बियाह सँ द्विरागमन धरिक गीत / मैथिली लोकगीत संग्रह

बियाह सँ द्विरागमन धरिक गीत / मैथिली लोकगीत संग्रह

बियाह सँ द्विरागमन धरिक गीत / मैथिली लोकगीत संग्रह

पीपरक पात अकासहि डोलय लिरिक्स

पीपरक पात अकासहि डोलय,
शीतल बहय बसात यो
ताहि तर बाबा पलंगा ओछाओल,
सुतय पीताम्बर तानि यो
आइ हे माइ पर हे परोसिन,
बाबा के दियनु जगाइ हे
जिनका घर बाबा कन्या कुमारि,
सेहो कोना सूतल निश्चिन्त यो
जइयौ यौ अयोध्या नगरी,
राजा दशरथ हुनि राम यो
राजा दशरथ के चारि बालक छनि,
एक श्यामल तीन गोर यो
कारी देखि जुनि भुलबै यो बाबा,
कारी के तिलक चढ़ायब यो

एक राजा के चारि छनि धीया लिरिक्स

एक राजा के चारि छनि धीया,
चारू छनि कुमारि यो
धीया देखि बाबा माथ लेल पाग,
चलि भेल मगह मुंगेर यो
दक्षिण खोजल बाबा पश्चिम खोजल,
खोजल त्रिभुवन नाथ यो
एक जंगलमे भेटल एक तपसी,
हुनकहि देखि कनै छथि मनाइन
एहि िबर सौं नहि धीया बिहाअब,
मोर धीया रहति कुमारि यो
जुनि कानू जुनि खीजू हमरो मनाइन,
इहो थिका त्रिभुवन नाथ

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सीता के देखि देखि झखथि जनक ऋषि लिरिक्स

सीता के देखि देखि झखथि जनक ऋषि,
मोती जकां झहरनि नोर
सीता जुगुत वर कतऽ भेटत,
ओतहि सऽ लायब जमाय यो
सीता जुगुत वर अवधपुर भेटत,
ओतहि सऽ लाउ जमाय यो
राजा दशरथ् जी के चारि बालक छनि,
एक श्यामल तीन गोर यो
गोरहि देखि नहि भूलबै यो बाबा,
श्यामल के मुकुट चढ़ायब यो
देशहि देश केर वीरलोक आओल,
सभ छूबि चलि गेल यो
वशिष्ठ मुनि संग आए दुइ बालक,
धनुष देखि करय उतफाल यो
जखनहि रामचन्द्र धनुष उठाओल,
सीया गले डालू जयमाल यो
जखनहि उठाओल मचि गेल जय जयकार यो

सूर्यक ज्योति सन हमरो उमा छथि लिरिक्स

सूर्यक ज्योति सन हमरो उमा छथि
वर लयला भंगिया भिखारि गे माई
कानऽ लगली खीजऽ लगली गौरी मनाइन
झहरनि नयना सँ नोर गे माई
एहि बरसँ नहि गौरी बिआहब
मोर गौरी रहती कुमारि गे माई
तीन भुवन वर कतहु ने भेटल
वर लयला भंगिया भिखारि गे माइ
देखितौं नारद के पढ़ितौं गारि
हुनको ने उचित विचार के माई
जुनि कानू जुनि खीजू हमरो मनाइन
जुनि पढू नारद के गारि गे माई
हमरो करममे इहो वर लीखल
लीखल मेटल नहि जाइ गे माई

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हमरो गौरी छथि पाँचे बरस के लिरिक्स

हमरो गौरी छथि पाँचे बरस के
एक सौ बरस के जमाइ गे माई
कोना कऽ गोरी सासुर बसती
छथिन अति सुकुमारी गे माई
चारि सखि मिलि गौरी देखि कानथि
गौरी के देल जहदाइ गे माई
सऽन सन वर के केश पाकल छनि
पयरमे फाटल बेमाई गे माई
जुनि कानू जुनि खीजू सखि हे सहेलिया
इहो थिका त्रिभुवननाथ गे माई
एहि वर लए हम फूल लोढ़ि लयलौ
गंथलौं मे हार बनाइ गे माई
चन्द्रवदनि सन हमरो सुरति अछि
सूर्य सन छथिन जमाइ गे माई

सूतल छलहुँ ऊँच रे हवेलिया लिरिक्स

सूतल छलहुँ ऊँच रे हवेलिया
सुतलहुँ आंचर ओछाइ गे माई
सुतलमे बाबा सपन एक देखलहुँ
तिरहुत हाट विवाह गे माई
जे तिरहुतिया साजल बरिअतिया
थर-थर कांपय करेज गे माई
किए देखि आहे बेटी बइसक देबनि
किए देखि देबनि तमोल गे माई
किए देखि आहे बेटी जइतुक देबनि
किए देखि सुबुधि सिआन गे माई
चालि देखि आहे बेटी बइसक देबनि
मुख देखि देबनि तमोल गे माई
धन देखि आहे बेटी जइतुक देबनि
सीता देबनि सुबुधि सिआन गे माई

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जय चन्द्र झा हास्य और व्यंग्य लेखन में माहिर हैं, जिनका इस क्षेत्र में 20 वर्षों का अनुभव है। उनकी रचनाएँ मिथिला की संस्कृति, समाज और जीवन के विभिन्न पहलुओं पर हास्यपूर्ण व तीखे व्यंग्य के साथ गहरी छाप छोड़ती हैं।
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