गॊनू झा के आधुनिक कहानी
गोनू झा मिथिला के ऐतिहासिक और लोकप्रसिद्ध विद्वान थे। वे अपने हास्य, चतुराई और ज्ञान के लिए प्रसिद्ध हैं। गोनू झा को “मिथिला के तेनालीराम” और “मिथिला के बीरबल” के रूप में जाना जाता है। उनके बारे में कई लोककथाएँ और किस्से प्रचलित हैं, जो उनकी बुद्धिमत्ता और हास्य से आज भी लोगो का मनोरंजन करते हैं ।
गोनू झा का जन्म मिथिला क्षेत्र में हुआ था। उनका समय लगभग 13वीं-14वीं शताब्दी का माना जाता है। हालाँकि, उनकी कहानियों का कोई ठोस ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है, लेकिन मिथिला के लोगों की जुबान पर उनकी कथाएँ जीवित हैं।
१. गॊनू झा यूपीएससी कॆ संघर्ष
गोनू बाबू, जो गाँव कॆ एक सामान्य किसान परिवार सॆ थॆ, ने एक दिन अपने चचेरे भाई गोकुल से यह सुना कि वह यूपीएससी परीक्षा की तैयारी करने जा रहा है । तब गोनू झा ने यह पुछा की भाई इससे क्या होता है ।
तब जाकर गोकुल ने यह बताया की इस परीक्षा को पास कर लोग कलक्टर बनते है और अपने जिले का विकास करते हैं, गोनू झा ने कहा भाई मुझे भी इस परीक्षा की तैयारी करनी है जिससे में भी अपने जीले का नाम रौशन करुंगा ।
गोनू झा का भी मन प्रेरित हो गया। उन्होंने अपने घर-गृहस्थी और खेती-किसानी कॆ सभी काम अपने छोटे भाई भोनू झा पर छोड़ दिए और खुद पूरी तरह तैयारी में जुट गए।
गाँव वाले उनकी लगन देखकर काफ़ी उत्साहित थॆ। छोटॆ भाई भोनू झा को भी उम्मीद थी कि अगर गोनू बाबू अधिकारी बन गए, तॊ गाँव के झंझट और बँटवारे की समस्याएँ अपने आप खत्म हो जाएग़ी एवं भैंस तथा कम्बल दोनो मेरे हो जाएंगे ।
गोनू बाबू नॆ सबसे पहले अपना लक्ष्य तय किया और पुरी मेहनत शुरू कर दी। उनकी बुद्धिमत्ता और प्रयासों कॆ बल पर वह प्रारंभिक परीक्षा और मुख्य परीक्षा में सफल हॊ गए। गाँव में जश्न का माहौल था। भोनू झा के मन में भी यह बात घर कर गई थी कि अब परिवार एवम गांव कॆ अच्छे दिन आने वाले हैं।
लेकिन अब बारी थी साक्षात्कार कॆ परिक्षा की। गोनू बाबू, एकदम नई धोती और कुर्ता गांव के धोबी से आयरन करबाकर और उसे पहनकर, आत्मविश्वास सॆ भरे हुए इंटरव्यू कॆ लॆल निकल पडे़। लेकिन वहाँ पूछे गए सवालों नॆ उन्हें एकदम चकरा दिया।
साक्षात्कार लेने बाले ने गोनू झा से ये प्रश्न किये –
प्रश्न 1. अशोक कौन था?
गोनू बाबू का उत्तर: “अशोक एक वृक्ष का नाम है जहां पर रावण नॆ सीता माता कॊ छुपाकर लंका में रखा था। मॆ मिथिला का निवासी हूं तथा इनके किस्से जमाने से सुनता आया हुं । को कठिन सबाल किजीये ।
प्रश्न 2. चन्द्रगुप्त कौन था?
गोनू बाबू का उत्तर: “जब चाँद छुप जाता है यानी की गुप्त हो जाता है उस समय को चन्द्रगुप्त कहते हैं। यह हर महीने में एक बार होता है जिसे अमावस्या कहते हैं ।” अगला सबाल किजीये
प्रश्न 3. पृथ्वीराज कौन था?
गोनू बाबू का उत्तर: “पृथ्वीराज एक लोकप्रिय हस्ती थे जिन्होने ‘मुगल-ए-आज़म’ जैसी फिल्म बनाई थी जो काफी प्रसिद्ध है मेंए तीन बार गांव के सिनेमा होल में बिना टिकट के देखी है । उनके तीन पुत्र हैं—राज कपूर, शशि कपूर, और शम्मी कपूर।”
प्रश्न 4. नूरजहाँ कौन थी?
गोनू बाबू का उत्तर: “वह एक मशहूर बालिवुड गायिका थीं और बहुत ही मधुर गाती थी। १९४७ में भारत विभाजन कॆ पश्चात वह पाकिस्तान चली गईं। उसके बाद उनका क्या हुआ, इसकी जानकारी मुझे नहीं है ।”
प्रश्न 5. रात कॊ पेड़ कॆ नीचे क्यों नहीं सोना चाहिए?
