‘मामा यौ कनी खैनी दिय’ ने बनाया था इस गायक को कालजयी !

‘मामा यौ कनी खैनी दिय’

‘मामा यौ कनी खैनी दिय’ ने बनाया था इस गायक को कालजयी ! नयी पीढ़ी के युवा भले ही हेमकान्त को न पहचानते हों, लेकिन उनके गाए गए गीतों को वे कहीं न कहीं जरूर सुन चुके होंगे। खासकर मैथिली भाषा में उनका प्रसिद्ध गीत “मामा यौ कनी खैनी दिया” 1980 के दशक में बेहद लोकप्रिय हुआ था।

प्रसिद्ध मैथिली गायक हेमकान्त झा अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी आवाज और गायकी की शैली आज भी बेमिसाल मानी जाती है। ‘कैसेट युग’ में मैथिली लोकगीत के एक प्रमुख गायक के रूप में हेमकान्त ने लगातार हिट गाने गाकर मिथिला भाषी समुदाय में अपनी एक खास पहचान बनाई थी।

6000 से अधिक मैथिलि गीत

हेमकान्त झा का जन्म 1949 में दरभंगा जिले के शुभंकरपुर गांव में हुआ था। उनके पिता सूर्यकांत झा दरभंगा व्यवहार न्यायालय के एक प्रमुख वकील थे।

हेमकान्त झा ने मैथिली संगीत की दुनिया में अपनी एक अलग पहचान बनाई। उनके गाए हुए गीत जैसे “दुमका में झुमका हेरौलनि, काशी में कनवाली” और “नाक में नथुनियाँ रे, सजावे रे सजनियाँ” उस समय मिथिलांचल के लोगों की जुबान पर थे। आज भी उनके गीत दरभंगा आकाशवाणी और नेपाल के विभिन्न चैनलों पर सुनने को मिलते हैं। हेमकान्त झा ने कुल 6000 से अधिक मैथिली गीत गाए, जो अपने आप में एक रिकॉर्ड है।

उन्होंने टी-सीरीज़, एच.एम.भी, टिप्स और नीलम कैसेट्स जैसी प्रमुख म्यूजिक कंपनियों के लिए भी गाने गाए। बाद में, उन्होंने अपना खुद का कैसेट निकालना शुरू किया और उनका पहला कैसेट था “सनेस।” जैसे ही यह कैसेट बाजार में आया, पूरी मिथिलांचल में धूम मच गई।

हेमकान्त झा के कई लोकप्रिय गीतों में “मामा यो कनि खैनी दिअ, अपनों खाऊ, हमरो दीअ बाबू मान्गैय से हो दीअ” ने खास पहचान बनाई। उनके एलबम्स जैसे “चल मिथिला में चल,” “हिमरेखा,” “सनेस,” “ममता,” “भौजी,” “कखन हरब दुःख मोर,” और “सौगात” भी बहुत पसंद किए गए और काफी लोकप्रिय हुए।

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कलाकार तो अंदाज़ से होतें हैं

यह माना जाता है कि गायक और कलाकार अक्सर दही का सेवन नहीं करते, लेकिन एक बार स्व. हेमकान्त झा जी एक मैथिल सांस्कृतिक समारोह में कलकत्ता में भाग लेने आए थे। वहां लोगों ने उन्हें दही खाते हुए देखा, तो वे हैरान रह गए।

एक व्यक्ति ने उनसे सवाल किया, “आप गायक हैं और दही खा रहे हैं?” तो हेमकान्त जी हंसते हुए जवाब दिया, “भाई, दही तो खाने वाली चीज है, इसलिए खा रहा हूँ! हम कलाकार गले से नहीं, अंदाज से होते हैं। और वैसे भी कलकत्ता की दही बहुत मशहूर है।”

असमय मृत्यु से मैथिलि संगीत को लगा झटका

स्व. हेमकान्त झा, मैथिली संगीत के इतने बड़े कलाकार होते हुए भी अपने भीतर किसी भी प्रकार का अभिमान नहीं रखते थे। हालांकि, मात्र 50 वर्ष की आयु में उनका निधन हो जाने से मिथिलांचल के संगीत प्रेमियों के बीच मैथिली गीतों के आगे बढ़ने की गति को एक रुकावट सी आ गई। आज की नई पीढ़ी के मैथिली गायक निश्चित रूप से प्रतिभाशाली और कर्णप्रिय हैं, लेकिन जिस ऊंचाई तक हेमकान्त जी पहुंचे थे, वहां तक पहुंच पाना शायद ही संभव हो।

मैथिली संगीत के क्षेत्र में जहां एक ओर सुरों के महाराज संगीतकार रवीन्द्र और महेंद्र की जोड़ी ने इस भाषा के संगीतबद्ध रूप को आम लोगों तक पहुंचाया, वहीं स्व. हेमकान्त जी ने इस संगीत का और विस्तार करते हुए “मिथिला के रफ़ी” जैसे खिताब को हासिल किया।

