मिथिला पंचांग  कोजागरा 2025 : तिथि, समय, महत्व और परंपराएं

कोजागरा 2025: तिथि, समय, महत्व और परंपराएं

कोजागरा 2025: तिथि, समय, महत्व और परंपराएं -कोजागरा व्रत या कौमुदी व्रत मिथिलांचल का एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जो धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं का प्रतीक है। इसे शरद पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है, जब चंद्रमा अपनी सबसे अधिक रोशनी और शीतलता के साथ आकाश में दिखाई देता है। इस व्रत का मुख्य उद्देश्य देवी लक्ष्मी की पूजा और अमृत वर्षा का लाभ प्राप्त करना है। साथ ही, यह त्योहार सामाजिक समरसता और पारिवारिक रिश्तों को मजबूती प्रदान करता है। वर्ष 2025 में, कोजागरा व्रत सोमवार, 6 अक्टूबर को मनाया जाएगा।

मिथिला पंचांग  कोजागरा 2025 की तिथि और शुभ मुहूर्त

कोजागरा व्रत के लिए वर्ष 2025 की तिथि और समय विशेष रूप से शुभ हैं। पूर्णिमा तिथि की शुरुआत 6 अक्टूबर 2025 को सुबह 11:24 बजे से होगी और यह अगले दिन, 7 अक्टूबर 2025 को सुबह 10:45 बजे समाप्त होगी। लक्ष्मी पूजा के लिए सबसे शुभ समय सूर्यास्त के बाद प्रदोष काल है, जो शाम 5:40 बजे से रात 6:56 बजे तक रहेगा। हालांकि, यह मान्यता है कि देवी लक्ष्मी की पूजा और चुमाउन (नवविवाहितों का स्वागत) पूरी रात किसी भी समय किया जा सकता है। इस दिन जागरण का भी विशेष महत्व है, क्योंकि यह माना जाता है कि जागरण करने वाले भक्तों पर देवी लक्ष्मी अपनी कृपा बरसाती हैं।

इस वर्ष कोजागरा व्रत सोमवार, 6 अक्टूबर 2025 को मनाया जाएगा। इस दिन की तिथियां और शुभ मुहूर्त निम्नलिखित हैं:

  • पूर्णिमा तिथि प्रारंभ: 6 अक्टूबर 2025 को सुबह 11:24 बजे।
  • पूर्णिमा तिथि समाप्त: 7 अक्टूबर 2025 को सुबह 10:45 बजे।
  • लक्ष्मी पूजा का शुभ मुहूर्त:
    • सूर्यास्त के बाद प्रदोष काल: शाम 5:40 बजे से रात 6:56 बजे तक।
    • पूरे दिन और रात में भी पूजा का कोई भी समय उपयुक्त माना जाता है।
  • चुमाउन (नवविवाहितों का स्वागत): प्रदोष काल में चुमाउन करना शुभ माना गया है।

मिथिला पंचांग  कोजागरा 2025 का धार्मिक और सामाजिक महत्व

कोजागरा व्रत का धार्मिक महत्व अत्यंत गहरा है। यह पर्व देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए मनाया जाता है। शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा की किरणों से अमृत वर्षा होती है, जो स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए लाभकारी मानी जाती है। इस दिन खीर बनाकर चांदनी रात में रखने और अगली सुबह इसका सेवन करने की परंपरा है। माना जाता है कि यह खीर अमृत के समान प्रभावशाली होती है। सामाजिक दृष्टिकोण से, यह पर्व समाज में आपसी मेलजोल और समरसता को बढ़ावा देता है। नवविवाहित दूल्हों के सम्मान और स्वागत के लिए उनके ससुराल से भाड़ (मखाना, बताशा, मिठाई, और अन्य उपहार) भेजने की प्रथा इस पर्व को और भी विशेष बनाती है।

