बिहार के वैशाली जिले में शिक्षकों को अब एक नया कार्य सौंपा गया है, जो शायद उनके नियमित शिक्षण कार्य से बिल्कुल अलग है। अब उन्हें बच्चों को आवारा कुत्तों से बचाने की जिम्मेदारी दी गई है। जिला शिक्षा विभाग ने सभी प्रखंड शिक्षा पदाधिकारियों को एक पत्र भेजा है, जिसमें शिक्षकों को स्कूल परिसर से कुत्तों को दूर रखने और बच्चों को कुत्तों के काटने से होने वाली बीमारियों के बारे में जागरूक करने के निर्देश दिए गए हैं। यह मामला शिक्षा विभाग और आम लोगों के बीच चर्चा का विषय बन गया है, और कई शिक्षक इस नए आदेश से नाखुश भी हैं।
क्या अब मास्टर जी कुत्ते भगाएंगे?
वैशाली जिले के सभी सरकारी स्कूलों के शिक्षकों को अब आवारा कुत्तों से बच्चों की सुरक्षा का जिम्मा सौंपा गया है। जिला कार्यक्रम पदाधिकारी राजन कुमार गिरि द्वारा जारी एक आधिकारिक पत्र में शिक्षकों को तीन मुख्य निर्देश दिए गए हैं:
- कचरा प्रबंधन: स्कूल परिसर से कचरा नियमित रूप से निर्धारित कूड़ेदान में फेंका जाए, ताकि कुत्ते आकर्षित न हों।
- कुत्तों की आवास स्थलों पर रोक: विद्यालय परिसर में ऐसी जगहें न बनने दें, जहां कुत्ते आकर बैठते हैं और गंदगी फैलाते हैं।
- जागरूकता: बच्चों को आवारा कुत्तों से सतर्क रहने और कुत्तों के काटने से होने वाली बीमारियों के बारे में जागरूक करें।
DEO की सफाई:
जिला शिक्षा पदाधिकारी वीरेंद्र कुमार ने इस आदेश पर सफाई देते हुए कहा कि यह निर्देश भारत सरकार के मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के पत्र के आधार पर जारी किया गया है। उन्होंने कहा कि इस आदेश का मुख्य उद्देश्य बच्चों को आवारा कुत्तों से सुरक्षा प्रदान करना है। उन्होंने बताया कि स्कूल परिसर में कुत्तों का प्रवेश रोकने, कचरा उचित स्थान पर फेंकने और बच्चों को कुत्तों के काटने से होने वाले खतरों के बारे में जागरूक करना बेहद जरूरी है।
शिक्षकों की नाराजगी:
हालांकि, जिला शिक्षा पदाधिकारी की सफाई के बावजूद, यह आदेश वैशाली जिले के शिक्षकों और आम लोगों के बीच चर्चा का विषय बन गया है। कई शिक्षक इस नए आदेश से नाखुश हैं और इसे अपने कार्य का हिस्सा नहीं मानते। वे सवाल उठा रहे हैं कि क्या कुत्तों को भगाना उनका काम है? इस नए आदेश के बाद शिक्षकों में नाराजगी और चिंता देखने को मिल रही है, क्योंकि अब उन्हें अपने नियमित शिक्षण कार्य के अलावा यह अतिरिक्त जिम्मेदारी भी निभानी पड़ रही है।
इस आदेश ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या यह कदम बच्चों की सुरक्षा के लिए सही है या फिर शिक्षकों के काम का बोझ और बढ़ाने वाला साबित होगा।