मिथिला राज्य और उसका यथार्थ

मिथिला राज्य और उसका यथार्थ

मिथिला राज्य और उसका यथार्थ – मिथिला राज्य की मांग भारत की आजादी के बाद से ही उठती रही है। लेकिन इस दिशा में जितना प्रयास हुआ है, उसका पूरा फायदा मिथिला के लोगों को नहीं मिला है। प्राचिन काल से हि मिथिला एक प्रमुख ऐतिहासिक और सांस्कृतिक क्षेत्र रहा है, लेकिन आज इस क्षेत्र की स्थिति बहुत चिंताजनक बन गई है।

मिथिला राज्य का इतिहास और संघर्ष

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान कई मिथिला निवासियों ने एक स्वतंत्र राज्य का सपना देखा। 26 जुलाई 1953 को दरभंगा के टाउन हॉल में मिथिला प्रांतीय सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसमें सर्वसम्मति से मिथिला प्रांत के निर्माण का प्रस्ताव स्वीकृत हुआ। लेकिन इस दिशा में अब तक ठोस परिणाम नहीं मिला है।

मिथिला प्राचीन भारत का सबसे पुराना संप्रभु राज्य रहा है। यहाँ लगभग पाँच हजार वर्षों से राजतंत्र, गणतंत्र और विभिन्न शासकीय प्रणालियों के तहत शासन रहा है। मैथिली साहित्य का इतिहास लगभग एक हजार वर्ष पुराना है। मिथिला की गौरवशाली सांस्कृतिक और ऐतिहासिक परंपरा किसी भी दूसरे क्षेत्र से कम नहीं है। लेकिन आधुनिक राजनीति और उपेक्षा के कारण इस क्षेत्र की स्थिति निम्नस्तर पर पहुँच गई है।

मिथिला राज्य की मांग और तर्क

मिथिला राज्य की मांग लोकतांत्रिक और संवैधानिक है। उत्तर में हिमालय से दक्षिण में गंगा तक, पूर्व में महानंदा से पश्चिम में गंडकी नारायणी तक मिथिला क्षेत्र विस्तारित है। इस विशाल क्षेत्र में करीब 2 करोड़ लोग बसते हैं। अंतर्राष्ट्रीय मान्यता अनुसार, मिथिला की जनसंख्या और क्षेत्रफल कई देशों से बड़ा है, लेकिन इसके बावजूद राज्य निर्माण का आंदोलन पूरा जोर नहीं पकड़ सका।

एक प्रमुख कारण यह है कि मिथिला राज्य निर्माण के बारे में कई प्रकार की गलत धारणाएँ और भ्रांतियाँ फैली हैं। कुछ लोगों का कहना है कि मिथिला राज्य का निर्माण होने से ब्राह्मण जाति को फायदा होगा, लेकिन वास्तविकता यह है कि मिथिला में ब्राह्मणों की संख्या अन्य जातियों से बहुत कम है। किसी भी राजनीतिक इकाई के निर्माण से वहाँ बसने वाले सभी लोगों को फायदा होगा, जब कि जनतांत्रिक पद्धति में अधिक जनसंख्या वाला समुदाय शासन कर सकता है।

मिथिला राज्य – राजनीतिक और सामाजिक बाधाएँ

22 दिसंबर 1953 को तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने राज्य पुनर्गठन आयोग का गठन किया। इस आयोग के अध्यक्ष सैयद फजल अली, एम. पनिक्कर और ह्रदय नाथ कुंजरु सदस्य थे। मिथिला के पक्ष से भी आयोग के समक्ष प्रस्ताव और संभार पत्र दिया गया, लेकिन आयोग की निष्पक्षता और योग्यता पर लोगों का विश्वास नहीं था।

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जानकारों के अनुसार, मिथिला राज्य के निर्माण में सबसे बड़ी बाधा यह थी कि उस समय कांग्रेस, जो देश की प्रमुख पार्टी थी, उसमें कोई राष्ट्रीय स्तर का मैथिल नेता नहीं था।

