पटना: बिहार सरकार ने स्कूलों के निरीक्षण प्रक्रिया में बड़ा बदलाव किया है। अब अल्प अवधि संविदा (Short-term Contract) या आउटसोर्सिंग के माध्यम से नियोजित कर्मियों को स्कूल निरीक्षण की जिम्मेदारी नहीं दी जाएगी। यह कार्य अब केवल शिक्षा विभाग के नियमित पदाधिकारी ही करेंगे। बिहार शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव डॉ. एस सिद्धार्थ ने इस संबंध में एक आदेश जारी किया है, जिसमें सभी जिला शिक्षा अधिकारियों (DEO) को स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं कि अब केवल विभाग के स्थायी अधिकारी ही स्कूलों की जांच कर सकते हैं।
इस आदेश के तहत अब स्कूलों का निरीक्षण केवल उन्हीं अधिकारियों द्वारा किया जाएगा, जो शिक्षा विभाग और बिहार एजुकेशन प्रोजेक्ट (BEP) से नियमित रूप से नियुक्त हैं। इनमें जिला शिक्षा पदाधिकारी (DEO), जिला कार्यक्रम पदाधिकारी (DPO), कार्यक्रम पदाधिकारी (PO), प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी (BEO), अपर जिला कार्यक्रम समन्वयक (BEP) और सहायक कार्यक्रम पदाधिकारी शामिल हैं। आदेश में यह भी स्पष्ट किया गया है कि अब संविदा कर्मी या आउटसोर्स कर्मी विद्यालयों की निगरानी और निरीक्षण नहीं कर पाएंगे।
नई व्यवस्था के तहत अब यह भी सुनिश्चित किया जाएगा कि निरीक्षण के लिए जिन विद्यालयों का चयन होगा, उनकी सूचना एक दिन पहले रात 9 बजे संबंधित अधिकारियों को मोबाइल पर भेज दी जाएगी। यह सूचना अपर मुख्य सचिव कार्यालय से जारी की जाएगी। इस बदलाव का मुख्य उद्देश्य सरकारी विद्यालयों में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार लाना और शिक्षकों व छात्रों के लिए बेहतर शैक्षणिक माहौल प्रदान करना है।
सरकार का यह फैसला उस समय आया है जब निरीक्षण प्रक्रिया में कई खामियां पाई गईं। हाल ही में हुई जांच में यह सामने आया कि कई निरीक्षण रिपोर्ट फर्जी थीं और वास्तविक स्कूल स्थितियों से बिल्कुल अलग थीं। कई मामलों में स्थानीय जांच के दौरान पाया गया कि निरीक्षण रिपोर्ट में दी गई जानकारी और वास्तविकता में काफी अंतर था। इसे ध्यान में रखते हुए सरकार ने निरीक्षण प्रणाली में अधिक पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए यह बदलाव किया है।
इसके अलावा, आदेश में यह भी कहा गया है कि हर पदाधिकारी को प्रत्येक माह कम से कम 25 विद्यालयों का औचक निरीक्षण करना अनिवार्य होगा। अगर किसी निरीक्षण प्रतिवेदन में फर्जी या भ्रामक जानकारी पाई जाती है, तो संबंधित अधिकारी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी।
बिहार सरकार की यह नई पहल शिक्षा व्यवस्था को अधिक मजबूत और पारदर्शी बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इस बदलाव से उम्मीद की जा रही है कि सरकारी विद्यालयों में शिक्षण स्तर में सुधार होगा और निरीक्षण प्रक्रिया अधिक प्रभावी और विश्वसनीय होगी।