मिथिला पंचांग कोजागरा व्रत की पूजा विधि

कोजागरा व्रत की पूजा विधि अत्यंत सरल और प्रभावशाली है। इस दिन सुबह घर की सफाई और पूजा स्थल को सजाया जाता है। देवी लक्ष्मी की प्रतिमा या तस्वीर को पूजा स्थल पर स्थापित किया जाता है। पूजा सामग्री में मखाना, बताशा, खीर, पान, चावल, रोली, दीपक, नारियल, और कमल का फूल शामिल होते हैं। देवी लक्ष्मी की विधिवत पूजा कर उन्हें प्रसन्न किया जाता है। नवविवाहित दूल्हों का चुमाउन करके उनके सुखी और समृद्ध वैवाहिक जीवन के लिए प्रार्थना की जाती है। इसके अलावा, इस दिन खीर बनाकर उसे खुले आसमान के नीचे चंद्रमा की किरणों में रखा जाता है। अगली सुबह इस खीर को प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है। जागरण करना इस पर्व का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। जागरण के दौरान भजन, कीर्तन, और धार्मिक चर्चा की जाती है।

मखाना, बताशा और पान का महत्व

मखाना, बताशा और पान इस पर्व के अभिन्न अंग हैं। मखाना को मिथिलांचल की पहचान माना जाता है, और यह देवी लक्ष्मी की पूजा में प्रमुख रूप से उपयोग किया जाता है। कोजागरा के दौरान मखाना की मांग अत्यधिक बढ़ जाती है, जिससे बाजारों में इसकी कीमत भी बढ़ जाती है। वर्ष 2025 में मखाना के दाम इस प्रकार हैं: उम्दा किस्म का मखाना ₹600-650 प्रति किलो, मध्यम किस्म ₹550-600 प्रति किलो, और साधारण मखाना ₹450-500 प्रति किलो मिल रहा है। बताशा का उपयोग पूजा सामग्री और प्रसाद के लिए किया जाता है, जबकि पान का उपयोग नवविवाहित दूल्हों के स्वागत और मेहमानों के सत्कार में किया जाता है। यह परंपरा न केवल धार्मिक, बल्कि सामाजिक रूप से भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है।

पचीसी खेलने की समाप्त होती परंपरा

कोजागरा व्रत की रात पचीसी खेलने की प्रथा कभी सामाजिक मेलजोल का प्रतीक थी। इस खेल के माध्यम से लोग आपसी सद्भाव और संबंधों को मजबूत करते थे। हालांकि, समय के साथ, शहरी क्षेत्रों में यह परंपरा लगभग समाप्त हो चुकी है। ग्रामीण इलाकों में यह अब केवल नाममात्र के लिए बची है। कहीं-कहीं सामूहिक प्रयासों से इस प्रथा को जीवित रखने की कोशिश की जा रही है। बुजुर्ग बताते हैं कि पचीसी खेलने की यह परंपरा कोजागरा के सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व को बढ़ाने का कार्य करती थी।

आधुनिक समय में कोजागरा व्रत का स्वरूप

आज के समय में कोजागरा व्रत का स्वरूप काफी बदल चुका है। पहले यह पर्व सामाजिक मेलजोल और पारंपरिक खेलों के लिए जाना जाता था, लेकिन अब यह केवल धार्मिक कृत्यों और पारंपरिक औपचारिकताओं तक सीमित हो गया है। आधुनिक पीढ़ी के लिए यह त्योहार केवल पूजा और प्रसाद तक सिमट गया है। इसके बावजूद, मिथिलांचल के कुछ परिवार इस पर्व की परंपराओं को जीवित रखने का प्रयास कर रहे हैं।

निष्कर्ष -मिथिला पंचांग तिथि समय महत्व और परंपराएं

कोजागरा व्रत धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व का पर्व है, जो देवी लक्ष्मी की कृपा और अमृत वर्षा के साथ-साथ सामाजिक समरसता का प्रतीक है। यह पर्व हमें अपनी परंपराओं और सांस्कृतिक मूल्यों को जीवित रखने की प्रेरणा देता है। चाहे यह नवविवाहित दूल्हों का स्वागत हो, जागरण की रात, या मखाना और पान की विशेषता—हर परंपरा हमें इस पर्व की गहराई को समझने और अपनाने का संदेश देती है।

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प्रो. शिव चन्द्र झा, के.एस.डी.एस.यू., दरभंगा में धर्म शास्त्र के प्रख्यात प्रोफेसर रहे हैं। उनके पास शिक्षण का 40 से अधिक वर्षों का अनुभव है। उन्होंने मैथिली भाषा पर गहन शोध किया है और प्राचीन पांडुलिपियों को पढ़ने में कुशलता रखते हैं।
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