यदि हम वर्तमान के गानों को देखें, तो मैथिली संगीत अपनी मिठास खोता जा रहा है। आजकल बहुत से गाने भौंडे और चलताऊ संगीत से भरे होते हैं, जो सिर्फ लागत वसूली के दृष्टिकोण से बनाए जाते हैं। अच्छे गाने न बनने के कारण श्रोताओं की संख्या घट रही है, और म्यूजिक कंपनियां भी जोखिम लेने से बच रही हैं।

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स्व. हेमकान्त झा के कुछ प्रमुख गानों ने मैथिली संगीत को नई पहचान दिलाई और उन्हें एक प्रसिद्ध गायक के रूप में स्थापित किया। उनके गाने न केवल मिथिलांचल में, बल्कि देश और विदेश में भी बहुत पॉपुलर हुए। यहां कुछ उनके प्रसिद्ध गानों के बारे में बताया गया है:

हेमकान्त झा ने मैथिली लोकसंगीत को नए रूप में प्रस्तुत किया। उनके गीतों में पारंपरिक मैथिली संगीत के साथ-साथ एक आधुनिक और लोकप्रिय धारा का मिश्रण था। इस प्रकार, उन्होंने मैथिली संगीत को एक नया आयाम दिया। उनकी आवाज़ ने न केवल मिथिलांचल में, बल्कि अन्य हिंदी भाषी क्षेत्रों में भी मैथिली संगीत को प्रसार दिया।

  1. ‘मामा यौ कनी खैनी दिय’
    यह गाना हेमकान्त का सबसे प्रसिद्ध गाना था, जिसे अस्सी के दशक में बहुत ही लोकप्रियता मिली। यह गीत आज भी मिथिलांचल के हर घर में गाया जाता है और यह एक मिथिला के लोकगीत के रूप में अत्यधिक सराहा जाता है। इस गाने में पारिवारिक रिश्तों और प्यार का संदेश दिया गया है।
  2. दुमका में झुमका हेरौलनि, काशी में कनवाली
    इस गीत में मिथिला के पारंपरिक गीतों की धुन को आधुनिकता के साथ जोड़ा गया था, जो मिथिलांचल के लोगों के बीच अत्यधिक लोकप्रिय हो गया था। यह गाना लोक-जीवन की खुशियों और संस्कृति को दर्शाता है।
  3. नाक में नथुनियाँ रे, सजावे रे सजनियाँ
    यह एक प्यारा सा रोमांटिक गीत था, जो हेमकान्त की मीठी आवाज में बहुत दिलचस्पी से गाया गया। यह गाना आम तौर पर शादी-ब्याह और खुशी के अवसरों पर बहुत गाया जाता था।
  4. कैसेट ‘सनेस’ का गीत
    हेमकान्त का पहला कैसेट “सनेस” भी बहुत लोकप्रिय हुआ। इसके गीतों में मिथिला की संस्कृति और लोक-जीवन के पहलुओं को खूबसूरती से पेश किया गया था। इस कैसेट का हर गाना जनता के दिलों में बस गया था।
  5. सौगात
    हेमकान्त का एलबम “सौगात” भी मैथिली संगीत प्रेमियों के बीच अत्यधिक प्रसिद्ध हुआ। इसमें उन्होंने अपनी आवाज से मिथिला के पारंपरिक संगीत को एक नया रूप दिया।
  6. चल मिथिला में चल
    यह गीत मिथिला की महानता और उसकी सांस्कृतिक धरोहर को बयां करता है। इसमें मिथिलांचल की खुशहाली और सांस्कृतिक विविधताओं का उल्लेख किया गया है।
  7. मिथिला के रफ़ी:
    • हेमकान्त को ‘मिथिला के रफ़ी’ के रूप में जाना जाता था। उनकी आवाज़ में वह शुद्धता और भावनाओं की गहराई थी, जो मुहम्मद रफ़ी की आवाज़ में भी पाई जाती है। यही कारण है कि लोग उन्हें इस नाम से संबोधित करते थे। उनका संगीत मिथिलांचल की आत्मा की तरह था और यह उनके श्रोताओं के दिलों में हमेशा जीवित रहेगा।
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हेमकान्त झा का संगीत श्रोताओं के दिलों में हमेशा जिंदा रहेगा, और उनका योगदान मैथिली संगीत में हमेशा याद किया जाएगा।

‘मामा यौ कनी खैनी दिय’ – प्रस्तुती जय चन्द्र झा  jcmadhubani@yahoo.com

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प्रो. शिव चन्द्र झा, के.एस.डी.एस.यू., दरभंगा में धर्म शास्त्र के प्रख्यात प्रोफेसर रहे हैं। उनके पास शिक्षण का 40 से अधिक वर्षों का अनुभव है। उन्होंने मैथिली भाषा पर गहन शोध किया है और प्राचीन पांडुलिपियों को पढ़ने में कुशलता रखते हैं।
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