अरुण झा की कविताँए

An antique typewriter displaying a typed poem in a nostalgic sepia tone.

अरुण झा की कविताँए – अरुण झा की कविताएँ जिंदगी के छोटे-बड़े लम्हों, रिश्तों की गहराइयों और इंसानी जज्बातों को छूती हैं। उनकी रचनाओं में एक ऐसी सादगी और गहराई है, जो सीधे दिल तक पहुंचती है। यूं ही कहीं गुजर जाए न जिंदगी हमें याद दिलाती है कि वक्त हाथ से फिसलता जा रहा है, इसलिए हर लम्हे को जीना जरूरी है। जबकि कौन है अच्छा, कौन बुरा है दुनिया के दोहरे मापदंडों पर सवाल उठाती है। हर पल को तुम जीना सीखो हमें बेवजह की चिंताओं से मुक्त होकर जिंदगी का आनंद लेने की सीख देती है। अरुण झा की कविताएँ बस पढ़ने के लिए नहीं, बल्कि महसूस करने और अपने जीवन में उतारने के लिए हैं।

यूँ ही कहीं गूजर जाए न जिंदगी 

डर है कि यूँ ही कहीं गूजर जाए न जिंदगी
बनने से पहले बिखर जाए न जिंदगी ।
आज अनसूलझी पहेली बनती जा रही है जिंदगी
गर हो सके तो आके सुलझा जाओ ये गुत्थी ।

परेशान से रहता है ये दिल
आखिर किस उलफ़त की चाहत में ।
औरों को बेवफा है समझता
खुद नासमझी की हालत में ।

मोलतोल करता है ये मन
खुद के प्यार को पाने में ।
फिर आखिर ये कैसे खुश हो
औरों का र्दद मिटाने में ।

औरों की निंदा करता है
स्वयं ही वैसा करता है ।
खुद नाकाम मुकामों पर वो
औरों को कोसा करता है ।

दुनिया की ही रीति रही है
जो न मिले उसे वो बुरा कहे ।
पाने पर मन रूकता ही नहीं
न पाने पर बेचैन रहे ।

फिर आखिर कब खुश हो मानव
क्या संभव है ऐसा होना ।
शायद नहीं कदापि नहीं
न हुआ कभी न होगा भी ।

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कौन है अच्छा कौन बुरा है

कौन है अच्छा कौन बुरा है
यॆ चर्चा की बात नही
यू.पी बिहार कॆ लॊग बुरॆ है
यॆ तॊ सच्ची बात नही ||
हर राज्यॊ कॆ युवा सरीखॆ
चाहत रखतॆ सभी अनॊखॆ
इनमॆ उनका दॊष नही है
सरकारॊ का दॊष सभी है ||
सभी राज्यॊ मॆ सुविधा न दॆकर
जुल्म यॆ करतॆ बिहार यू.पी पर
अच्छॆ संस्कारॊ मॆ पलॆ युवा भी
मॆट्रॊ मॆ मजबुर है जाकर ||
करता हुँ मै अब यॆ आवाहन
ऎ बिहार यू .पी कॆ शिक्षित जन
अब न तुम युँ दॆर लगाऒ
अपनी जन्मभुमि कॊ कर्मभुमि बनाऒ ||
सुविधाऒ का लॆखा जॊखा
मन मॆ करॊ तुम आज जरा सा
ऎसा तुम बिहार बनाऒ
औरॊ कॊ आनॆ कॊ ललचाऒ ||
कर सकतॆ तुम क्या इस अभियान मॆ
सॊच कॆ दॆखॊ अपनॆ प्राण मॆ
अब न तुम्हॆ विलंब है करना
अपमानॊ का घुंट न पीना ||
तुम क्यॊं न ऎसा कुछ कर जाऒ
अपनॆ बिहार कॊ समूद्घ बनाऒ
बिहारियॊ का पलायन रॊक तुम
इस बिहार कॊ मिलकर सजाऒ ||
नही चाहिए पैसॆजर ट्रॆन हमॆ
गुडस ट्रॆन पा खुश हॊ जाऒ
अपनॆ राज्य सॆ समान निर्यात कर
दूजॊ की अनुकंपा कॊ धिक्कारॊ ||
पढॆ लिखॊ का आवाहन है
बिहार की दशा मॆ परिर्वत्तन लानी है
अब ना कॊई अनपढ आए
बिहार राज्य कॊ अब ऒ चलाए ||
आइ ए एस की यॊग्यता रखनॆ वालॆ
अब वॊ मिलकर चक्रव्यूह रचाए
बिहार कॆ सभी मंत्रालयॊ पर
बिहार जागूति का झंडा फहराए ||
शत प्रतिशत शिछा हॊ जाए
सबकॊ बिहार पर गर्व हॊ जाए
बिहार कॆ नाम पर न कॊई सिर झुकाए
बिहार कॊ आत्मनिर्भर राज्य बनाए |

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हर पल को तुम जीना सीखो

खुशियाँ आतीं ग़म आते हैं
पतझड़ संग बहार आते हैं
फिर क्यों तुम गम करते प्यारे
र्ब्यथ यूँ आँसू बहाते प्यारे ।

हर पल को तुम जीना सीखो
लोगों का दुख हरना सीखो
किसी के आँसू पोंछ सके तो
अपना जीवन सार्थक जानो ।

तुम क्यों रोया करती हो
खुद को सताया करती हो
भूल के इन सब बातों को
न अपना मन बहलाती हो ।

कर सकती हो तुम तो सब कुछ
जीवन सार्थक बनाने को
अपने जीवन को अर्पित कर दो
दूजे के कष्ट मिटाने को ।
 

प्रस्तुति : अरुण कुमार झा ( शिक्षक : इन्डियन पब्लिक स्कूल सल्लतनत आँफ ऒमान)

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जय चन्द्र झा हास्य और व्यंग्य लेखन में माहिर हैं, जिनका इस क्षेत्र में 20 वर्षों का अनुभव है। उनकी रचनाएँ मिथिला की संस्कृति, समाज और जीवन के विभिन्न पहलुओं पर हास्यपूर्ण व तीखे व्यंग्य के साथ गहरी छाप छोड़ती हैं।
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