बिहार में एक और ‘ससुरालटॉर्शन’! आठ पन्नों का अंग्रेजी में सुसाइड नोट, सास-पत्नी के ताने ने छीनी जिंदगी

बिहार में एक और 'ससुरालटॉर्शन'! आठ पन्नों का अंग्रेजी में सुसाइड नोट, सास-पत्नी के ताने ने छीनी जिंदगी

बिहार के भागलपुर जिले से एक हृदयविदारक घटना सामने आई है, जहां 26 वर्षीय युवक दीपक कुमार ने आत्महत्या कर ली। इस त्रासदी ने समाज में पारिवारिक विवादों, आर्थिक दबावों और मानसिक स्वास्थ्य के प्रति उदासीनता पर गंभीर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है। दीपक ने अपनी आत्महत्या से पहले 8 पन्नों का एक विस्तृत सुसाइड नोट छोड़ा, जिसमें उसने अपनी पत्नी और ससुरालवालों पर मानसिक प्रताड़ना का आरोप लगाया। यह घटना न केवल एक व्यक्तिगत त्रासदी है, बल्कि एक व्यापक सामाजिक समस्या की ओर भी इशारा करती है, जिसे अब नजरअंदाज करना असंभव है।

पारिवारिक कलह: एक घातक संकट

दीपक की कहानी एक आम भारतीय मध्यमवर्गीय युवक की कहानी है, जो अपनी शादीशुदा जिंदगी को बचाने की कोशिश में लगातार संघर्ष करता रहा। उसकी पत्नी शादी के एक साल बाद ही उसे छोड़कर चली गई, और तीन वर्षों तक उसने अपने ससुरालवालों से उसे वापस लाने की गुहार लगाई। लेकिन हर बार उसे अपमान और अस्वीकार्यता का सामना करना पड़ा। समाज में अक्सर महिलाओं पर घरेलू हिंसा या दहेज प्रताड़ना के मामले उठाए जाते हैं, जो जरूरी भी हैं, लेकिन यह घटना दिखाती है कि पुरुष भी पारिवारिक विवादों और मानसिक यातनाओं के शिकार हो सकते हैं।

“निकम्मा” शब्द का बोझ और सामाजिक अपेक्षाएँ

दीपक की सास द्वारा उसे “निकम्मा” कहकर ताने मारने की बात सामने आई है। भारतीय समाज में अब भी एक पुरुष की सफलता को उसकी कमाई से आंका जाता है। यदि वह ज्यादा नहीं कमा पा रहा, तो उसे अपमान, उपेक्षा और प्रताड़ना सहनी पड़ती है। परिवार और समाज का यह मानसिक दबाव, विशेष रूप से मध्यम और निम्न-मध्यम वर्ग के पुरुषों के लिए, एक असहनीय बोझ बन सकता है। क्या एक व्यक्ति की योग्यता केवल उसकी आर्थिक स्थिति से आंकी जानी चाहिए? यह प्रश्न हमें खुद से पूछने की आवश्यकता है।

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मानसिक स्वास्थ्य: अब भी एक उपेक्षित विषय

दीपक के सुसाइड नोट से यह स्पष्ट होता है कि वह लंबे समय से मानसिक तनाव में था, लेकिन किसी ने उसकी समस्या को गंभीरता से नहीं लिया। भारत में मानसिक स्वास्थ्य को अभी भी एक गौण विषय माना जाता है। लोग अवसाद और चिंता जैसी समस्याओं को या तो नकारते हैं या फिर इसे “कमजोरी” मानते हैं। यह मानसिकता बदलनी होगी।

सरकार द्वारा कई हेल्पलाइन नंबर उपलब्ध कराए गए हैं, लेकिन समाज में इनका प्रचार-प्रसार बेहद सीमित है। क्या हमारा सिस्टम मानसिक स्वास्थ्य को लेकर उतना ही सतर्क है, जितना शारीरिक स्वास्थ्य को लेकर? यदि दीपक को सही समय पर काउंसलिंग मिलती, तो शायद उसकी जान बचाई जा सकती थी।

