मिथिला के तरुआ  –  निखिल रंजन झा

मिथिला के तरुआ  -  निखिल रंजन झा

मिथिला के तरुआ  –  निखिल रंजन झा

भिंडी
भिनभिनायत भिंडी के तरुआ, आगु आ ने रे मुँह जरुआ
हमरा बिनु उदास अछि थारी, करगर तरुआ रसगर तरकारी

कदीमा
गै भिंडी तोईं चुप्पहि रह, एहि सऽ आगु किछु नहि कह
लस-लस तरुआ, फचफच झोर, नाम सुनतहि खसतय नोर
खायत जे से खोदत दाँत, देखतहि तोरा सिकुड़ल नाक
हम कदीमा नमहर मोंट, भागलैं नहि तऽ काटबौ झोंट

आलू
जमा देबय हम थप्पड़ तड़-तड़, केलहिन के सब हमर परितर
छै जे मर्दक बेटा तोय, आबि के बान्ह लंगोटा तोय
की बाजति छैं माटि तर स’, बाजय जेना जनाना घर स’
हमरे पर अछि दुनिया राजी, आब ज’ बाजलैं बान्हबौ जाबी
हमर तरुआ लाजवाब, नाम हमर अछि लाल गुलाब

परवल

बहुत दूर स’ आबि रहल छी, ताहि हेतु भऽ गेलऔं लेट
हम्मर तरुआ सेठ खायत अछि, ताहि हेतु नमरल छन्हि पेट
दु फाँक कऽ भरि मसाला, दियौ तेल नहि गड़बड़ झाला
दालि भात पर झटपट खाउ, भेल देर औफिस चलि जाउ

तिलकोर
सुनि हाल तिलकोर पंच, हाथ जोड़ि के बैसल मंच
सुंदर नाम हमर तिलकोर, हमरा लत्तिक ओर ना छोर
भेटी बिना मूल्य आ दाम, मिथिला भर पसरल अछि नाम
 

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मिथिला के तरुआ  – प्रस्‍तुति-  निखिल रंजन झा

प्रो. शिव चन्द्र झा, के.एस.डी.एस.यू., दरभंगा में धर्म शास्त्र के प्रख्यात प्रोफेसर रहे हैं। उनके पास शिक्षण का 40 से अधिक वर्षों का अनुभव है। उन्होंने मैथिली भाषा पर गहन शोध किया है और प्राचीन पांडुलिपियों को पढ़ने में कुशलता रखते हैं।
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