चार कमरे में दो स्कूल… पढ़ाने को सिर्फ हेडमास्टर, एस सिद्धार्थ के ‘राज’ में बिहार में हाल-ए-विद्यालय

चार कमरे में दो स्कूल... पढ़ाने को सिर्फ हेडमास्टर, एस सिद्धार्थ के 'राज' में बिहार में हाल-ए-विद्यालय

बिहार के सीतामढ़ी जिले के सरकारी स्कूलों में नामांकन संख्या तो बढ़ रही है, लेकिन सुविधाओं की भारी कमी के कारण बच्चों की पढ़ाई बुरी तरह प्रभावित हो रही है। कमरों की कमी और शिक्षकों की अनुपलब्धता के कारण कई स्कूलों में छात्र-छात्राओं को खुले मैदान या बरामदे में बैठकर पढ़ाई करनी पड़ रही है।

तीन करोड़ का बजट, फिर भी स्कूलों में कमरों की भारी कमी

शिक्षा विभाग ने सीतामढ़ी जिले के स्कूलों के जीर्णोद्धार और मरम्मत के लिए ₹3 करोड़ का बजट आवंटित किया है, लेकिन ज़मीनी स्तर पर हालात जस के तस हैं। पुराने खस्ताहाल कमरे अब भी उपयोग में नहीं आ रहे, और नए कमरे पर्याप्त संख्या में नहीं बनाए जा रहे हैं।

स्थिति कितनी गंभीर है, इसे डुमरा स्थित राजकीय बुनियादी विद्यालय की हालत से समझा जा सकता है:

  • सिर्फ 4 कमरे होने के बावजूद दो स्कूल संचालित किए जा रहे हैं।
  • 3 कमरों में कक्षा 1 से 8 तक के 330 छात्र पढ़ते हैं।
  • 1 ही कमरे में कक्षा 9 से 12 तक के 490 छात्र पढ़ाई करते हैं।
  • परीक्षा के समय बच्चे खुले मैदान और बरामदे में बैठने को मजबूर होते हैं।
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पांच सालों से कोई सुधार नहीं, शिक्षकों की भारी कमी

यह स्थिति पिछले 5 वर्षों से बनी हुई है, लेकिन कोई ठोस सुधार नहीं हुआ है। स्कूलों में न केवल कमरों की कमी है, बल्कि शिक्षकों का भी घोर अभाव है।

  • उमवि, मधुबन में सिर्फ एक प्रधानाध्यापक डॉ. मनीष कुमार हैं, जो 9वीं से 12वीं तक के छात्रों को पढ़ाने की जिम्मेदारी अकेले निभा रहे हैं।
  • पहले 6 शिक्षकों की प्रतिनियुक्ति की गई थी, लेकिन विभागीय आदेश के बाद वे अपने मूल विद्यालय लौट गए।
  • बुनियादी विद्यालय की प्रधानाध्यापिका सिंधु कुमारी अकेले पूरे स्कूल की व्यवस्था देख रही हैं।

बच्चों की शिक्षा का भविष्य संकट में, डीईओ ने दिया निर्देश

इस पूरे मामले को लेकर दोनों प्रधानाध्यापक कई बार वरीय अधिकारियों को लिखित सूचना दे चुके हैं। डीईओ ने बीईओ को जल्द से जल्द समस्या का समाधान निकालने के निर्देश दिए हैं, लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है।

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क्या सरकारी स्कूलों की स्थिति सुधार पाएगी सरकार?

शिक्षा विभाग भले ही सुधार के बड़े-बड़े दावे करता हो, लेकिन सीतामढ़ी के सरकारी स्कूलों की स्थिति शिक्षा व्यवस्था की हकीकत को उजागर कर रही है।

  • बजट आवंटित होने के बावजूद क्यों नहीं बन रहे नए कमरे?
  • शिक्षकों की प्रतिनियुक्ति रद्द होने के बाद अब तक नई नियुक्ति क्यों नहीं हुई?
  • बच्चों की शिक्षा का भविष्य अंधकार में क्यों धकेला जा रहा है?

सरकार को इस मुद्दे पर शीघ्र कार्रवाई करनी होगी, वरना सरकारी स्कूलों की हालत और बदतर होती जाएगी, और बच्चों का भविष्य प्रभावित होगा।

भगवान जी झा मिथिला के जाने-माने समाचार संपादक हैं। TheMithila.com पर वे मिथिला की भाषा, संस्कृति और परंपराओं को समर्पित लेखों के जरिए क्षेत्र की सांस्कृतिक धरोहर को जीवित रखने का प्रयास करते हैं।
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