सामाजिक और सांस्कृतिक कारक

राजनीतिक कारणों से अलग, समाज में कुछ सामाजिक कारण भी बाधा बने। आज के समय में मिथिलाक्षर अपनी जन्मभूमि से लुप्त हो गए हैं। मधुबनी, दरभंगा जो मिथिला के ह्रदयस्थल हैं, वहाँ लोग मैथिली बोलना हीनता समझते हैं।

अब आवश्यकता है कि सभी लोग मिलकर सरकार के समक्ष मिथिला राज्य की मांग करें और अपने अस्तित्व को बचाएँ। मिथिला के इतिहास, संस्कृति और भाषा के संरक्षण हेतु मिथिला राज्य का निर्माण बहुत जरूरी है।

मिथिला का सांस्कृतिक महत्व

मिथिला क्षेत्र की सांस्कृतिक धरोहर बहुत समृद्ध है। यहाँ जन्मे कई महान व्यक्तित्व जैसे विदेह, याज्ञवल्क्य, जनक, सीता, विद्यापति और कालीदास आदि का योगदान बहुत महत्वपूर्ण है। मैथिली भाषा और साहित्य का विकास यहाँ हुआ और यहाँ की सांस्कृतिक परंपरा आज तक जीवित है।

मिथिला में बसने वाले लोगों की जीवन शैली, रीति-रिवाज और परंपरा बहुत अद्भुत और अनूठी है। यहाँ के लोगों का संघर्ष, धैर्य और आत्मनिर्भरता के गुण सभी को प्रेरणा देते हैं। यहाँ की हस्तकला, खासकर मधुबनी पेंटिंग, विश्व प्रसिद्ध है।

मिथिला राज्य का सामाजिक और आर्थिक विकास

मिथिला राज्य के निर्माण से यहाँ का सामाजिक और आर्थिक विकास तेजी से होगा। यहाँ के संसाधनों का सही उपयोग होगा और लोगों के रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। मिथिला क्षेत्र की कृषि, हस्तकला और अन्य उद्यमों के विकास से लोगों का जीवन स्तर सुधार होगा।

मिथिला राज्य के निर्माण से यहाँ के लोगों की पहचान का संरक्षण होगा और यहाँ की संस्कृति, भाषा और परंपरा का संवर्धन होगा। यहाँ के लोगों की सामूहिक और सामुदायिक भावना का विकास होगा और सभी मिलकर विकास की दिशा में कदम बढ़ा सकेंगे।

मिथिला राज्य का भविष्य

मिथिला राज्य के निर्माण की दिशा में कुछ प्रमुख कदम उठाए जा सकते हैं। यहाँ के लोगों की जागरूकता बढ़ाई जाए, यहाँ के इतिहास, संस्कृति और परंपरा के संरक्षण हेतु प्रयास हो, और यहाँ के सामाजिक और आर्थिक विकास की योजनाओं की रूपरेखा तैयार की जाए। यहाँ के युवा पीढ़ी को यहाँ के गौरवशाली इतिहास और संस्कृति के बारे में जानकारी दी जाए और उन्हें यहाँ के विकास में सक्रिय भागीदारी के लिए प्रेरित किया जाए।

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मिथिला राज्य के निर्माण हेतु सभी लोग मिलकर एकजुट हों और अपने अधिकार के लिए संघर्ष करें। राज्य की मांग लोकतांत्रिक और संवैधानिक है, और यहाँ के लोगों की आस्था और विश्वास के आधार पर यहाँ का विकास संभव है।

हाल के दिनों में मिथिला राज्य की मांग के लिए किए गए कुछ प्रमुख आंदोलन

1. मिथिला राज्य निर्माण संघर्ष समिति

मिथिला राज्य निर्माण संघर्ष समिति ने हाल के वर्षों में मिथिला राज्य की मांग को लेकर कई आंदोलन किए हैं। इस समिति का उद्देश्य मिथिला को एक अलग राज्य का दर्जा दिलाना है। ये लोग नियमित रूप से धरना, प्रदर्शन और रैली आयोजित करते हैं, जिसमें स्थानीय जनता की भागीदारी होती है।

