दिए के नीचे अंधेरा होता है – संपूर्ण संसार को अपने प्रकाश से प्रकाशवान करने वाला मैथिल समाज आज अपने ही घर में दीन-हीन स्थिति में पड़ा हुआ है। भारतीय समाज के हर कोने में मैथिलों का महत्वपूर्ण स्थान है, चाहे सरकारी हो या गैर सरकारी कार्य। इसके बावजूद, मैथिल समाज की पहचान और उसका अस्तित्व संकट में है।
मिथिला समाज की वर्तमान स्थिति
मैथिल समाज का योगदान न केवल भारत में, बल्कि दुनिया के अन्य देशों में भी महत्वपूर्ण है। फिर भी, मिथिला का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व समय के साथ खोता जा रहा है। अगर मधुबनी चित्रकला को छोड़ दें, तो आज हमारे पास कोई ऐसी उपलब्धि नहीं है, जिस पर सामूहिक गर्व किया जा सके। व्यक्तिगत रूप से सक्षम होते हुए भी हम सामूहिक रूप से असक्षम क्यों हैं?
राजनीतिक और प्रशासनिक उपेक्षा
लोकतांत्रिक व्यवस्था में राजनीतिक कार्यपालिका सबसे महत्वपूर्ण होती है। केंद्रीय स्तर की तो बात ही छोड़ दें, प्रांतीय स्तर पर भी मैथिल समाज हासिए पर पहुंच चुका है। आज के तारीख में एक भी ऐसा व्यक्ति नहीं है, जो प्रांतीय स्तर पर भी अपनी धाक रखता हो। इसके लिए हम सब जिम्मेदार हैं।
उद्योग और कृषि का अभाव
आधुनिक युग में किसी क्षेत्र का विकास वहां फैले उद्योग-धंधों पर निर्भर करता है। मिथिला में आज कितने उद्योग-धंधे चल रहे हैं, शायद इसकी जानकारी सभी को होगी। कृषि के क्षेत्र में भी आज मिथिला पारंपरिक रूप से आ रहे तकनीकों को अपनाए हुए है। आधुनिक प्रयोगों का अभाव मिथिला को पिछड़ेपन की ओर धकेल रहा है।
समस्याओं का समाधान: संगठन की आवश्यकता
इस समस्या से उबरने का एकमात्र उपाय है “संगठन”। आज मिथिला समाज की कमजोरी का कारण संगठित न होना है। हमें सर्वप्रथम राजनीतिक रूप से सशक्त होना चाहिए, जो आज के “Bargaining” युग में अपने समर्थन के बदले विकास के उपकरण को मिथिला तक ला सके। इसके अलावा, सांस्कृतिक क्षेत्र में भी संगठित रूप से सशक्त कदम उठाने होंगे।
सांस्कृतिक धरोहर का संरक्षण
मिथिला की सांस्कृतिक धरोहर बहुत समृद्ध है। मधुबनी चित्रकला विश्व प्रसिद्ध है। हमें मधुबनी चित्रकला के प्रचार-प्रसार पर ध्यान देना चाहिए और अपने युवा वर्ग को इसके प्रति जागरूक करना चाहिए। शिक्षा के क्षेत्र में विशेष पहल की आवश्यकता है। शिक्षा के बिना विकास की दिशा को पाना मुमकिन नहीं है और इसे सभी के लिए उपलब्ध कराना होगा।
प्रवासी मैथिलों की भूमिका
देश और विदेश में महत्वपूर्ण पदों पर आसिन मैथिलों से मेरा अनुरोध है कि वे मिथिलांचल में विश्वस्तरीय तकनीकी शिक्षा की व्यवस्था करवाएं ताकि मिथिला के छात्रों को अपनी पढ़ाई के लिए दूसरे स्थानों पर न जाना पड़े।
मिथिला की पहचान और उसका अस्तित्व
मैथिल वासियों, आप जहाँ कहीं भी हों, जिस किसी भी अवस्था में हों, आपको मैं एक बात स्पष्ट बता देना चाहता हूँ: आप इस समय कहीं भी रहें, पहले अपना घर सही कर लें। क्योंकि जो अपनी जड़ से कट गया, वह उस पतझड़ की तरह है, जो आरम्भ में तो ऊँचाई की ओर बढ़ता है, लेकिन जल्द ही तेज हवा के थपेड़े उसे किसी नाले में पहुँचा देते हैं।
मिथिला की सांस्कृतिक महत्ता
मिथिला का सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व केवल भारत में ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व में है। मिथिला की धरती ने कई महान व्यक्तित्वों को जन्म दिया है, जिनका योगदान अद्वितीय है। यहाँ की संस्कृति, भाषा और साहित्य अद्भुत और अनूठे हैं। मिथिला की हस्तकला, विशेषकर मधुबनी पेंटिंग, विश्व प्रसिद्ध है। हमें अपनी इस सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने के लिए प्रयास करने होंगे।
मिथिला का सामाजिक और आर्थिक विकास
