ली जाकर सम्राट अकबर को समझाया और मिथिला राज्य को पुनः महेश ठाकुर को वापस दिलाया |
खंडवा से आकर बसने के कारण खंडवला वंश पड़ा था नाम
पंडित महेश ठाकुर खड़ोरय मूल के थे और वे खंडवा से आकर राजग्राम में बस गए थे जिसके कारण वे खंडवला वंश के राजा कहलाये | उन्होंने मिथिला राज्य की राजधानी अपने पैत्रिक गाँव राजग्राम में ही बनाया | बर्तमान समय में ये राजग्राम पंडौल प्रखंड जिला मधुबनी में स्थित है | फिर बाद में इन्होने अपनी राजधानी मधुबनी से दक्षिण भौर गाँव को बना लिया था |
शुभंकर ठाकुर के नाम से शुभंकरपुर
महेश ठाकुर की मृत्यु के बाद उनका बड़ा लड़का गोपाल ठाकुर मिथिला का राजा बना | लेकिन कुछ ही दिनों के बाद उनकी मृत्यु कम उम्र में ही हो गयी | इसके उनका छोटा भाई परमानन्द ठाकुर को मिथिला का राजा बनाया गया | कुछ दिनू के बाद उनकी भी मृत्यु हो गयी तो महेश ठाकुर के पांचवें पुत्र शुभंकर ठाकुर को मिथिला राज्य का राजा बनाया गया | लेकिन वे भी १६२३ ई० में किसी खडयंत्र के शिकार हो गए | फिर उनके सौतेले भाई नारायण ठाकुर को मिथिला राज्य का राजा बनाया गया |
जब १६४५ ई० में नारायण ठाकुर की म्रत्यु हो गयी तो उनका पुत्र सुन्दर ठाकुर राजा बने इसके बाद महिनाथ ठाकुर मिथिला के राजा बने | तब तक दिल्ली की सिंहासन पर औरंगजेब सम्राट बन चुका था जो कि हिन्दुओं पर बहुत ही अत्याचार करने वाला सम्राट साबित हुआ | जिस – जिस जगह पर राजा गए , उन जगहों के नाम भी राजा के नाम पर रखे गए | जैसे – शुभंकर ठाकुर के नाम पर शुभंकर पुर , सुन्दर ठाकुर के नाम पर सुन्दरपुर , महिनाथ ठाकुर के नाम पर महिनाथ पुर रखा गया |
दरभंगा महाराज का इतिहास – दरभंगा का राजधानी बनना
महाराजा महिनाथ ठाकुर के बाद उनके पुत्र नरपति ठाकुर राजा बने | उन्होंने भौर गाँव से राजधानी हटा कर दरभंगा में बना लिया | दरभंगा में बागमती नदी के पूर्वी छोड़ पर एक विशाल किले का निर्माण शुरू कर दिया | उनका राज भवन अभी भी रामबाग़ कहलाता है |लेकिन वर्तमान समय में यह रामबाग छिन्नभिन्न हो कर रह गया है |
नरपति ठाकुर जब बूढ़े हो गए तो वे अपने पराक्रमी बालक को राज्य सौंप दिया और वे स्वयं कासी तीर्थाटन करने चले गए | महाराज राघव सिंह एक महान योद्धा और अच्छे शासक साबित हुए | उन्होंने अनेकों युद्ध जीत कर मिथिला का मान – सम्मान बढ़ाया |
१७३९ ई० में उनकी मृत्यु हो जाने का बाद उनका ज्येष्ठ पुत्र विष्णु सिंह मिथिला के राजा बने |वे सिर्फ चार साल तक ही मिथिला पर शासन कर सके |क्योंकि १७४३ ई० में नेपाल के मकवान पुर के एक जमींदार ने उनकी हत्या कर दी | ऐसी स्थिति में दरभंगा में उनके छोटे भाई नरेंद्र सिंह को राजा बनाया गया |
नरेंद्र सिंह भी अपने बड़े भाई की तरह एक योद्धा थे | उन्होंने ने भी अपने भाई की हत्या का बदला ले लिया | १७६० ई० में उनकी मृत्य हो गयी और उनके चचेरे भाई को प्रताप सिंह को राजा बनाया गया |फिर उनकी मृत्यु के बाद उनके भाई माधव सिंह को राजा बनाया गया | माधव सिंह की मृत्यु के बाद उनके समाधि स्थल पर एक महादेव मंदिर का निर्माण किया गया जो कि आज भी माधवेश्वर मंदिर के नाम से राज परिसर में अवस्थित है |
दरभंगा महाराज का इतिहास -मिथिला राज्य से दरभंगा राज
