बिहार में शराबबंदी को लागू हुए आठ साल से अधिक हो चुके हैं, लेकिन इसकी सफलता पर सवाल उठते रहे हैं। हाल ही में आरा सदर अस्पताल में दो भाइयों के भर्ती होने की घटना ने एक बार फिर शराबबंदी की विफलता को उजागर कर दिया है। इन युवकों ने खुलेआम बिक रही देसी शराब का सेवन किया, जिसके बाद उनकी हालत बिगड़ गई और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। यह घटना न केवल शराबबंदी कानून के प्रभावी क्रियान्वयन पर सवाल खड़े करती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि शराब माफिया कैसे प्रशासन की नाक के नीचे अपना कारोबार चला रहे हैं।
आरा में खुलेआम बिक रही शराब, प्रशासन मौन
बिहार में शराबबंदी होने के बावजूद शराब की अवैध बिक्री धड़ल्ले से जारी है। आरा के कपूरडीहरा गांव के दो भाई, लव कुमार और कुश कुमार, महज 50 रुपये में शराब खरीदकर पीने के बाद अस्पताल पहुंचे। इनकी हालत इतनी खराब थी कि स्थानीय लोगों को इन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा।
आश्चर्यजनक रूप से, इस मामले में न तो पुलिस कोई बयान दे रही है और न ही मद्य निषेध विभाग। स्थानीय लोगों का आरोप है कि शराब माफिया और प्रशासन की मिलीभगत के कारण शराब की उपलब्धता आसान हो गई है। पुलिस, मद्य निषेध विभाग और अन्य सरकारी एजेंसियां आंख मूंदे बैठी हैं।
शराबबंदी के बावजूद बिहार में शराब कैसे पहुंच रही है?
बिहार में शराबबंदी लागू है, लेकिन फिर भी शराब तस्करी बेरोकटोक जारी है। इसके पीछे कई वजहें हैं:
1. शराब माफिया और प्रशासन की मिलीभगत
स्थानीय लोगों का कहना है कि शराबबंदी के बावजूद पूरे राज्य में एक मजबूत नेटवर्क काम कर रहा है। पुलिस और मद्य निषेध विभाग के अधिकारियों की संलिप्तता के कारण शराब माफिया को कोई रोकने वाला नहीं है। शराबबंदी के बाद से बिहार में तैनात कई पुलिस अधिकारियों और प्रशासनिक कर्मचारियों की संपत्ति में अचानक भारी बढ़ोतरी हुई है।
2. अन्य राज्यों से शराब की तस्करी
बिहार से सटे उत्तर प्रदेश, झारखंड और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों से अवैध रूप से शराब बिहार लाई जाती है। शराब से भरे ट्रक और पिकअप वैन बॉर्डर पार कर बिहार में प्रवेश करते हैं। पुलिस से जुड़े सूत्रों के मुताबिक, एक बड़े ट्रक के बिहार में प्रवेश करने के लिए 35 लाख रुपये तक की रिश्वत दी जाती है, जबकि पिकअप वैन के लिए 15 लाख रुपये का लेनदेन होता है।
3. अवैध शराब निर्माण और बिक्री
बिहार में कई स्थानों पर स्थानीय स्तर पर देसी शराब बनाई जाती है, जिसे कम कीमत में बेचा जाता है। यह शराब अक्सर मिलावटी और जहरीली होती है, जिससे कई बार लोगों की मौत भी हो जाती है।
बिहार में शराबबंदी क्यों फेल हो रही है?
बिहार में शराबबंदी की विफलता के पीछे कई बड़े कारण हैं:
1. कानून का सही से लागू न होना
शराबबंदी के बावजूद, बिहार में शराब की उपलब्धता बेहद आसान है। प्रशासन की सुस्ती और राजनीतिक दबाव के कारण इस कानून को प्रभावी तरीके से लागू नहीं किया जा सका।
2. भ्रष्टाचार और प्रशासनिक लापरवाही
पुलिस और मद्य निषेध विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत से शराब तस्करी हो रही है। कई पुलिसकर्मियों की संपत्ति में शराबबंदी के बाद से 700% तक बढ़ोतरी देखी गई है।
3. अवैध कारोबार से माफिया का फायदा
शराबबंदी के कारण अवैध शराब कारोबारियों को भारी मुनाफा हो रहा है। तस्करों को रोकने के बजाय प्रशासन उनके साथ सांठगांठ कर चुका है।
4. बढ़ता राजनीतिक संरक्षण
स्थानीय नेताओं और बड़े अधिकारियों की शह पर शराब माफिया का कारोबार फल-फूल रहा है। शराब तस्करी से होने वाली कमाई का बड़ा हिस्सा राजनीतिक दलों और प्रशासनिक अधिकारियों तक पहुंचता है।
5. जनता के बीच जागरूकता की कमी
बिहार में शराबबंदी लागू होने के बावजूद, कई लोग अब भी शराब का सेवन करते हैं। सामाजिक जागरूकता की कमी के कारण लोग अवैध रूप से शराब खरीदने को मजबूर हैं।
निष्कर्ष: क्या शराबबंदी जारी रहनी चाहिए?
बिहार में शराबबंदी के उद्देश्य अच्छे थे, लेकिन इसकी असफलता ने इसे एक बड़े मजाक में बदल दिया है। शराबबंदी के बावजूद, राज्य में शराब की आपूर्ति और खपत लगातार बढ़ रही है। अवैध शराब की बिक्री से सरकार को भारी राजस्व नुकसान हो रहा है, जबकि माफिया और भ्रष्ट अधिकारी मालामाल हो रहे हैं।
सरकार को चाहिए कि वह:
- मद्य निषेध और पुलिस विभाग के अधिकारियों की संपत्ति की जांच करे।
- तस्करी रोकने के लिए सख्त कदम उठाए और बॉर्डर इलाकों की सुरक्षा बढ़ाए।
- लोगों के बीच जागरूकता फैलाए और वैकल्पिक रोजगार के अवसर उपलब्ध कराए।
यदि शराबबंदी को प्रभावी ढंग से लागू नहीं किया गया, तो यह केवल एक दिखावटी कानून बनकर रह जाएगा, जिसका फायदा माफिया और भ्रष्ट अधिकारी उठाते रहेंगे।