2. मिथिला छात्र संघ (MITSA)

मिथिला छात्र संघ ने भी मिथिला राज्य की मांग को लेकर कई आंदोलनों का आयोजन किया है। छात्रों का यह समूह विभिन्न विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में जागरूकता फैलाने का काम करता है। ये लोग प्रदर्शन, सेमिनार और चर्चा सत्र आयोजित करते हैं, जिसमें मिथिला राज्य के फायदे और इसकी आवश्यकता पर जोर दिया जाता है।

3. मिथिला नव निर्माण दल (MNND)

मिथिला नव निर्माण दल एक प्रमुख संगठन है जो मिथिला राज्य की मांग को लेकर सक्रिय है। इस संगठन ने मिथिला क्षेत्र में कई जनजागरण अभियानों का आयोजन किया है। इन्होंने विभिन्न गांवों और शहरों में जाकर लोगों को मिथिला राज्य की आवश्यकता और इसके लाभों के बारे में जानकारी दी है।

4. ऑल मिथिला स्टूडेंट यूनियन (AMSU)

ऑल मिथिला स्टूडेंट यूनियन ने भी मिथिला राज्य की मांग को लेकर कई आंदोलनों का आयोजन किया है। इस संगठन का मुख्य उद्देश्य युवाओं को इस आंदोलन से जोड़ना है। ये लोग रैली, धरना और सेमिनार का आयोजन करते हैं और सोशल मीडिया के माध्यम से भी जागरूकता फैलाते हैं।

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5. मिथिला राज्य निर्माण मोर्चा (MSNM)

मिथिला राज्य निर्माण मोर्चा ने भी हाल के दिनों में कई आंदोलन किए हैं। इस संगठन ने मिथिला क्षेत्र में बड़े स्तर पर प्रदर्शन और रैली आयोजित की हैं। इन्होंने राजनीतिक दलों के साथ भी चर्चा की है ताकि मिथिला राज्य की मांग को लेकर सरकार पर दबाव बनाया जा सके।

मिथिला राज्य और उसका यथार्थ

मिथिला राज्य की मांग को लेकर हाल के दिनों में कई संगठनों और समूहों ने महत्वपूर्ण आंदोलन किए हैं। इन आंदोलनों का उद्देश्य मिथिला को एक अलग राज्य का दर्जा दिलाना और यहाँ के लोगों की समस्याओं का समाधान करना है। मिथिला की संस्कृति, भाषा और आर्थिक विकास के लिए ये आंदोलन बहुत महत्वपूर्ण हैं।

मिथिला की सांस्कृतिक धरोहर और इतिहास यह साबित करते हैं कि यह क्षेत्र कभी भारत का सबसे समृद्ध और अग्रणी क्षेत्र था। अब समय आ गया है कि हम मिथिला के गौरव को पुनर्स्थापित करने के लिए एकजुट हों।

मिथिला राज्य और उसका यथार्थ – साभार – डा. लक्ष्मण झा -डा. लक्ष्मण झा एक प्रमुख मैथिली लेखक, समाजशास्त्री और मिथिला क्षेत्र के विचारक हैं। वे मिथिला की सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनीतिक स्थिति पर अपने विचारों के लिए प्रसिद्ध हैं। उन्होंने मिथिला राज्य के निर्माण के पक्ष में आवाज उठाई और मैथिली साहित्य को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया। वे मिथिला के गौरव को पुनर्स्थापित करने के लिए सक्रिय रहे हैं।

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प्रो. शिव चन्द्र झा, के.एस.डी.एस.यू., दरभंगा में धर्म शास्त्र के प्रख्यात प्रोफेसर रहे हैं। उनके पास शिक्षण का 40 से अधिक वर्षों का अनुभव है। उन्होंने मैथिली भाषा पर गहन शोध किया है और प्राचीन पांडुलिपियों को पढ़ने में कुशलता रखते हैं।
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