इतने दिनों की अवधि तक अंग्रेजों ने भारत में अपने पाँव जमा लिए थे | अंग्रेज मिथिला में किसी भी शासक को शक्तिशाली बनने नहीं देना चाहते थे | उन्होंने जगह – जगह पर छोटे – छोटे राजे – रजवाडे को नियुक्ति कर दिया था , एवं समस्त पूर्वांचल सहित मिथिला को भी बंगाल राज्य में मिला लिया था | अंग्रेजों ने ईस्ट इंडिया कम्पनी के रूप में कलकत्ता में भी अपने पैर जमा लिए थे और वहीँ से अन्यों प्रान्तों में शासन करते थे |
यहाँ के आदमी इतने सीधे थे कि वे अंग्रेजों की इस षड्यंत्र को नहीं समझ सके और विरोध करने के साहस जुटा नहीं पाए | अब तो मिथिला राज नहीं कहलाकर दरभंगा राज कहलाने लगा | साथ ही अंग्रेजी कानून यहाँ लागू कर दिया गया |
जनकपुर का नेपाल में जाना
१८०७ ई० में महाराजा माधव सिंह की म्रत्यु के बाद उनके पुत्र छत्र सिंह राजा बने | लेकिन इस अवधि में अंग्रेजों ने मिथिला को दो भागों में बाँट दिया | उसने नेपाल सरकार से १८१६ ई० में सुगौली संधि के तहत मिथिला की तराई भाग को नेपाल सरकार को दे दिया और उसके एवज में नेपाल सरकार से दार्जिलिंग , कलिंगपोंग जैसे हिल स्टेशन को भारत में मिला दिया | इस संधि के परिणामस्वरूप जनकपुर धाम , राजमहिंसौथ , राजविराज , विराटनगर जैसे महत्वपूर्ण स्थान नेपाल सरकार के धीन हो गए | जयनगर के बाद नेपाली सीमा शुरू हो गयी |
दरभंगा राज के मालिक अंग्रेज़ कलक्टर
महाराज छत्र सिंह की मृत्यु के बाद रूद्र सिंह राज दरभंगा के शासक बनाए गए | फिर उनकी मृत्यु के बाद महेश्वर सिंह को यहाँ का शासक बनाया गया | १८६० ई० में महेश्वर सिंह की मृत्यु हो जाने के बाद उनके पुत्र लक्ष्मीश्वर सिंह को दरभंगा का राजा नहीं बनाया गया क्योकि वे उम्र से छोटे थे |उनके बालिग़ होने तक दरभंगा राज की शासन प्रणाली ‘कोर्ट्स ऑफ़ वाड्स’ के अधीन चला गया | दुसरे रूप से हम कह सकते हैं कि दरभंगा राज का मालिक यहाँ का अंग्रेज कलक्टर हो गया |
राज दरभंगा का मालिक अंग्रेज कलक्टर के हो जाने से यहाँ की राज भाषा मैथिली एवं तिरहुता लिपि के स्थान पर अंग्रेजी , हिन्दी – उर्दू लागू हो गया | जब लक्ष्मीश्वर सिंह २१ वर्ष के हो गए तो अपना शासन पाने के लिए उन्हें लिखित चुनौती देना पड़ा , तब जाकर उन्हें राज दरभंगा का शासन मिला |
जार्ज ग्रियसन का आगमन
महाराज लक्ष्मीश्वर सिंह स्वदेश एवं स्वाभिमान के लिए हमेशा तत्पर रहे | उनके समय में मैथिली साहित्य के आधुनिक युग प्रवर्तक कवीश्वर चन्दा झा अपने सहयोगियों के साथ मिलकर मैथिली भाषा का प्रयाप्त विकास किया | उसी समय जार्ज ग्रियसन मधुबनी का एस डी ओ बन कर आया | इस अंग्रेज़ ने स्थानीय लोगों की भाषा सम्बन्धी दर्द को समझा और मैथिली भाषा का वैज्ञानिक अध्ययन प्रस्तुत किया |
दरभंगा महाराज का इतिहास -दरभंगा राज का अंत
महाराज लक्ष्मीश्वर सिंह की मृत्यु के बाद रामेश्वर सिंह दरभंगा के राजा बने और उनकी भी मृत्यु के बाद कामेश्वर सिंह दरभंगा के अंतिम महाराजा बने | लेकिन उससे पहले ही १९०५ ई० से लेकर १९११ ई० तक बंग भंग आन्दोलन चला | १९१२ ई० में अंग्रेजी शासकों के द्वारा बिहार को बंगाल से अलग कर दिया | जिसके कारण मिथिला बिहार के अधीन हो गया |
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