मिथिला का सामाजिक और आर्थिक विकास बहुत आवश्यक है। इसके लिए हमें संगठनात्मक रूप से मजबूत होना पड़ेगा। मिथिला क्षेत्र में विभिन्न उद्योगों और व्यवसायों की स्थापना होनी चाहिए, जिससे यहाँ के लोगों को रोजगार मिल सके और उनका जीवन स्तर सुधर सके। हमें कृषि के क्षेत्र में भी आधुनिक तकनीकों को अपनाना होगा, जिससे कृषि का उत्पादन बढ़े और किसानों की स्थिति सुधर सके।
मिथिला राज्य की मांग
मिथिला राज्य की मांग को लेकर विभिन्न संगठनों और समूहों ने महत्वपूर्ण आंदोलन किए हैं। इन आंदोलनों का उद्देश्य मिथिला को एक अलग राज्य का दर्जा दिलाना और यहाँ के लोगों की समस्याओं का समाधान करना है। मिथिला की संस्कृति, भाषा और आर्थिक विकास के लिए ये आंदोलन बहुत महत्वपूर्ण हैं।
मिथिला का भविष्य
मिथिला का भविष्य तभी उज्जवल हो सकता है, जब यहाँ के लोग संगठनात्मक रूप से मजबूत हों और अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करें। मिथिला की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर को संरक्षित करने के लिए हमें संगठित प्रयास करने होंगे। शिक्षा, उद्योग, कृषि और अन्य क्षेत्रों में विकास के लिए हमें आधुनिक तकनीकों को अपनाना होगा।
निष्कर्ष
मिथिला की वर्तमान स्थिति चिंताजनक है, लेकिन हम संगठित होकर और संगठित प्रयासों से इसे सुधार सकते हैं। हमें अपने सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करना होगा और शिक्षा, उद्योग और कृषि के क्षेत्रों में विकास के लिए संगठित प्रयास करने होंगे। देश और विदेश में महत्वपूर्ण पदों पर आसिन मैथिलों से मेरा अनुरोध है कि वे मिथिला के विकास में योगदान दें और यहाँ के लोगों को बेहतर भविष्य की दिशा में मार्गदर्शन करें।
संगठित प्रयासों की आवश्यकता
मिथिला की समस्या से उबरने का एकमात्र उपाय संगठन है। संगठित प्रयासों से ही हम मिथिला की वर्तमान स्थिति को सुधार सकते हैं और यहाँ के लोगों को एक बेहतर भविष्य प्रदान कर सकते हैं। हमें संगठनात्मक रूप से मजबूत होना पड़ेगा और अपने सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने के लिए संगठित प्रयास करने होंगे।
सांस्कृतिक जागरूकता का अभाव
मिथिला की संस्कृति और परंपरा अद्वितीय हैं, लेकिन आज के समय में इनकी पहचान धुंधली हो गई है। हमें अपने युवा वर्ग को इनकी महत्ता के बारे में जागरूक करना होगा। मिथिला की सांस्कृतिक धरोहर को विश्व मंच पर प्रस्तुत करने की आवश्यकता है, जिससे कि यहाँ की कला और संस्कृति को पहचान मिल सके।
प्रवासी मैथिलों की भूमिका
देश और विदेश में महत्वपूर्ण पदों पर आसिन मैथिलों का मिथिला के विकास में महत्वपूर्ण योगदान हो सकता है। उन्हें यहाँ की शिक्षा व्यवस्था में सुधार के लिए प्रयास करने चाहिए। विश्वस्तरीय तकनीकी शिक्षा की व्यवस्था से मिथिला के छात्रों को अपने क्षेत्र में ही उच्च शिक्षा प्राप्त करने का अवसर मिलेगा, जिससे प्रतिभा का पलायन रुकेगा।
मिथिला की पहचान और उसका अस्तित्व
मिथिला की पहचान और उसका अस्तित्व बनाए रखने के लिए हमें संगठित होना होगा। हमें अपने सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने के लिए संगठित प्रयास करने होंगे। मिथिला का इतिहास और उसकी सांस्कृतिक धरोहर हमें एकजुट करती हैं और हमें एक बेहतर भविष्य की दिशा में प्रेरित करती हैं।
अंतिम विचार
मिथिला का सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व अद्वितीय है। हमें इसे संरक्षित करने के लिए संगठित प्रयास करने होंगे। संगठनात्मक रूप से मजबूत होकर ही हम मिथिला की वर्तमान स्थिति को सुधार सकते हैं और यहाँ के लोगों को एक बेहतर भविष्य प्रदान कर सकते हैं। हमें अपने सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करना होगा और शिक्षा, उद्योग और कृषि के क्षेत्रों में विकास के लिए संगठित प्रयास करने होंगे।
जय मिथिला! जय भारत!
साभार – (नागेंद्र झा “खेलू भाई”)
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