गोनू बाबू का उत्तर: कैसी बच्चो जैसी प्रश्न करते है आपको नहीं पता रात को पेड पर भुत पिशाच रहते हैं ।”
प्रश्न 6. सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी कितनी है?
गोनू बाबू का उत्तर: “देखिए, यह मुझे नहीं पता। अगर मुझे सूर्य पर नौकरी करनी है, तॊ मुझॆ आपकी यह नौकरी मंजूर नहीं।”
बस गॊनू झा पुन: गाँव चली एला सबकॆ कहलखिन जॆ हमरा ऒ सब चन्द्रमा पर नौकरी कॆ लॆल भॆज रहल् छल हमरा नैय जॆबाक अछी | बॆचारा भॊनू झा कॆ सब अरमान पर पानी फिर गॆल |
२. गोनू झा और दिल्ली का रेडियो
एक बार गोनू झा दिल्ली गए। दिल्ली की चकाचौंध और वहां की नई-नई चीज़ों को देखकर उनका मन बहुत खुश हुआ। खासकर “रेडियो मिर्ची” पर बजने वाले गाने और कार्यक्रम उन्हें बेहद पसंद आए। उन्होंने मन ही मन ठान लिया कि गाँव लौटने से पहले एक रेडियो सेट ज़रूर खरीदेंगे, ताकि गाँव में भी इसी तरह के मज़ेदार कार्यक्रम सुने जा सकें।
गाँव लौटते समय उन्होंने दिल्ली से एक शानदार टेराबाईट कम्पनी का चाईनीज रेडियो खरीदा। गाँव पहुँचते ही उन्होंने सबको बड़े गर्व से बताया, “अब गाँव में भी दिल्ली जैसा रेडियो मिर्ची सुन सकेंगे।”
गोनू झा ने जैसे ही रेडियो चालू किया, वहाँ एक साथ तीन आवाज़ें आने लगीं। एक आवाज़ से समाचार सुनाई दे रहा था। दूसरी आवाज़ में कोई स्वेटर बुनने का कार्यक्रम चल रहा था। तीसरी आवाज़ में कोई क्रिकेट मैच की कमेंट्री सुनाई दे रही थी।
रेडियो का यह अजीब मिश्रण सुनकर गोनू झा चौंक गए। आवाज़ों का हाल कुछ इस तरह का था:
“नमस्कार, ये आकाशवाणी है। बहन सलाईया लेकर मैदान में आ गई हैं। प्रधानमंत्री ने 12 नंबर की सलाई से लोकसभा में चौका मारा। कांग्रेस की नेता सोनिया गांधी ने कहा कि सीमा पर बुनाई के लिए दो रन की ज़रूरत है। संयुक्त मोर्चा ने सलाई ऊपर-नीचे डालकर तीन विकेट लिए।”
**”मुख्य समाचार एक बार फिर सुनें: लोकसभा में आज विपक्ष ने लंच तक सचिन के स्वेटर का पहला नमूना पूरा कर लिया। बिहार के मुख्यमंत्री स्वेटर बनाते समय क्लीन बोल्ड हो गए। पाकिस्तान ने कहा है कि भारत की दखल के कारण स्वेटर शानदार बनेगा।”**
“खेल का अंत हुआ। स्टेडियम में सभी खिलाड़ी स्वेटर की सलाई लेकर दौड़ रहे हैं। धन्यवाद!”
गोनू झा तथा गांव के सभी लोग यह सब सुनकर सिर पकड़कर बैठ गए। समाचार, स्वेटर बुनाई और क्रिकेट मैच का यह अनोखा मिश्रण उनके पल्ले ही नहीं पड़ा। उन्होंने कई बार रेडियो को इधर-उधर घुमाया, लेकिन आवाज़ें और भी गड़बड़ हो गईं।
आखिरकार, हार मानकर गोनू झा ने टेराबाईट कम्पनी का चाईनीज रेडियो गाँव के एक बच्चे को दे दिया और कहा,
“ले बेटा, अब तू ही सुन और तू ही समझ।”
गाँव का वह बच्चा गोनू झा का रेडियो लेकर चला गया। उसने रेडियो को ध्यान से देखा और पाया कि इसमें अलग-अलग चैनल पर ठीक से ट्यूनिंग नहीं हो रही थी। उसने रेडियो को धीरे-धीरे ठीक से ट्यून किया और अब रेडियो पर आवाज़ साफ आने लगी।
गोनू झा जब यह देखे, तो बच्चे से बोले,
“अच्छा बेटा, तू ही बता, अब ये रेडियो मेरे लिए ठीक हो गया ?”
बच्चा हँसते हुए बोला,
“गोनू चाचा, अब ये ठीक है, लेकिन इसका असली मज़ा आप दिल्ली में ही ले स्कते हैं । गाँव में तो इसका काम सिर्फ मच्छर भगाने का है।”
गोनू झा यह सुनकर ठहाका लगाकर हँस पड़े और बोले,
“बेटा, सही कहता है। दिल्ली की चीज़ दिल्ली में ही अच्छी लगती है।”
प्रस्तुती जय चन्द्र झा jcmadhubani@yahoo.com
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