जहाँ आप गा सकते हैं किन्तु नाच नहीं सकते
मिथिला के लोक जीवन की एक विडंबना है कि यहाँ लोकनृत्य का लगभग अभाव-सा है | विवाह आदि के अवसर पर भी मिथिला में लोक-नृत्य का कोई चलन नहीं है और यह बात हर जाति,हर वर्ग पर लागू होती है |
मिथिला के लोक जीवन की एक विडंबना है कि यहाँ लोकनृत्य का लगभग अभाव-सा है | विवाह आदि के अवसर पर भी मिथिला में लोक-नृत्य का कोई चलन नहीं है और यह बात हर जाति,हर वर्ग पर लागू होती है |
भिनभिनायत भिंडी के तरुआ, आगु आ ने रे मुँह जरुआ
हमरा बिनु उदास अछि थारी, करगर तरुआ रसगर तरकारी
हमर आशानन्द भाई, कमौआ ससुर के एकलौता जमाई मास में पन्द्रह दिन सासुरे में डेरा।पबै छथि काजू-किशमिश, बर्फी-पेड़ा।।भोजन में लगैत
गोनू झाक बुद्धिमत्ताक लोहा सभ कियो मानैत छल । अपन बुद्धिमत्तेक बल पर ओ मिथिलाक राजदरवार मे आदर पबैत छलाह
गोनू झा के ग्रह-दोष निवारण – मैथिली कहानी -गोनू झा राजदरबार मे नियुक्त भऽ गेल छलैथ, सबटा गाँव गोनू झा पर गर्व कऽ रहल छल। गोनू गामक नाम जे रोशन केने छलैथ।
आज के इस आधुनिक युग में मिथिला में नाटक की परंपरा लगभग समाप्त हो चुकि है । अगर आप मिथिला से हैं तो आपने बचपन में देखा होगा बहुत सारे नाटक या रामायण मंडली गांव-गांव में अपने नाटय कला का प्रदशन करते थे ।
यह त्योहारहर साल कार्तिक माह के पहले सप्ताह में छठ के पारण दिन से बिहार, झारखंड, बंगाल, उड़ीसा और नेपाल में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है – यह त्योहार भाई-बहनों को एकजुट करता है
गॊनू झा पहुंचला नर्क भाग 1 – एक बार की बात है, मैं जय चन्द्र झा और गोनू झा दोनों
छोटॆ भाई भोनू झा को भी उम्मीद थी कि अगर गोनू बाबू अधिकारी बन गए, तॊ गाँव के झंझट और बँटवारे की समस्याएँ अपने आप खत्म हो जाएग़ी एवं भैंस तथा कम्बल दोनो मेरे हो जाएंगे ।