घर पछुअरबा में लौंग केर गछिया लिरिक्स – Ghar Pachhuarba Me Laung Ker Gachhiya

घर पछुअरबा में लौंग केर गछिया लिरिक्स - Ghar Pachhuarba Me Laung Ker Gachhiya

घर पछुअरबा में लौंग केर गछिया लिरिक्स – Ghar Pachhuarba Me Laung Ker Gachhiya

घर पछुअरबा में लौंग केर गछिया,
लौंग चुबय आधी राति हे

लौंग के चुनि चुनि सेजिया सजाओल,
सेज भरि देल छिड़िआइ हे
ताहि कोबर सुतलनि दुलहा से रामजी दुलहा,
संगमे सिया सुकुमारि हे

घुरि सुतू फिरि सुतू सुहबे हे कनियां सुहबे,
अहूँ घामे भीजत चादरि हे
एतबा वचन जब सुनलनि कनियां सुहबे,
रूसि नैहर चलल जाथि हे

एक कोस गेली सीता दुइ कोस गेली,
तेसरे मे भय गेल सांझ हे
कहां गेलह किए भेलह भैया रे मलहबा,
नइआसँ उतारि दैह पार हे

दिनमे खुअयबह सुन्दर चेल्हबा मछरिया,
राति मे ओढ़ायब महाजाल हे
चान सुरुज सन अपन प्रभु तेजल,
तोहर बोली मोरो ने सोहाय हे

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एक नइआ आबय आजन बाजन,
दोसर नइआ आबय बरिआत हे
तेसर नइआ फल्लां दुलहा आयल,
पान खुआय धनी मनाओल हे

घर पछुअरबामे सुपारी के गछिया,
चतरल चतरल डारि हे
घुमइत फिरइत अयला रामचन्द्र दुल्हा,
तोड़ि लेल सुपारीक डारि हे

मचिया बैसल अहाँ निज हे सासु,
मालिन बेटी देत उपराग हे
अपन पुत्र रहितै डांटि डपटि दितिऐ,
परपुत्र डांटल ने जाय हे

जय चन्द्र झा हास्य और व्यंग्य लेखन में माहिर हैं, जिनका इस क्षेत्र में 20 वर्षों का अनुभव है। उनकी रचनाएँ मिथिला की संस्कृति, समाज और जीवन के विभिन्न पहलुओं पर हास्यपूर्ण व तीखे व्यंग्य के साथ गहरी छाप छोड़ती हैं।
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