कानूनी और सामाजिक न्याय की जरूरत

दीपक ने अपने सुसाइड नोट में स्पष्ट रूप से चार लोगों—पत्नी राखी राय, सास रीता राय, बदन प्रसाद और कुणाल किशोर राय—का नाम लिया है, जिनसे उसे न्याय की उम्मीद थी। अब यह पुलिस और न्याय व्यवस्था का कर्तव्य बनता है कि वे इस मामले में निष्पक्ष जांच करें। आत्महत्या के लिए उकसाने के मामलों में अक्सर न्याय में देरी होती है, जिससे पीड़ित परिवार को और मानसिक कष्ट झेलना पड़ता है। क्या यह समय नहीं आ गया है कि इस तरह की घटनाओं के लिए त्वरित न्याय प्रणाली विकसित की जाए?

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समाज को आत्ममंथन करने की जरूरत

इस घटना से हमें कई गंभीर सबक लेने चाहिए—

  1. मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता दें: परिवार और दोस्तों को यह समझना होगा कि मानसिक स्वास्थ्य की समस्याएँ वास्तविक होती हैं। यदि कोई व्यक्ति लगातार उदास है या आत्महत्या के संकेत दे रहा है, तो उसे तुरंत मदद की जरूरत होती है।
  2. पुरुषों की भावनाओं को भी मान्यता दें: समाज में पुरुषों से अपेक्षा की जाती है कि वे कभी कमजोर न हों। यह धारणा घातक हो सकती है। पुरुषों को भी अपने दर्द और संघर्ष साझा करने की पूरी स्वतंत्रता होनी चाहिए।
  3. न्यायिक प्रक्रिया में सुधार करें: आत्महत्या के मामलों में न्याय मिलने में वर्षों लग जाते हैं। यदि इन मामलों में तेज़ी से कार्रवाई की जाए, तो यह अन्य पीड़ितों के लिए भी एक उम्मीद की किरण बन सकती है।

निष्कर्ष: क्या हम बदलाव के लिए तैयार हैं?

दीपक कुमार की आत्महत्या केवल एक व्यक्ति की मौत नहीं है; यह हमारे समाज में मौजूद एक गहरी समस्या का प्रतिबिंब है। अगर हम इस घटना से सबक नहीं लेते, तो ऐसे और भी दीपक मानसिक प्रताड़ना और सामाजिक दबाव का शिकार बनते रहेंगे।

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आइए, एक ऐसा समाज बनाने का प्रयास करें जहां किसी को भी यह महसूस न हो कि आत्महत्या ही उसका अंतिम विकल्प है। अगर आप या आपका कोई करीबी मानसिक तनाव से जूझ रहा है, तो तुरंत मदद लें। जीवन अनमोल है, और हर समस्या का समाधान संभव है।

नोट- हर समस्या का है हल
मन में सुसाइड का ख्याल आए तो मनोचिकित्सक से बात करके आप अपनी समस्या का हल खोज सकते हैं। इसके लिए हेल्पलाइन नंबर 14416 है, जहां आप 24X7 संपर्क कर सकते हैं। इसके अलावा और भी कई हेल्पलाइन नंबर्स हैं जहां आप संपर्क कर सकते हैं। सामाजिक न्याय और आधिकारिता मंत्रालय की हेल्पलाइन- 1800-599-0019 (13 भाषाओं में है) इंस्टीट्यूट ऑफ़ ह्यमून बिहेवियर एंड एलाइड साइंसेज-9868396824, 9868396841, 011-22574820 हितगुज हेल्पलाइन, मुंबई- 022- 24131212 नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंस

जय चन्द्र झा हास्य और व्यंग्य लेखन में माहिर हैं, जिनका इस क्षेत्र में 20 वर्षों का अनुभव है। उनकी रचनाएँ मिथिला की संस्कृति, समाज और जीवन के विभिन्न पहलुओं पर हास्यपूर्ण व तीखे व्यंग्य के साथ गहरी छाप छोड़ती हैं।
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