गोनूक बिलाड़ि – गोनू झा

गोनूक बिलाड़ि - गोनू झा

गोनू झाक बुद्धिमत्ताक लोहा सभ कियो मानैत छल । अपन बुद्धिमत्तेक बल पर ओ मिथिलाक राजदरवार मे आदर पबैत छलाह । एक बेर मिथिला नरेशक मोन मे एकटा विचार आयल । ओ अपन सभ दरबारी के बजौलनि आ एक-एकटा विलाड़ि सभ कें दैत आदेश देलैन जे एहि बिलाड़ि के तीन महीन धरि पालू-पोषू आ तत्पश्चात्‌ जकर बिलाड़ि अधिक बलिष्ठ रहत, हुनका इनाम भेटत । नरेशक आदेश रहनि । सभ कियो आदेश मानबाक लेल विवश छलाह । सभ अपन-अपन बिलाड़ि लेलनि आ ओकर खूब पालन करय लगलाह जे कदाचित हमरे इनाम भेटि जायत ।

गोनू सेहो बिलाड़िक संग घर पहुँचलाह । ओहो ओकर सेवा-सुश्रुषा मे लागि गेलाह । घर मे महीस जे दूध दैन से बिलाड़िक भोजन मे चलि जाइक । दू-चारि दिन तँ ठीक लगलनि, परन्तु बाद मे गोनू कें ई बात ठीक नहि लगलनि जे महीस पोसी हम आ दूध पीबय ई बिलाड़ि । ओ एहि युक्ति मे लागि गेलाह जे कोन तरहें दूध बांचि जाय आ इनामो भेटि जाय । अंतत: हुनका एकटा उपाय सुझलनि ।

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अगिला दिन भोरे ओ महीस दुहलाह । दूध औंटबेलाह । गरम-गरम दूधक लोहिया ओ आंगन मे रखलाह आ तत्पश्चात्‌ बिलाड़ि के बड़ प्रेम सँ चुचकारलाह । बिलाड़ि दूध देखैत देरी लगीच पहुँचल । गोनू बिलाड़ कें गरदनि सँ पकड़लाह आ गरम दूध मे ओकर मूड़ी डुबा देलनि । बिलाड़ि छटपटायल आ पुन: देह झाड़ि ओतय सँ भागल । आब बिलाड़ि दूध कें देखैत देरी भागि जाय । गोनू निश्चिंत भेलाह आ शान सँ दूध-दही अपने खाय लगलाह । धीरे-धीरे तीन महीनाक अवधि समाप्त भऽ गेल । ओ दिन आबि गेल जहिया मिथिला नरेश बिलाड़िक प्रतिपालनक लेल इनाम बँटताह । सभ कियो अपन-अपन बिलाड़िक संग उपस्थित भेलाह । गोनू सेहो अपन सामान्य बिलाड़ि कें लऽ दर्बार मे हाजिर भेलाह ।

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सभक बिलाड़ि एक सँ एक बलिष्ठ रहैक । मिथिला नरेशक लेल निर्णय करब कठिन रहैन । परन्तु गोनूक बिलाड़ि सभ सँ कमजोर रहनि । नरेश गोनू सँ एकर कारण पुछलाह । गोनू बजलाह – महाराज! हमर बिलाड़ि तऽ दूध पीबिते नहि अछि तखन हम की करी? बिलाड़ि दूध नहि पीबैत अछि, एहि गप्प पर सहसा केकरो विश्वास नहि भेलैक । तथापि प्रमाणक लेल एकटा बर्तन मे दूध मँगाओल गेल । दूध के देखितहि गोनूक बिलाड़ि ओतय सँ भागय लागल । सौंसे राज-दरबार देखलक जे गोनूक कहब ठीक छनि । अंतत: मिथिला नरेश बजलाह – बिनु दूध पीने गोनूक बिलाड़ि ठीक छनि तें इनाम गोनू कें भेटबाक चाही । संपूर्ण राजदरबार अचंभित रहि गेल नरेशक निर्णय सँ ।

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प्रो. शिव चन्द्र झा, के.एस.डी.एस.यू., दरभंगा में धर्म शास्त्र के प्रख्यात प्रोफेसर रहे हैं। उनके पास शिक्षण का 40 से अधिक वर्षों का अनुभव है। उन्होंने मैथिली भाषा पर गहन शोध किया है और प्राचीन पांडुलिपियों को पढ़ने में कुशलता रखते हैं।
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